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सबसे अलग कुछ अतिता से प्रभावित कूल बालिकाओं ने नीरज पर सेक्सुअल टिप्पणी करना भी शुरु कर दी हैं। निम्न दर्ज़े की सेक्सुअल चैट ट्विटर और इंस्टाग्राम पर पढ़ी जा सकती है। यही बात किसी भारतीय महिला एथलीट के लिए कहीं बालकों ने कर दी होती तो अभी तक फेमिनिस्ट वीरांगनाओं ने ज़मीन- आसमान एक कर दिया होता और भारतीयों बालकों के संस्कार और पुरखे गाली खा-खा कर कहीं औंधे मुँह पड़े होते।
इन बालिकाओं को रोकने वाला और इस ओछी हरकत पर उनपर कानूनी वार करने वाला कोई व्यक्ति अभी आगे नहीं आया है। यही सब लड़कों ने किसी महिला एथलीट पर लिखा होता तो अभी तक जाने कितनी FIR हो जाती मैजिक मीडिया की लाइट में आने के लिए। मैं जनता के इस दोगलापन पर हैरान हूं।
नीरज चौपड़ा के “नेशनल हीरो” बनते ही उनको ” नेशनल क्रश ” घोषित कर दिया गया। और साथ ही एक बेहद ओछी सी होड़ शुरू हो गयी ये साबित करने की कि वे हमारे गली, मोहल्ले , स्कूल, शहर और जाति , धर्म और समुदाय से आते हैं।
इधर कुछ लोग पास्ट में डुबकी लगाकर उनके 2019 के ट्वीट्स निकाल कर लाये जिसमें उन्होंने मोदी जी को एप्रिशिएट किया था। बस उसके बाद “नेशनल क्रश” अचानक ” संघी” में बदल गया औऱ भारतीय वीर बालाओं ने नीरज चौपड़ा को गंदे शब्दों से रौंद डाला। मतलब मोदी जी से नफरत इस हद तक है कि लोगों ने नेशनेलिटी को और राष्ट्रीय उपलब्धि को भी साइड में रख दिया।
इधर कुछ महापुरुष डुबकी मारकर उनकी वो टवीट निकाल लाये जिसमें उन्होंने किसानों का समर्थन करते हुए मोदी सरकार की आलोचना की थी। लीजिये साहब उसके बाद नीरज चौपड़ा को मोदी समर्थक तबका गरियाने में लग गया।
” तेरी राष्ट्र के लिए उपलब्धी गयी तेल लेने तूने मोदी को गलत कैसे बोला बे । मोदीजी चाहें तो तेरे जैसे हज़ार एथलीट खड़ा कर लेंगे ” वगैरा-वगैरा की बातें शुरु हो गयीं। (हालांकि ये भी मूर्खता की पराकाष्ठा है )
आप समझिये की ये कितना खतरनाक है । राजनीतिक नफ़रत की लहर इतनी तगड़ी है कि लोगों ने राष्ट्रीयता को भी उसके नीचे लाकर रख दिया।
नीरज का राजनीतिक वियु क्या है औऱ वे अपनी पर्सनल लाइफ में क्या करते हैं उसका उनके ओलंपिक गोल्ड से वास्ता नहीं है । उनकी राष्ट्रीय उपलब्धि के आगे उनके राजनीतिक वियू की कोई कीमत ही नहीं है। पर लोगों को उनकी जीत से अधिक ये साबित करने में खुशी मिल रही है कि उनकी जीत फ़लाँ धर्म, समुदाय , जाति या बिरादरी के कारण है। या लोग उनको इसलिए ट्रोल कर रहे हैं कि वे उनकी राजनीतिक विचारधारा के नहीं हैं। ।
इस सबके बीच नीरज का अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण , ज़िद और मेहनत को लोग भूल गए। उनके शरीर के दर्द और मन के भय को किनारे रखकर लोग छद्दम राजनीतिक समर्पण की लड़ाई लड़ने में लग गए। हालांकि नीरज इस सोने को जीतने के बाद उपलब्धियों की उस ऊंचाई पर जा बैठे हैं कि उसके नीचे जनता में क्या द्वंद और युद्ध चल रहा है उसे देखने की ना उनको फुरसत है ना उनके पास वक़्त है। उनके लिए ये बेबकूफियां कोई मायने नहीं रखती हैं । वे अपनी उपलब्धियों के जश्न में मगन हैं।
मैंने ज़िक्र करना इसलिए ज़रूरी समझा की जिस उपलब्धि को लोग धर्म में और क्षेत्र में बाँट कर एक दूसरे पर तंज कस रहे हैं वो उन लोगों का सम्मिलित प्रयास और विश्वास है जिनका आपकी धार्मिक विचारधारा और धर्म आधारित राजनीति से कोई सरोकार नहीं है। वे बस अपना काम पूरी ईमानदारी और समर्पण से कर रहे थे।
मैं ” अति ” की मानसिकता के इस दौर को समझने का प्रयास कर रही हूँ जहाँ पल में कोई हीरो या ज़ीरो घोषित कर दिया जाता है। लोगों की भावनाएं कितनी नासमझ और बचकानी हैं कि बेहद हल्के में अभिव्यक्त की जा रही हैं।
लोगों को एक दूसरे को अलाँ-फ़लाँ नाम के तमगे पहनाने की बुरी आदत पड़ गयी है।
मुझे वे सारे लोग महान मूर्ख और जोकर नज़र आते हैं जो सोशल मीडिया पर टाइटल बांटते फिरते हैं। तुम दक्षिणपन्थी , तुम राइटिस्ट , तुम संघी , तुम लिबरल, तुम ग़ांधी के चेले, तुम गोडसे वाले , तुम माफी सावरकर , तुम अंधभक्त तो तुम चिंटू , तो तुम फेमिनिस्ट तो तुम ये तुम वो।
अरे बस करो अब …इतनी सारी घृणा के बीच लोग खुशी को एन्जॉय करना भूल गए हैं। देश की उपलब्धियों का जश्न मनाना भूल गए हैं। मिलकर हँसना खिलखिलाना भूल गए हैं। ” राजनीतिक तबकों में बंट रहे लोग भारतीय कहलाना भूल गए हैं “
–निधि नित्या
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