MP CM Shivraj made history and record win . He also gave a lesson to Modi Shah
MP CM Shivraj made history and record win . He also gave a lesson to Modi Shah

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शिवराज की इस बार चुनावी हार तय है!

कहते हैं जब बुरा वक्त आता है तो ऊंट पर सवार आदमी को भी कुत्ता काट लेता है। यह कहावत बीजेपी पर लागू हो रही है। आगामी साल में आम चुनाव होने वाले हैं। इसको लेकर पीएम मोदी से लेकर पूरा एनडीए गठबंधन एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है। पूरे देश में विपक्षी दलों के गठबंधन के बारे में ऐसा भ्रामक प्रचार किया जा रहा है कि विपक्षी दल देश से नहीं बल्कि विदेश से आयें है उनकी तुलना आतंकी संगठनों से की जा रही है। ऐसा माहौल पैदा किया जा रहा है जिससे हर तरफ नफरत की चिंगारी सुलगने लगी है। अब लोगों को लगने लगा है कि जब भी कोई चुनाव होता है तो ऐसी वारदातों में इजाफा हो जाता है। ऐसे दंगे कराने में सत्तारूढ़ दल माहिर है। ध्रुवीकरण करा कर भाजपा चुनावों में वो हिन्दू समर्थकों को अपनी ओर खींच लेती है। लेकिन कभी कभी दांव उल्टा भी पड़ जाता है। इसका जीता जागता नमूना कर्नाटक और हिमाचल में देखने को मिल गया है।

कई चुनावी राज्यों में भाजपा की हालत खस्ता

इसी साल के अंत तक मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में होने हैं। वहां भी भाजपा के जीतने के चांसेस काफी कम है। पिछले 20 सालों से एमपी में ​भाजपा की सरकार है वहां के सीएम शिवराज चौहान हैं इस वजह से प्रदेशवासियों में भारी असंतोष देखा जा रहा है। ऊपर से यह भी चर्चा है कि पार्टी के कुछ नेता भी सीएम शिवराज से नाराज चल रहे हैं। यह भी सुनने में आ रहा है कि पार्टी का नेतृत्व भी ये चाहता है कि भाजपा की सरकार बने लेकिन शिवराज सिंह को सीएम पद न मिले। यह भी सुनने में आया है कि मोदी और शाह ने भी शिवराज की तोड़ के लिये कई दिग्गज नेताओं को शह दे रखी है।

भाजपा की जीत को हार में बदलेगी नाराज भाजपा

वैसे तो यह भी चर्चा में है कि प्रदेश भाजपा में तीन प्रकार के नेता है पहला शिवराज दूसरा महाराज और तीसरा नाराज। चूंकि प्रदेश के सीएम शिवराज हैं तो लाजिमी है कि उनके साथ भारी संख्या में समर्थक नेता हैं। दूसरी ओर महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया है जिनकी गद्दारी से 2020 में मध्य प्रदेश में फिर से भाजपा की सरकार बनी है। इसलिये केन्द्रीय नेतृत्व ज्योतिरादित्य के अहसानों के तले दबी है। उनके खेमे में कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल होने वाले लगभग दो दर्जन विधायक और कार्यकर्ता हैं। तीसरा खेमा उन नाराज बीजेपी नेताओं का है जो इस बात को लेकर खासा नराज है कि पार्टी कांग्रेस से आने वाले विधायक नेताओं को सिर पर बैठा रही है लेकिन पुराने नेताओं को आगे नहीं बढ़ा रही है। चुनाव में यह एक बड़ा कारण हो सकता है कि भाजपा को मध्य प्रदेश में अपनी ही पार्टी के नाराज लेागों का सामना करना पड़े।

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव—क्या शिवराज की जीत में भाजपा ही रोड़ा

कहते हैं जब बुरा वक्त आता है तो ऊंट पर सवार आदमी को भी कुत्ता काट लेता है। यह कहावत बीजेपी पर लागू हो रही है। आगामी साल में आम चुनाव होने वाले हैं। इसको लेकर पीएम मोदी से लेकर पूरा एनडीए गठबंधन एड़ी चोटी का जोर लगा रहा है। पूरे देश में विपक्षी दलों के गठबंधन के बारे में ऐसा भ्रामक प्रचार किया जा रहा है कि विपक्षी दल देश से नहीं बल्कि विदेश से आयें है उनकी तुलना आतंकी संगठनों से की जा रही है। ऐसा माहौल पैदा किया जा रहा है जिससे हर तरफ नफरत की चिंगारी सुलगने लगी है। अब लोगों को लगने लगा है कि जब भी कोई चुनाव होता है तो ऐसी वारदातों में इजाफा हो जाता है। ऐसे दंगे कराने में सत्तारूढ़ दल माहिर है। ध्रुवीकरण करा कर भाजपा चुनावों में वो हिन्दू समर्थकों को अपनी ओर खींच लेती है। लेकिन कभी कभी दांव उल्टा भी पड़ जाता है। इसका जीता जागता नमूना कर्नाटक और हिमाचल में देखने को मिल गया है।

