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हाल के दिनों के घटनाक्रम पर नजर डालें तो ऐसा लग रहा है कि देश की राजनीति करवट बदल रही है। लोग अब बदलाव के बारे में सोचने लगे हैं। बीजेपी के असली स्वरूप को जनता ने पहचानना शुरू कर दिया है। लोग अब धर्म आस्था और हिन्दू मुस्लिम से उबरना चाह रहे हैं। ये बात केवल जनता ही नहीं बल्कि भाजपा के सहयोगी दल भी जान गये हैं कि यदि भाजपा के साथ रहे तो एक दिन उनका व पार्टी का अस्तित्व भी मिट जायेगा। इसी कारण पिछले तीन चार सालों में भाजपा के अनेक घटक दल छिटक कर अलग हो गये हैं। पहले वो भाजपा के साथ थे तो भाजपा का परचम पूरे देश लहराया था लेकिन अब वो एनडीए से अलग हैं और भाजपा के विरोध में खड़े हैं इससे साफ दिख रहा है कि आने वाले आम चुनाव में मोदी शाह को कड़ी टक्कर मिलने वाली है।
हाल ही में भाजपा से अलग होने वाले दल जेडीयू ने भाजपा का साथ छोड़ महागठबंधन का दामन थाम लिया। आठवी बार नितीश कुमार बिहार के सीएम बन गये। तेजस्वी यादव दोबारा उपमुख्यमंत्री पद पर काबिज हो गये हैं। शायद भाजपा बिहार में इस तरह के झटके की उम्मीद नहीं कर रही थी। मोदी शाह ने नितीश कुमार को सीटें कम होने के बाद भी बिहार का सीएम बनाया था कि ताकि वो अहसान तले दबे रहे और वो बिहार को अपने हिसाब से चलाने का काम आसानी से करते रहें। इस बीच महाराष्ट्र में बीजेपी ने शिवसेना में एकनाथ शिंदे को तोड़ कर शिवसेना को तोड़ दिया और महाराष्ट्र में भाजपा ने सरकार बना ली भले इसके लिये देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद की कुर्बानी देनी पड़ी। इधर बीजेपी ने एक प्रदेश में सरकार बनायी तो बिहार में उनके गठबंधन की सरकार चली गयी। सबसे बड़ी चिंता अब उनके लिये बिहार ही हो गया है। लगभग दो साल बाद 2024 में आम चुनाव होना है। बीेजेपी ने उसकी तैयारी अभी से कर दी है। इसी कड़ी में एनडीए ने आदिवासी समाज से आने वाली द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बनवाया। इस चाल से भाजपा यह संदेश देना चाह रही है कि देश के सर्वोच्च पद पर उन्होंने आदिवासी महिला को बैठाया है। उन्हें उम्मीद है कि इससे आदिवासी वोटों को समर्थन उनके पक्ष में होगा। देश में लगभग 30 प्रतिशत वोट आदिवासी लोगों का है अगर वो उनके पक्ष में आ गये तो तीसरी बार केन्द्र में एनडीए की सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता।