Mahabharat: इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए श्रीकृष्ण ने उंगली पर उठाया गोर्वधन पर्वत, फिर क्या हुआ जानें


Mahabharat In Hindi: श्रीकृष्ण जब ब्रज में अपना बचपन व्यतीत कर रहे थे तो उन्होंने कई लीलाएं की. श्रीकृष्ण ने लीला करते हुए पुतना और बकासुर जैसे राक्षसों का वध किया. यही नहीं कालिया नाग को भी सबक सीखाया. इन कामों से कृष्ण की लोकप्रियता चरम पर पहुंच गई. ब्रजवासियों को भगवान श्रीकृष्ण पर अटूट विश्वास था. ब्रज के लोगों का मुख्य कार्य गौवंश का पालन और कृषि था.

ब्रज में जब नहीं हुई बारिश

एक बार ब्रज में लंबे समय तक बारिश नहीं हुई. लोगों को परेशानी होनी लगी. फसलें सूखने लगीं, लोगों के सामने जल का संकट खड़ा होने लगा, पशुओं के लिए भी पानी कम पड़ने लगा. तब लोगों ने देवराज इंद्र को प्रसन्न करने के लिए पूजा, पाठ और अनुष्ठान किए. लेकिन फिर भी इंद्र ने कृपा नहीं की. तब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रजवासियों को वर्षा के लिए पर्वतों, वृक्षों और नदियों की पूजा करने के लिए कहा. भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज के लोगोें को भरोसा दिलाया कि ऐसा करने से जरुर बारिश होगी. क्योंकि जब इन चीजों होगा तो प्रकृति अपने नियम को अपनाती है.

गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ की

ब्रज के लोगों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा आरंभ कर दी. भगवान श्रीकृष्ण स्वयं भी इस पूजा में शामिल हुए. यह देखकर इंद्र को क्रोध आ गया. इंद्र को लगा कि ये लोग उनकी पूजा न करके पर्वत की पूजा करेंगे. इस पर इंद्र ने लोगों को सबक सिखाने के लिए मूसलाधार बर्षा करा दी. बारिश से ब्रज डूबने लगा. नदी, तालाब और झील पानी से उफने लगीं. लोग डर गए. घर डूबने लगे, जानवर परेशान होने लगे. लोगों को लगने लगा कि अब तक जल में सब समा जाएंगे.

गोवर्धन पर्वत उंगली पर उठा लिया

ब्रज डूबने लगा तो सभी लोगों ने तय किया कि इस समस्या से सिर्फ श्रीकृष्ण ही बचा सकते हैं, सभी लोग उनके पास पहुंचे और रक्षा करने की गुहार लगाई. तब भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र का घमंड़ तोड़ने का निर्णय लिया और अपनी सारी शक्ति से अपनी छोटी उंगली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठा लिया. लोग यह देखकर दंग रह गए और और सभी लोग उस पर्वत के नीचे आ गए. इस प्रकार से भगवान ने सभी ब्रजवासियों को इंद्र के प्रकोप से बचा लिया.

इंद्र ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी

इंद्र यह दृश्य देख चकित रह गए. वे समझ गए कि कान्हा के रूप में स्वयं भगवान विष्णु हैं. शर्मिंदा होने के बाद इंद्र ने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की और गोवर्धन पर्वत को भूमि पर रखने का अनुरोध किया. तब भगवान ने पर्वत को नीचे रखा. इंद्र ने सभी व्रजबासियों को गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाने के लिए कहा. तभी से अन्नकूट पर्व मनाने की परंपरा आरंभ हुई.



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