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तीन अक्टूबर को हरियाणा विधानसभा का चुनाव प्रचार थम गया जहां कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक कर मतदान अपने पक्ष में करने मे कोई कसर नहीं छोड़ी वहीं भाजपा आखिरी दिन अपने सभी मुख्यमंत्रियों को हरियाणा के रण में उतार दिया। सभी एड़ी चोटी का दम लगा कर यह प्रयास किया जनता का समर्थन उन्हें मिल जाये। वैसे तोे कांग्रेस का जलवा हर जगह दिख रहा है लेकिन भाजपा भी आखिर क्षण तक इसी प्रयास में दिखी कि आम जनता उन्हें तीसरी बार सरकार बनाने का मौका दे। लेकिन हालात ऐसे दिख रहे है लोग अब बदलाव का मूड बना चुके हैं। दस साल की एंटी इनकंबेंसी का खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ सकता है।

Political strom in haryana in Peak. Ex Cm Bhupendra singh hudda is so agressive to get power
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आखिरी दिन के प्रचार खत्म होने से पहले भाजपा नेता अशोक तंवर ने कांग्रेस में वापसी कर भाजपा को जोरदार झटका दिया है। इससे कांग्रेस की जीत और पुख्ता हो गयी है। ये बात तो तय है कि हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनने जा रही है। बस इंतजार इस बात का है कि कांग्रेस को कितने प्रतयाशियों को जनता चुन कर विधान सभा भेजने वाली है। मीडिया में बहुत से सर्वे तैर रहे हैं जिनमे की सरकार बनने के आसार बताया जा रहा है। भाजपा को भारी झटका लगने की आशंका है।
कांग्रेस ने उठाया किसान, जवान और पहलवान का मुददा
कांग्रेस ने पूरे चुनाव के दौरान देश के किसान, जवान और पहलवानों के मुद्दों का जबरदस्त तरीके से जनता तक पहुंचाया। वहीं भाजपा कांग्रेस के शासन को भ्रष्टाचारी बताते हुए यह प्रचार किया कि उनकी सरकार में भ्रष्टाचार को खत्म किया गया है। पूरे हरियाणा में विकास कार्य किये गये है। लेकिन आम जनता भाजपा की बातों पर अब भरोसा नहीं हो रहा है। जनता का कहना है कि पिछले दस सालों में सरकार से जो उम्मीद थी वो पूरी नहीं हुई है। सीएम खट्टर जनता के बीच में लोकप्रिय नेता नहीं रहे हैं। उनके काल में हरियाणा में रिकार्ड महंगाई और बेरोजगारी बढ़ी है। कांग्रेस इन मुद्दों पर भाजपा सरकार के साथ केन्द्र सरकार को घेर रही है। राहुल गांधी अपनी हर जनसभा और रैली में मोदी सरकार की नीतियों पर वार करते रहे हैं। उनका कहना है कि वर्तमान केन्द्र सरकार जन हित की सरकार नहीं बल्कि अडाणी अंबानी की सरकार है। सरकार अपने गंुजराती मित्रों के लिये जनता पर महंगाई की मार डाल रही है।
दोनो दलों मे बागियों की भरमार
हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बागियों अपनी पार्टियों के लिये सिरदर्द किया है। कांग्रेस के 42 नेताओं ने पार्टी के खिलाफ सिर उठा कर निर्दल चुनाव लड़ने का इरादा किया। ऐसे मेंं पार्टी ने अपने बागी नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा दिया। ऐसा ही कुछ हाल भाजपा में भी देखने को मिला। भाजपा नेताओं ने पार्टी से टिकट न मिलने पर निर्दली चुनाव लड़ने का मन बना लिया। इसके आलावा कांग्रेस में सैलजा और हुड्डा के बीच चल रहे मनमुटाव को लेकर राहुल गांधी ने मामला निपटाया। चुनावी रैलियों और सभाओं में हुड्डा और सैलजा के हाथ मिलवा कर यह संदेश देने का प्रयास किया कि कांग्रेस में अब कोई कलह नही रह गयी है। इससे पहले कांग्रेस में सैलजा रणदीप सुरजे वाला और हुड्डा के बीच अनबन सुनी जा रही थी। लेकिन राहुल गांधी ने जिस तरह रणनीतिक और सूझबूस कांग्रेस की बगावत को काबू पाने सफलता हासिल की उससे यह कहा जा सकता है कि राहुल गांधी ने भाजपा से यह सीख लिया है कि सामने वाले को राजनीतिक पटखनी देनी है।

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