कई चुनावी राज्यों में भाजपा की हालत खस्ता

इसी साल के अंत तक मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में होने हैं। वहां भी भाजपा के जीतने के चांसेस काफी कम है। पिछले 20 सालों से एमपी में ​भाजपा की सरकार है वहां के सीएम शिवराज चौहान हैं इस वजह से प्रदेशवासियों में भारी असंतोष देखा जा रहा है। ऊपर से यह भी चर्चा है कि पार्टी के कुछ नेता भी सीएम शिवराज से नाराज चल रहे हैं। यह भी सुनने में आ रहा है कि पार्टी का नेतृत्व भी ये चाहता है कि भाजपा की सरकार बने लेकिन शिवराज सिंह को सीएम पद न मिले। यह भी सुनने में आया है कि मोदी और शाह ने भी शिवराज की तोड़ के लिये कई दिग्गज नेताओं को शह दे रखी है।

भाजपा की जीत को हार में बदलेगी नाराज भाजपा

वैसे तो यह भी चर्चा में है कि प्रदेश भाजपा में तीन प्रकार के नेता है पहला शिवराज दूसरा महाराज और तीसरा नाराज। चूंकि प्रदेश के सीएम शिवराज हैं तो लाजिमी है कि उनके साथ भारी संख्या में समर्थक नेता हैं। दूसरी ओर महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया है जिनकी गद्दारी से 2020 में मध्य प्रदेश में फिर से भाजपा की सरकार बनी है। इसलिये केन्द्रीय नेतृत्व ज्योतिरादित्य के अहसानों के तले दबी है। उनके खेमे में कांग्रेस से बगावत कर भाजपा में शामिल होने वाले लगभग दो दर्जन विधायक और कार्यकर्ता हैं। तीसरा खेमा उन नाराज बीजेपी नेताओं का है जो इस बात को लेकर खासा नराज है कि पार्टी कांग्रेस से आने वाले विधायक नेताओं को सिर पर बैठा रही है लेकिन पुराने नेताओं को आगे नहीं बढ़ा रही है। चुनाव में यह एक बड़ा कारण हो सकता है कि भाजपा को मध्य प्रदेश में अपनी ही पार्टी के नाराज लेागों का सामना करना पड़े।

BJP is trying to capture power in MP, But situation of BJP is very critical due to 20 yrs incumbency in state. Many Bjp Leaders are so angry with top leadership of BJP
BJP is trying to capture power in MP, But situation of BJP is very critical due to 20 yrs incumbency in state. Many Bjp Leaders are so angry with top leadership of BJP

सीएम पद मसला—एक अनार अनेक बीमार

भाजपा के लिये एक और चुनौती मुंह बाये खड़ी है। वैसे तो कांग्रेस और भाजपा में सीधा  मुकाबला दिख रहा है। लेकिन कांग्रेस का पलड़ा ज्यादा भारी दिख रहा है। जनता ने लगभग बीस साल तक एमपी में शासन किय है इसके बावजूद प्रदेश में न तो कोई रोजगार का उपाय किया गया है और न ही बेहतर शिक्षा की व्यवस्था की गयी है। बस धार्मिक यात्राओं और अनुष्ठानों के आयोेेकिलजन के बल पर भाजपा यहा सत्ता पर बनी रही है। बेरोजगारी दूर करने के लिये सरकार ने कोई ठोस योजना के बारे में सोचा ही नहीं। इस बार सीएम पद के लिये सबसे बड़े दावेदार शिवराज ही दिख रहे हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वो निर्विरोध ही सीएम बन जायेंगे। सीएम पद की रेस में गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का नाम भी जोरों पर है। इनके अलावा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा का नाम भी रेस में है। लेकिन सीएम पद के सबसे तगड़े उम्मीदवार कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने वाले केंन्द्रीय मंत्री ज्यातिरादित्य सिंधिया का नाम सबसे ऊपर चल रहा है। केन्द्रीय ​कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी एमपी के सीएम बनने की इच्छा जता चुके है। यह भी सुनने में आ रहा है कि उन्हें केन्द्र में बुलाया जायेगा। ताकि सीएम पद पर किसी अन्य नेता की ताजपोशी की जा सके।

कांग्रेस और भाजपा में सीधा  मुकाबला

भाजपा के लिये एक और चुनौती मुंह बाये खड़ी है। वैसे तो कांग्रेस और भाजपा में सीधा  मुकाबला दिख रहा है। लेकिन कांग्रेस का पलड़ा ज्यादा भारी दिख रहा है। जनता ने लगभग बीस साल तक एमपी में शासन किय है इसके बावजूद प्रदेश में न तो कोई रोजगार का उपाय किया गया है और न ही बेहतर शिक्षा की व्यवस्था की गयी है। बस धार्मिक यात्राओं और अनुष्ठानों के आयोेेकिलजन के बल पर भाजपा यहा सत्ता पर बनी रही है। बेरोजगारी दूर करने के लिये सरकार ने कोई ठोस योजना के बारे में सोचा ही नहीं। इस बार सीएम पद के लिये सबसे बड़े दावेदार शिवराज ही दिख रहे हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वो निर्विरोध ही सीएम बन जायेंगे। सीएम पद की रेस में गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा का नाम भी जोरों पर है। इनके अलावा प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा का नाम भी रेस में है। लेकिन सीएम पद के सबसे तगड़े उम्मीदवार कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल होने वाले केंन्द्रीय मंत्री ज्यातिरादित्य सिंधिया का नाम सबसे ऊपर चल रहा है। केन्द्रीय ​कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी एमपी के सीएम बनने की इच्छा जता चुके है। यह भी सुनने में आ रहा है कि उन्हें केन्द्र में बुलाया जायेगा। ताकि सीएम पद पर किसी अन्य नेता की ताजपोशी की जा सके।

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