पिछले दो तीन माह से कोरोना के कहर से बचने के लिये देश में तालाबंदी चल रही है। सारे कारखानों और रोजगार पर भी कोरोना की मार पड़ी है। दिहाड़ मजदूरों के साथ प्राइवेट आफिसों में भी ताले पड़ गये। महानगरों में रहने वालों के जीवन मे एकाकीपन और घरों में सन्नाटा फैल गया है।

देश की राजधानी में रहने वाले प्रतीक का हाल भी खराब होते जा रहे हैं। पिछले चार माह से तनख्वाह नहीं मिली है। बहाना वही कि कोरोना की वजह से सारे फंड रुक गये हैं। घर के खर्च के लिये जमा पूंजी का ही सहारा है। वैसे भी प्राइवेट नौकरी में मिलता ही कितना है। बेटे के जॉब लगने से थोड़ी राहत मिली थी। उसका भी आफिस दो माह से बंद चल रहा है। दिन रात यही फिे्र रहती कि आने वाले समय में घर का खर्च कैसे चलेगा। इसी उधेड़बुन में सारा दिन गुजर जाता। सुबह उठ कर नहाना और खाना खा कर आराम करना और कुछ देर ठीवी देखना।

प्रतिभा—सुनिये आज दस तारीख हो गयी है दो एक दिन में किराया भी देना होगा।

प्रतीक—जानता हूं किराया तो देना ही होगा। फिलहाल तो कोई दूसरा रास्ता नहीं दिख् रहा।

प्रतिभा—नीलम जी का मैसेज आया है कि किराया देने नहीं आयी। क्या कोई परेशानी है?

प्रतिभा खर्चों के लेकर कुछ ज्यादा ही संजीदा रहती है। किफायत के साथ खरीदखदारी करना उसकी आदत में शुमार है। प्रतीक को उसकी यह आदत कभी कभी अखरती थी। दो रुपये बचाने के लिये वो दो किमी दूर जा कर सामान खरीदती थी। भले ही उसे पैदल चलकर जाना पड़े। लेकिन वो यह भ समझता कि यह सब कुछ रुपये बचाने के लिये ही करती थी। अगर वो ऐसा न करती तो थोड़ा बहुत पैसा घर में है वो नहीं होता।

प्रतीक और उसके बेटे दोनों ही घर पर हैं जिसकी वजह से घर में प्रतिभा के लिये काम भी बढ़ गया है। ग्यारह बजे तक नाश्ता और उसके दो तीन घंटों के बाद दोपहर का खाना और चार बजते बजते शाम की चाय के साथ कुछ भी कुछ खाने को चाहिये होता। ऐसे में प्रतिभा की दिनचर्या ही बदल गयी थी। सामान्य दिनों में तो दस बजे तक प्रतीक और उसका बेटा दोनों ही आफिस चले जाते थे। सात बजे के बाद ही दोनों घर पहुंचते है। इस बीच प्रतिभा के लिये समय काटना मुश्किल हो जाता।

प्रतीक और उसके बेटे दोनों ही घर पर हैं जिसकी वजह से घर में प्रतिभा के लिये काम भी बढ़ गया है। ग्यारह बजे तक नाश्ता और उसके दो तीन घंटों के बाद दोपहर का खाना और चार बजते बजते शाम की चाय के साथ कुछ भी कुछ खाने को चाहिये होता। ऐसे में प्रतिभा की दिनचर्या ही बदल गयी थी। सामान्य दिनों में तो दस बजे तक प्रतीक और उसका बेटा दोनों ही आफिस चले जाते थे। सात बजे के बाद ही दोनों घर पहुंचते है। इस बीच प्रतिभा के लिये समय काटना मुश्किल हो जाता। लेकिन जब से लॉकडाउन हुआ लोगों का आफिस जाना बंद हुआ तब से तो उसका जीना हराम हो गया है। चकरघिन्नी की तरह सुबह से शाम तक काम में ही लगी रहती है। क​कहते हैं कि जब आदमी के पास कोई काम नही होता तब कुछ ज्यादा ही भूख लगती है।

