बीएसएनएल कभी नहीं सुधरेगा
एक जमाना था जब भारत संचार निगम लिमिटेड देश का एकमात्र संस्थान था। वह महानवरत्न कंपनियों में गिना जाता था। लेकिन पिछले दस सालो में उसकी कदर जीरो हो गयी है। हालात इतनी खस्ता हो गयी है कि उसके ग्राहक एक करोड़ ही रह गयी है। जबकि देश में मोबाइल सेल उपभोक्ता सवा सौ करोड से अधिक है। बाकी 125 करोड़ मोबाइल उपभोक्ता जियो, एयरटेल और वोडाफोन आईडया के उपभोक्ता है। दिलचस्प बात यह है कि सर्विस के मामले मे बीएसएनएल ने अपनी हरामखोरी की आदत बरकरार रखी है। उसके कर्मचारियों और अफसरों ने यह सोच रखा है कि हम नहीं सुधरेंगे। जब प्राइवैट मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों ने रिचार्ज के दाम बढ़ाये हैं तब से कुछ लोगों ने अपना सिम बीएसएनएल मे पोर्ट कराने की गल्ती कर ली। और अब वो सिर धुन ली है। घर के अंदर न तो फान रिसीव होता है और न काल कनैक्ट होती है। अक्सर क्रॉस कनैक्शन होता जाता है। 5 जी के जमाने में 3 जी डाटा मिलता है वो भी घरों में सब बेकार है। हालात यह हो गये ह हैं कि लोग बीएसएनएल से प्राइवेट सर्विस प्रोवइडर की शरण में वापस जा रहे हैं।
सरकार ने बीएसएनएल को जानबूझ कर डंप किया
हमारे देश में लगभग 120 करोड़ लोग मोबाइल इस्तेमाल कर रहे हैं। 120 करोड़ में लगभग 90
प्रतिशत लोग प्राइवेट मोबाइल सर्विस प्रोवाइडर से जुड़े हैं। भारत संचार लिमिटेड निगम 2014 से पहले देश की महारत्न कंपनियों में जानी जाती थीं। लेकिन पिछले दस सालों में बीएसएनएल एक बीमार कंपनी के रूप में जानी जाती है। अब तो लोग बीएसएनएल के बारे में यह कहते है कि भाई साहब नहीं लेगेगा। उसके पीछे केन्द्र की मोदी सरकार की सोच भी है। उसकी निगाह में बीएसएनएल बेकार और घाटे की कंपनी है। यहां काम करने वाले लोग मेहनती नहीं हैं। उनको सरकार मोटी मोटी सैलरी दे रही है उसके बावजूद वो लोग काम करने में मन नहीं लगाते है।
ऐसे में सरकार ने यह मन बना लिया है कि इसे किसी उद्योगपति को सेल कर दिया जाये। जिससे सरकार पर इनकी सैलरी का बोझ खत्म हो जायेगा। खरीदने वाली कंपनी अपने हिसाब से कर्मचारियों को रखेगी और उनकी सैलरी को तय करेगी। खास बात यह है कि केन्द्र सरकार किसी प्रकार के खर्चे से बचना चाहती है। यही वजह है कि देश में दूर संचार के क्षेत्र में आधा दर्जन कंपनियां आ गयी हैं।
पीएम ने जियो को प्रमोट कर बीएसएनएल को डुबोया
आज से आठ नौ साल पहले मुकेश अंबानी ने जियो को लांच किया। मुकेश अंबानी ने नरेंद्र मोदी के फोटो का इस्तेमाल जियो के लिये विज्ञापन किया था। इतिहास में यह पहली बार हुआ जब किसी निजी कंपनी के लिये पीएम ने विज्ञापन के लिये अपना फौटो इस्तेमाल किया था। वो तब जब सरकारी दूर संचार की कंपनी भारत संचार निगम लिमिटेड खस्ताहाल में है। वर्तमान मंें लगभग जियो के 52 करोड़ सर्विस कन्ज्यूमर हैं जबकि एयरटेल के 44 करोड़ और वोडाफोन आइडिया के 25 करोड़ कन्ज्यूमर हैं। सरकारी कंपनी के लगभग 12 करोड़ उपभोक्ता हैं।
मोबाइल रिचार्ज पर 25 प्रतिशत तक इजाफा
