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सरकार को जन भावनाओं की अगर इतनी चिंता थी तो राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार के समकक्ष या उस से उच्चतर एक अन्य खेल पुरस्कार मेजर ध्यानचंद के नाम पर स्थापित कर सकती थी, जैसे मेजर ध्यानचंद खेल महारत्न पुरस्कार या इसी तरह का कुछ और। राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार में 25 लाख रुपये नगद दिए जाते हैं। भारत सरकार यदि सचमुच खिलाड़ियों को पुरस्कृत करना चाहती थी तो मेजर ध्यानचंद के नाम पर पुरस्कार स्थापित कर पुरस्कार की राशि 1 करोड़ रुपया कर सकती थी, पुरस्कार की राशि के साथ अन्य सुविधाएँ भी दे सकती थी। इससे मेजर ध्यानचंद के नाम पर स्थापित पुरस्कार की अहमियत भी अधिक हो जाती और पुरस्कृत होने वाले खिलाड़ी भी कई गुना अधिक लाभान्वित हो जाते। ऐसा न कर पुरस्कार भी वही, पुरस्कार की राशि भी वही 25 लाख रुपये…. सिर्फ़ पुरस्कार के नाम से राजीव गांधी के नाम को हटा दिया जाना दिखलाता है कि सरकार पुरस्कार या पुरस्कार की राशि, खिलाड़ी, खिलाड़ियों को होने वाले लाभ से मतलब नहीं रखती है बल्कि उसे सिर्फ़ राजनीति के रूप में इस्तेमाल करने का मक़सद है। यह एक घटिया सोच है और इस तरह के कृत्य की निंदा की जानी चाहिए।
राजीव रॉय
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