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नायडू और नितीश पाला बदलने वाले हैं!
मोदी शाह की रातों की नींद उड़ी
केन्द्र सरकार के सात आठ माह में ही एनडीए में टूट नजर आने लगी है। कहने को तीन बार नरेंद्र मोदी पीएम बन चुके हैं लेकिन मोदी शाह को सुकून नहीं मिला है। दो बार पीएम बनने के बाद मोदी शाह पूरी तरह से तानाशाह हो गये थे। इस बार भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने उनके कार्यकलापों पर प्रतिबंध लग गया है। इस बार उनकी सरकार जेडीयू और टीडीपी की बैसाखियों पर टिकी हुई है। इस बात से मोदी शाह बेचैन हैं कि वो अपनी मनमानी नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें नितीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की खुशामद करनी पड़ रही है। लेकिन ताजा हालात तो यह हैं कि सरकार की दोनों बैसाखियां भी वर्तमान सरकारीभाजपा प्रक्रियों से नाखुश हैं। उनकी नाराजगी केन्द्रीय सरकार को भारी पड़ सकती है। ये बात नहीं है कि इन हालातों की जानकारी मोदी शाह को नहीं है। इसलिये ने अपनी पार्टी के दिग्गज नेताओं को उन दलों के सांसदों के पीछे लगा दिया है। इसमे वो दल भी शामिल हैं जो मोदी सरकार को समर्थन दे रहे हैं। उनमें रालोद, लोजपा, हम, शिवसेना, एनसीपी अपना दल के सांसद भाजपा की नजर में हैं। भाजपा किसी तरह 272 सांसद करने की तैयारी कर रही है। लेकिन यह बात एनडीए में शामिल दल भी समझते हैं कि भाजपा जब तक कमजोर हैं तभी तक वो छोटे समर्थक दल को भाव देगा है।
मुस्लिम वक्फ बोर्ड और परिसीमन का मुद्दा
मोदी शाह ने कुछ विवादित मुद्दे छेड़ कर एनडीए के कुछ घटक दलोंं को धर्मसंकट में डाल दिया है। उनके लिये मुस्लिम वक्फ बोर्ड और दक्षिण भारत में परिसीमन के मुद्दे गले की फांस बन गये हैं। न निगलते बन रहा है और न उगलते। उन्हें लगने लगा है कि मोदी के साथ रहे तो उनकी क्षेत्रीय राजनीति हमेशा के लिये खत्म हो जायेगी। लेकिन वर्तमान में उनका मोदी शाह के चगुल से निकलना भी मुश्किल है उन्हें मालूम है कि एनडीए से हटने का मतलब जांच एजेंसियों की परेशानियों से गुजरना होगा। ऐसा वो देख चुके हैं कि किस तरह से जांच एजेंसियों का डर दिखा कर राजनीतिक दलों को तुड़वाया गया है। मोदी शाह की दो मजबूत बैसाखियां जेडीयू और टीडीपी भी परेशान हैं कि अगर वो मोदी शाह की बातों का विरोध नहीं करते हैं तो उनकी क्षेत्रीय राजनीति हमेशा के लिये खत्म हो जायेगी। दोनों ही मुद्दों पर विपक्ष के बहुत सारे नेता नितीश कुमार और नायडू को समझा रहे हैं कि मोदी शाह व भाजपा बहुत मतलबी और मौका परस्स्त हैं। इसलिये अभी भी मौका है कि वो अपनी राजनीति को बचाने के लिये एनडीए से किनारा कर लेना चाहिये। बहुत संभव है कि यह बात नितीश और नायडू को समझ में आ जाये। इससे देश की राजनीति और सत्ता में बदलाव आ जाये।
नितीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू की फितरत एक है
एक बात साफ है कि नितीश और नायडू सीधे साधे नेता नहीं हैं। दोनों ही काफी घुटेे हुए नेता है दोनों ने ही राजनीतिक पकड़ बनाये रखने के लिये पार्टी को हड़पा है। नितीश कुमार ने शरद यादव की पार्टी जनता दल यू को हड़प कर शरद यादव को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। नितीश कुमार का दामन भी दागदार है वो कोई दूध के धुले नहीं हैं।
लोजपा को तुड़वाने में भी नितीश कुमार की भूमिका रही है। इसी तरह चंद्रबाबू नायडू ने भी अपने ससुर एनटी रामाराव की पार्टी तेलगू देशम पार्टी को धोखा दे कर हड़पा है। इस बात से साफ है कि अपनी राजनीति को चमकाने के लिये लोगों ने अपने लोगों की ही पीठ में छुरा घोंपा है। नितीश और नायडू दोनों ही पाला बदलने में महारथी हैं। नितीश कुमार अपनी सत्ता बचाने के लिये कई बार एनडीए में शामिल हुए और पल्टी मार चुके हैं। इस बार वो पनल्टी नहीं मारेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं है। ऐसा ही कुछ हाल नायडू का जिसने अपने ससुर के खिलाफ साजिश रच सत्ता हासिल की है। अपने स्वार्थ के लिये उन्होंने कांग्रेस का भी दामन थाम चुके हैं। इसलिये वो कब तक एनडीए में हैं इसका कोई भरोसा नहीं है। ऐसा वो कर भी चुके है। वैसे भी मोदी शाह ने आंध्र् प्रदेश सरकार से जो वादा किया था अभी तक पूरा नहीं किया है। ये दोनों घाघ नेता अपनी राजनीति को जिंदा रखने के लिये मोदी शाह को भी गच्चा दे सकते है। सरकार बनने के एक साल पहले मोदी सरकार ने चंद्रबाबू नायडू को जेल भिजवाया था। यह बात बाबू कैेसे भूल सकते हैं। एनडीए को समर्थन भी इसी लिये दिया गया है कि जांच एजेंसियों के कहर से बचा जा सके। नायडू जानते हैं कि केन्द्र सरकार अपनी विपक्षी दलों के नेताओं को ठिकाने लगाने को एजेंसियां का इस्तेमाल करना बखूबी जानती है।