Maternal Mortality Ratio In India: लड़कियों की शादी के लिए न्यूनतम उम्र बढ़ाने को लेकर छिड़ी बहस, जानिए पीएम मोदी को क्यों महसूस हुई इसकी जरूरत


हाइलाइट्स:

  • पीएम मोदी की चिंता के पीछे का कारण है Maternal Mortality Ratio (MMR) मातृ मृत्यु दर
  • 2014-2016 के आंकड़ों के मुताबिक 130 माताओं की मौत हो जाती है
  • भारत के अंदर सबसे ज्यादा मातृ मृत्यू दर आसाम में है

नई दिल्ली
लाल किले की प्राचीर से कोई भी प्रधानमंत्री (PM Modi Speech In Independence Day 2020) जब देश को संबोधित करता है तो करोड़ों देशवासी उसको सुनते हैं। उनके जुबान से निकली हर एक बात के मायने होते हैं। वो कोई चुनावी लतीफे नहीं होते जिनको आज हां तो कल नहीं में तब्दील कर दिया जाए। उस ऐतिहासिक धरोहर पर खड़े होकर प्रधानमंत्री जो-जो बातें कहते हैं वो हर शब्द बहुत नपा-तुला होता है। इस बार 15 अगस्त 2020 को भी पीएम मोदी ने लाल किले से भाषण दिया। उन्होंने अपने लंबे भाषण में आत्मनिर्भर भारत पर जोर दिया साथ ही भारतीय सेना के पराक्रम की भी चर्चा की लेकिन इन सबके बीच एक बात और गौर करने वाली बोली। उन्होंने लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु में बदलाव के संकेत दिए। उनकी इस चिंता के पीछे का कारण है Maternal Mortality Ratio (MMR) मातृ मृत्यु दर ।

पीएम मोदी ने दिया संकेत
पीएम मोदी ने स्वतंत्रता दिवस (PM Modi In Independence Day) के मौके पर लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम आयु (Minimum age of girls for marriage) में बदलाव के संकेत दिए हैं। माना जा रहा है कि अब लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 से बढ़ाकर 21 की जा सकती है। इससे लड़कियों के जीवन में कई बदलाव आएंगे। लेकिन, बड़ा सवाल है कि आखिर सरकार बेटियों के विवाह की न्यूनतम उम्र क्यों बदलना चाहती है? या फिर मोदी सरकार इससे क्या हासिल करना चाहती है।

मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Ratio (MMR))
पीएम मोदी की चिंता जायज है और उसका कारण है Maternal Mortality Ratio यानी मातृ मृत्यु दर। भारत में कम उम्र में शादियों की वजह से लड़कियां गर्भवती होती है और जब वह बच्चे को जन्म देती हैं तो उनकी मौत तक हो जाती है। इसी को मातृ मृत्यु दर कहते हैं। भारत सरकार के नीति आयोग की वेबसाइट से खंगाले गए आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रति लाख जन्म देने वाली माताओं में 2014-2016 के आंकड़ों के मुताबिक 130 माताओं की मौत हो जाती है। ये आंकड़ा अभी कुछ सालों में सुधरा है वरना 2004-06 में ये आंकड़ा 254 हुआ करता था। भारत के अंदर सबसे ज्यादा मातृ मृत्यु दर आसाम में है। जहां पर एक लाख महिलाओं में बच्चे पैदा करते वक्त या उसके तुरंत बाद 237 महिलाओं की मौत हो जाती है। वहीं ये रेशियों केरल में सबसे कम है। केरल में प्रति लाख महिलाओं में 46 महिला मौत की नींद सो जाती हैं।

हिंदस्तान में बुरी प्रथा
हिंदुस्तान में पहले बाल विवाह जैसी बुरी प्रथा का बोलबाला था। लड़कियों की शादी 14 या 15 साल तक कर दी जाती थी। जिसकी वजह से लड़की बेहद कम उम्र में ही गर्भवती हो जाती थी। लेकिन ऐसा हर केस में नहीं होता था। कई बार लड़की की तबियत बिगड़ जाती थी और उसकी मौत तक हो जाती है। लड़कियों की कम उम्र में शादी के पीछे परिवार और समाज की तमाम दलीलें हैं। लेकिन हकीकत यही है कि इससे लड़की के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा असर पड़ता है।

लड़कियों की उम्र के पीछे मातृ मृत्यूदर
लड़कियों की न्यूनतम उम्र सीमा में बदलाव करने के लिए पीछे उद्देश्य मातृ मृत्युदर (Maternal mortality rate) में कमी लाना है। माना जा रहा है कि सरकार की इस कवायद के पीछ सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला भी हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वैवाहिक बलात्कार (Marital rape) से बेटियों को बचाने के लिए बाल विवाह पूरी तरह से अवैध माना जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने विवाह के लिए न्यूनतम उम्र के बारे में फैसला लेने का काम सरकार पर छोड़ दिया था। एक अधिकारी के मुताबिक, शादी के लिए लड़की और लड़के की न्यूनतम उम्र को एकसमान होनी चाहिए। अगर मां बनने की कानूनी उम्र 21 साल तय कर दी जाती है तो महिला की बच्चे पैदा करने की क्षमता वाले सालों की संख्या अपने आप घट जाएगी।

बीते पांच सालों का रेकॉर्ड
भारत में बीते 5 सालों में 3 करोड़ 76 लाख लड़कियों की शादियां हुईं। इनमें से 2 करोड़ 55 लाख ग्रामीण क्षेत्र में और 1 करोड़ 21 लाख शहरी क्षेत्र में हुईं। इनमें से 1 करोड़ 37 लाख (1.06 करोड़ ग्रामीण और 31 लाख शहरी) लड़कियों ने 18-19 की उम्र में शादी की। वहीं 75 लाख लड़कियों (49 लाख ग्रामीण और 26 लाख शहरी) ने 20-21 की उम्र में शादी की। ग्रामीण महिलाओं की बात करें तो 5 सालों में 61% ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाली लड़कियों ने 18-21 की उम्र के बीच शादी की।

1978 में शारदा ऐक्ट में बदलाव
1978 में शारदा ऐक्ट में बदलाव के बाद शादी के लिए लड़कियों की न्यूनतम उम्र को 15 वर्ष से बढ़ाकर 18 वर्ष किया गया था। सन् 1928 में बाल विवाह पर पूर्णतया रोक रोक लगाने हेतु एक कानून पारित किया गया जिसे शारदा के नाम से जाना जाता है। बाल विवाह रोकने के लिए शारदा एक्ट अधिनियम भी प्रभावी नहीं रहा। जिसके कारण सन 1978 में शारदा एक्ट अधिनियम में संशोधन किया गया। यह अधिनियम अब बाल विवाह निरोधक अधिनियम 1978 के नाम से जाना जाता हैं। लड़कों के विवाह हेतु न्यूनतम आयु 21 वर्ष और लड़कियों के लिए न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई।

143 देशों में शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल
अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, इटली, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे, स्वीडन, नीदरलैंड, ब्राजील, रूस, साउथ अफ्रीका, सिंगापुर, श्रीलंका और यूएई समेत दुनिया के कुल 143 देशों में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल तय की गई है। इन देशों में भारत भी शामिल है।

20 देशों में शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल
इंडोनेशिया, मलेशिया, नाइजीरिया और फिलिपींस समेत दुनिया के कुल 20 देशों में लड़कियों को शादी के लिए कम से कम 21 साल का होना अनिवार्य है।



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