इसी साल जुलाई माह में जियो, एयरटेल और वोडाफान आइडिया ने मोबाइल रिचार्ज पर भारी बढ़ोतरी कर दी जिससे आम उपभोक्ता की जेब पर डाका पड़ गया है। इससे पहले एक मोबाइल सर्विस उपभोक्ता पर 155 रुपये अधिक कंपनी को मिलता था। लेकिन कंपनी ने बीस से 25 प्रतिशत तक रिचार्ज पर वृद्धि कर दी जिससे रिचार्ज कराने पर भी सोचना पड़ता है। मान लीजिये कि जियो के 50 करोड़ कन्ज्यूमर हैं तो प्रति उपभोक्ता उसकी आय 25 से 30 रुपये बढ़ गये। इसी तर्ज पर एयरटेल और वोडाफोन आइडिया के रिचार्ज में भी बढ़ोतरी की गयी है। मोबाइल सर्विस प्रोवाइडिग कंपनियों की आय में बेतहाशा वृद्धि हुई है।
बीएसएनएल से भी मिली निराशा
सबसे अहम बात यह है कि इन सभी कंपनियों पर करोड़ों रुपये का बकाया बाकी है सुप्रीम कोर्ट से इन कंपनियों को राहत भी मिल जाती है। इसका मतलब साफ है कि धन्ना सेठों और आम आदमी के लिये दोहरा मापदण्ड है। रिचार्ज की कीमत बढ़ने से आम लोग काफी आहत हुए हैं। लेकिन मोबाइल के लोग लती हो चुके हैं। आम जीवन में मोबाइल इस कदर समा गया है कि उसके बिना लोगों के लिये जीना बहुत मुश्किल हो गया है। ऐसे में लगभग एक करोड़ से अधिक उपभोक्ताओं ने बीएसएनएल में सिम पोर्ट इस उम्मीद से करा लिया कि शायद भारत संचार निगल की सुविधाओं और सेवाओं में सुधार आ गया होगा। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। सुविधाओं औश्र सेवा पहले से भी बद्तर हो गयी है। डाटा की स्पीड भी इतनी स्लो है कि कुछ भी लोड होने की नौबत नहीं आती है। जिन लोगों ने बीएसएनएल में सिम पोर्ट करवाया है वो नेटवर्क न होने का रोना रोते दिखते है। कॉल ड्राप और क्रास कनैक्शन की भी शिकायत बनी रहती है। पूरे शहर में नेटवर्क खास इलाके में ही मिलता है। घरों के अंदर तो कॉल कनेक्ट ही नहीं होती है। कॉल आने पर कनैक्ट नहीं होता है।
किसान आंदोलन के समय जियो के उपभोक्ता घटे
2020 में जब किसानों ने देश व्यापी आंदोलन तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली बार्डर पर सवा साल तक आंदोलन किया था। कानूनों के तहत अंबानी और अडाणी को फायदा पहुंचाने के लिये सरकार ने तीन कृषि कानूनों को लागू करने की साजिश रची जिसके विरोध में किसानों ने दिल्ली के बार्डर पर मुश्किलों से भरा आंदोलन किया जिसेमें सात सौ से अधिक किसानों की शहादत हुई। किसानों ने मुकेश अंबानी की कंपनी जियो के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगाने की मांग किसानों से की।
किसानों ने सरकार के मित्र अंबानी को भी सबक सिखाया
सरकार ने खेती के नये कानूनों के तहत मुकेश अंबानी को अनाज रखने के लिये देश के अधिकतर शहरों में गोदाम बनाने की सलूलियत दीं। इसके विरोश में जब किसानों ने जियों का विरोध का ऐलान कर दिया। उस समय जियो और रिलायंस के उत्पादों की खरीद न करने की अपील मोर्चा कर रहे किसानों ने की थी। इससे भी मुकेश अंबानी के व्यवसाय का काफी धक्का लगा था। विरोधी दल के नेता मोदी सरकार पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि वो धन्ना सेठों की सरकार है। किसानो और गरीब असहाय लोगों के सरोकारों से पीएम मोदी और सरकार का कोई सरोकार नहीं है। देश की सरकारी संस्थाओं को मोदी सरकार ने पिछले दस सालों में औने पौने दामों में अंबानी और अडाणी को सौंप दिया है। इतना ही नहीं अपने मित्रों को संपत्ति खरीदने के लिये बैंकों से रियायती दरों पर लोन भी दिलवाया है। खास उद्योगपतियों ने बैंकों का लोन भी वापस नहीं बल्कि सरकार ने उनके लोन को राइट आफ कर दिया। जिससे बैंकों का भारी नुकसान हुआ है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here