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रंगे सियार सीएम नितीश नायडू!इन दलों का एनडीए से हुआ मोहभंग
जल्द ही दो बड़े घटक दल छोड़ेंगेएनडी
2024 के आम चुनाव के आने करीब कुछ दल एनडीए मे शामिल हुए थे। लेकिन चुनाव परिणाम के बाद अब जब तीसरी बार एनडीए की सरकार बन गयी है तो सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर अंदरखाने मतभेद हो गये हैं। इसके कारण यह छन छन कर आ रहा है कि एक आध माह में एनडीए की सरकार को संकट हो सकता है। पीएम मोदी और शाह इस भितरघात की जानकारी है। इसी लिये वो छोटे छोटे दलों के सांसदों पर नजरें टिकाये हैं। इन सांसदों को अपने घेरे में लेने के लिये भाजपा के दिग्गज नेताओं को सक्रिय कर दिया गया है कि वो ऐसे सांसदों पर निगरानी रखें और मौका देख कर उन्हें बीजेपी पाले में खींच लायें। इनमें जेडीयू, लोजपा चिराग पासवान, हम जीतनराम, टीडीपी, शिवसेना और एनसीपी दोनों धड़ों के सांसदों पर भाजपा ज्वाइन करने का आपरेशन शुरू हो गया है। दिलचस्प बात यह है कि भाजपा की साजिश को भली भांत समझ रहे हैं।
वक्फ बोर्ड और परिमन विवाद बने गले की हड्डी
मोदी शाह ने राजीतिक लाभ लेने के लिये मुस्लिम वक्फ बोर्ड और राज्यों के परिससीमन का मुद्दा उठाया है। इस बात से जहां पूरा इंडिया ब्लाक इस कानून के खिलाफ संसद केदोनों सदनों में विरोध जता रहा है। वहीं इन्हीं दोनों मुद्दों पर साउथ के राजनीतिक दल नितीश कुमार और नायडू पर दबाव बना रहे हैं। उन पर दबाव बना कर कहा जा रहा है कि वो संसद के दोनों सदनों में वक्फ बोर्ड और परिसीमन के मुद्दे पर विरोध जतायें। पूरा विपक्ष नितीश और चंछ्रबाबू को यह जताया जा रहा है कि अगर वो इन मुद्दो पर इंडिया ब्लाक के साथ खड़े नहीं हुए तो उनकी अपनी राजनीतिक जमीन हमेशा के लिये खत्म हो जायेगी। अगर वो भविष्य में अपना वजू कायम रखना चाहते हैं तो वो या तो मोदी शाह को इन मुद्दों पर समझायें या एनडीएसे किनारा कर लें। वैसे भी भाजपा के साथ जो भी दल गया है वो अपनी राजनीतिक जमीन खो बैठता है। इस बात से नितीश और नायडू दोनों ही परिचित है।
सूत्रों की मानें तो नितीश कुमार और एन चंद्रबाबू नायडू भी मोदी शाह की नीतियों से नाखुश हैं लेकिन अभी दोनों ही वेट एण्ड वाच कर रहे हैं। इस बात में कोई शक नहीं कि नितीश औश्र नायडू दोनोंं ही काफी घाघ और घुटे हुए नेता हैं। दोनों ही नेता भाजपा को पहले भी मजा चखा चुके हैं। दोनों ही बिहार चुनाव के आस पास भाजपा को दांव दे सकते हैं। दरअसल मोदी सरकार ने तीसरी बार सरकार बनने के पहले चंद्रबाबू और नितीश कुमार को खूब सब्जबाग दिखाये थे। लेकिन सरकार के आठ माह बीत जाने के बाद भी वादे पूरे नहीं किये गये हैं। इस बात से सरकार की दोनों बैसाखियां सरकार से असंतुष्ट हैं। मोदी शाह भी इस बात से नितीश नायडू की फितरत से वाकिफ हैं। इसी लिये वो किसी तरह अपने बल पर बहुमत की जुगाड़ करने में जुटे हैं।
बिहार चुनाव में ऊंट किस करवट
इसी साल के अंत में बिहार में विधानसभा चुनाव होने तय हैं। बिहार में सीधा मुकाबला नितीश कुमार और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के बीच दिख रहा है। भाजपा नितीश कुमार के कंधों पर सवार हो कर बिहार पर कब्जा करने की फिराक में है। 2020 के विधानसभा चुनाव में नितीश कुमार की खटिया खड़ी करने में एलजेपी के चिराग पासवान ने बड़ी भूमिका निभायी थी।

उस समय बिहार में लोजपा एनडीए में शामिल नहीं थी। जेडीयू और भाजपा ने मिलकर चुनाव विधानसभा चुनाव लड़ा था। जेडीयू बड़े भाई के रूप् में था और भाजपा छोटे भई के रूप में।लेकिन चुनाव परिणाम नितीश कुमार की मंशा के खिलाफ दिखा। भाजपा दूसरी बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। उसके 75 उम्मीदवार एमएलए जीते और जेडीयू के 43। आरजेडी के 75 विधायक बने। लेकिन इस बार बिहार की जनता बदलाव को तैयार है। राजद नेता तेजस्वी यादव पूरी तरह एड़ी चोटी का दम लगा दिया है।
सर्वे भी नितीश और भाजपा के खिलाफ आये
सर्वे भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं। बीजेपी और जेडीयू मिलकर चुनाव लड़ने को तैयार हैं। नितीश कुमार पिछले 20 सालोंं से बिहार में सत्ता संभाले हुए हैं। लेकिन बिहार में न तो विकास दिखता है और न रोजगार। बिहार में आज भी लोग दो जून की रोटी के लिये तरसते हैं। लेकिन सुशासन बाबू को इन समस्याओं से कोई सरोकार नहीं हैं। उन्हें तो सिर्फ किसी तरह सत्ता पर काबिज होना ही लक्ष्य है।

अब तो नितीश कुमार का लड़का निशांत कुमार भी राजनीति मे उेतरने को बेताब है। वहीं भाजपा चाहती तो नितीश कुमार को साथ रखना लेकिन मन ही मन में वो बीजेपी का मुख्यमंत्री चाहते हैं। इस बात को नितीश कुमार भी जानते हैं। इसलिये वो भाजपा और केन्द्र सरकार से दूरी बनाते दिख रहे हैं। जेडीयू ने भी सीएम पद के लिये पहले से ही नितीश कुमार की दावेदारी का ढोल पीटना शुरू कर दिया है। कुछ भी हो जाये नितीश कुमार अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते भाजपा से दूरी बनाने की पटकथा लिख चुके है। बस उस पर अमल करना बाकी है।