प्रतिभा ने जब से मकान मा​लकिन का मैसेज पढ़ा तभी से उसका दिमाग काम नहीं कर रहा है। पिछले माह में तो किराया खुद दे कर आयी थी। इस बार चार पांच दिन ज्यादा हो गये हैं। मकान मा​लकिन किराये को लेकर काफी संजीदा रहती है। पिछले तीन साल में उसने मकान में कोई मरम्मत नहीं करायी है कुछ भी कहो टाल मटोल कर देती। वैसे यह आदत सभी लैंड लॉर्ड की होती है। किराया समय पर मिलना चाहिये कोई परेशानी हो तो अपनी गांठ से लगाओ। यह कहना गलत नहीं होगा कि वो पैसों को लेकर काफी सतर्क र​हती है। वहीं दूसरी ओर पिछले दो ढााई साल में प्रतीक ने अपने रूम का किराया भी नहीं बढ़ाया है। वैसे दूसरे मकान मालिक 11 माह बाद दस प्रतिशत किराया बढ़ा देते हैं। प्रतिभा ने किसी तरह मकान का किराया न बढ़ाने पर राजी कर रखा है।

प्रतीक से इस मुद्दे पर बात भी  हो चुकी है। प्रतीक ने कह ​भी दिया कि किराया तो देना ही होगा। इस बार नहीं दिया तो अगले माह दोगुना हो जायेगा। आमदनी न होने पर दो माह का किराया निकालना मुश्किल हो जायेगा। पता नहीं कब तक लॉकडाउन चलेगा। कब से आमदनी का जरिया शुरू होगा।

आखिरकार प्रतिभा ने मकान मालकिन ने यह मैसेज कर दिया कि उसके पैर में चोट लग गयी है। इसलिये वो घर नहीं आ सकेगी। अपने बेटे को घर भेज दें। किराया दे दिया जायेगा। दो एक दिन में वो घर पर आ कर किराया दे जायेगी। प्रतिभा ने सोचा आज वो किराया देने जायेगी उसने फोन कर मकान मालकिन से कह दिया कि वो शाम को दूध लेने जायेगी तो आपसे मिल कर किराया दे जायेगी।

शाम चार बजे जब वो दूध लेने को घर से निकली तो मकान का किराया दो बार गिना। एक बार प्रतीक से भी गिनवाया। मकान मालिक के घर पास पहुंच कर उसने फोन कर मकान मालकिन से नीचे झोला लटकान को ​कहा। फोन उसके बेटे ने उठाया। लेकिन बेटे ने अपनी मां को जगा कर बताया कि प्रतिभा आंटी किराया देने के लिये घर के नीचे खड़ी है। वो खुद मकान की बालकॉनी में आयीं और वहां से झोला लटका दिया। प्रतिभा ने पहले की तरह मकान का किराया उन्हें दिखाते हुए झोले में रख दिया। मकान मा​लकिन ने झोला खींच लिया।

यह देख प्रतिभा दूध लेने के लिये मदर डेयरी की ओर चल पड़ी। इतने में मकान मालकिन की आवाज सुनायी दी। उसने सोचा कि मैंने तो पूरे गिन कर नोट रखे थे फिर क्या हो गया। किसी आशंका से उसका मन कांप गया। मन ही मन में उसने ईश्वर को याद किया। उसने मकान की बालकॉनी की ओर देखा। मकान मालकिन ने कहा— रुको प्रतिभा। कुछ कहना है।

इतना कह कर उसने झोला फिर से नीचे लटका दिया। प्रतिभा ने सवालिया निगाहों से म​कान मा​लकिन की ओर देखा।

मकान मा​लकिन ने प्रतिभा की ओर देखा और— प्रतिभा मैं तुम्हें एक हजार रुपये वापस कर रही हूं क्योंकि तुम ने कभी किराया नहीं रोका चाहे कैसे भी क्यों न हों। प्रतिभा ने जब यह सुना तो वो अवाक रह गयी। यह वही औरत है जो किराये के पैसौं के लिये किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करती थी। आज हाथ में आये रुपयों से वापस कर रही है। अचानक उसके लिये प्रतिभा के मन में आदर व सम्मान के भाव उमड़ आये। घर आकर उसने अपने पति से जब यह बात बतायी तो प्रतीक भी हैरान रह गया कि अचानक इतना परिवर्तन कैसे हो गया। मकान मालकिन और प्रतिभा के स्वभाव में। प्रतिभा भी जो हमेशा मकान मालकिन के लालची होने की बात हमेशा करती थी आज वो उसकी तारीफ करते नहीं अघा रही है।

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