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जब से योगी ने दूसरी बार यूपी में सता की कमान संभाली है तब से पीएम मोदी और शाह यूपी पर निगाहें और भी गड़ा दी हैं। दिल्ली से ही वो यूपी की राजनीति को अंजाम दे रहे हैं। यही वजह है कि यूपी में हुए उप चुनावों औ पंचायत चुनावों में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और गृहमंत्री अमित शाह मे कोल्ड वार चल रहा है। अमित शाह ने सीएम योगी के आसपास अपने खास आदमियों को तैनात कर दिया है। एक तरह से ये कहा जाये कि गुजरात लॉबी ने योगी की खेमेबाजी कर दिया है। अफसरों से लेकर सरकार में मंत्री तक अमित शाह को सीधा रिपोर्ट करते हैं। वो तो योगी का बूता है कि इसके बावजूद वो सत्ता को अपने हिसाब से चला रहे है। यह भी चर्चा है कि गुजरात लॉबी योगी की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान हो रहे हैं। यह भी चर्चा है कि पीएम मोदी इस चुनाव के बाद अपनी सत्ता अमित शाह को सौंपना चाहते हैं। लेकिन योगी आदित्यनाथ को लोग आगामी पीएम के रूप में देख रहे हैं। इससे अमित शाह के पीएम बनने के सपने चूर हो रहे हैं।
मंत्रिमंडल व संगठन में शाह की घुसपैठ
गुजारत ने यूपी में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिये पिछले डेढ़ दो सालों से घुसपैठ शुरू कर दी थी। गुजरात लॉबी ने पहले गुजारत कैडर के आईएएस अरविंद शर्मा को रिटायरमेंट के बाद यूपी भाजपा में शामिल कराया बाद में एमएलसी बना कर उन्हें योगी मंत्रिमंडल में जगह दिलवायी। शाह की मंशा थी कि शर्मा को मंत्रिमंडल में पहुंचा कर योगी के पर कतरे जायें। लेकिन योगी ने मंशा समझते हुए शर्मा को अपने करीब नहींं आने दिया है। शाह चाह रहे थे कि अरविंद शर्मा को अहम् विभाग का मंत्री बनाया जाये।ं लेकिन योगी ने उनकी मंशा पूरी होने नहीं दिया। इसके अलावा यूपी बीजेपी अध्यक्ष पद भी अपने खास भूपेंद्र चौधरी को दिलवाया ताकि संगठन पर अमित शाह का दबदबा बना रहे। आलम यह है कि मंत्रिमंडल के कुछ मंत्री भी सीएम से बात न करके सीधे गृहमंत्री अमित शाह से बात करते हैं। पत्रकार वार्ता में मंत्री बनने के सवाल के जवाब में कहा कि मंत्री तो बनेंगे चाहे योगी चाहें या न चाहें। हम एनडीए के यूपी में घटक दल हैं। पार्टी के कर्ता धरता तो पीएम मोदी अमित शाह और जेपी नड्डा हैं वही हमें सरकार में मंत्री बनवायेंगे।
संजय निषाद और राजभर भी योगी से दूर

एनडीए में शामिल निषाद पार्टी और सुभासपा के अध्यक्ष ओपी राजभर भी योगी के खेमे से दूरी बनाये रखते हैं। योगी भी इन दोनों घटक दलों से दूरी बनाये रखते है। चर्चा है कि अगर शाह और योगी के बीच सुलह नहीं हुई तो आम चुनाव में भी अच्छे परिणाम आने की उम्मीद कम होती जायेगी।
उप चुनावों व पंचायत चुनावों में भाजपा क्यों हारी
पिछले एक साल में जितने भी उप चुनाव हुए उनमें भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा है। चाहे वो खतौली हो या मैनपुरी का। घोसी में तो शाह और योगी ने चुनाव को प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया था। इसके बाद भी वहां भाजपा उम्मीदवार को सपा उम्मीदवार सुधाकर सिंह ने भारी मतों ंके अंतराल से हरा दिया। वहां की जनता ने बता दिया कि उन्हें दल बदलू और स्वार्थी लोगों को मजा चखाना आता है। यहां समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार को कांग्रेस और बामदलों का समर्थन प्राप्त था। यह पहला मौका था कि जब इंडिया गठबंधन को पहले चुनाव में भारी मतों से जीत हासिल हुई है। इससे गठबंधन के हौसले बुलंद हो गये हैं। दिलचस्प बात यह है कि सवा साल पहले सुभासपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी के साथ थे और चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी और योगी को पानी पी पी कर कोसते थे आज वो मोदी और योगी की तारीफ करते नहीं थक रहे हें अब वो समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो अखिलेश यादव को जेल भेजने की बात कर रहे है। एसे ही लोगों के बारे में कहा जाता है कि स्वार्थ के लिये नेता किस हद तक गिर सकता है उन्हें वोटर्स के विश्वास को किसी के पैरों में डाल देते हैं। उन्हें तो जिस तरफ मलाई खाने का मौका मिलता है वो उस ओर लुढ़क जाते हैं।