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देश की पहली महिला जस्टिस

देश की पहली महिला जस्टिस, जिन्होंने जज बनने से पहले चुनाव भी लड़ा और जीता भी। देश की पहली महिला हाईकोर्ट जज अन्ना चांडी का जन्म त्रिवेंद्रम के एक सीरियन ईसाई परिवार में हुआ था। वे समाज सुधारक थीं और महिलाओं के अधिकारों के लिए उन्होंने कई काम किए। 1948 में वो जिला जज और 1959 में पहली महिला हाईकोर्ट जज बनीं।
पहली महिला जज अन्ना चांडी का प्रेरक इतिहास
अन्ना चांडी 1926 में केरल राज्य की पहली लॉ ग्रेजुएट बनीं। वो मलयालम पढ़ना चाहती थीं। टीचर ने कहा कि पास भी होगी इसमें शक है। उन्होंने टीचर की चुनौतियों को स्वीकार किया और कड़ी मेहनत से डिस्टिंक्शन हासिल किया। कानून पढ़ने गईं। खिल्ली उड़ाई गई, महिला और कानून ! एक कामयाब वकील की शोहरत हासिल करके उन्होंने ऐसे लोगों को बगले झांकने को मजबूर कर दिया। असेंबली का पहला चुनाव हार गईं। हारने के बाद उनको नीचा दिखाने के लिये उनके चरित्र पर लांछन लगाये गये। अपने संपादन में निकलने वाली पत्रिका के संपादकीय के जरिए मुंह तोड़ जवाब दिया। अगले चुनाव में जीत दर्ज करके बताया कि महिलाएं किसी से कम नहीं। विवाहित महिलाओं की नौकरी पर सवाल उठे। महिला अधिकारों की इस प्रबल पैरोकार ने अपनी पैनी दलीलों से लोगों को चुप करा दिया। मुंसिफ बनीं। जिला जज की तरक्की पर नहीं थमीं। हाइकोर्ट की पहली महिला जज बनने का गौरव हासिल किया। आज का नहीं,यह 20वीं सदी का शुरुआती दौर था, जब त्रावनकोर (केरल) की एक युवती महिलाओं के लिए वर्जित माने जाने वाले क्षेत्रों में सिर्फ दखल नहीं अपनी प्रभावी उपस्थिति दर्ज करा रही थी। वो अन्ना चांडी थी.
लड़की और कानून की पढ़ाई !
4 मई, 1905 को त्रिवेंद्रम के एक सीरियन ईसाई परिवार में जन्मी अन्ना चांडी की खुशकिस्मत थी कि अन्य राज्यों की तुलना में त्रावनकोर (केरल) का मातृसत्तात्मक समाज महिलाओं को लेकर कुछ प्रगतिशील था। उस दौर में भी राज्य में लड़कियों के लिए पढ़ने के अवसर थे। लेकिन सब कुछ अनुकूल ही नहीं था। ऐसे भी क्षेत्र थे,जहां उनकी उपस्थिति पुरुषों के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण मानी जाती थी। अन्ना चांडी को त्रिवेंद्रम के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज में दाखिले के समय इसका कटु अनुभव हुआ। साथी युवकों ने खिल्ली उड़ाते हुए कहा कि लड़की होकर कानून पढ़ना चाहती हो! इरादों की पक्की अन्ना ने फब्तियों को दरकिनार किया. 1926 में वे राज्य की पहली लॉ ग्रेजुएट बनीं.
सिर्फ वकील की भूमिका स्वीकार नहीं
आगे अदालतों में एक वकील के तौर पर अन्ना की प्रतिभा ने विपक्षी वकीलों को कायल किया. जज उनकी दलीलों को गौर से सुनते थे. कम वक्त के भीतर ही अन्ना ने क्रिमिनल साइड की एक काबिल वकील की अपनी पहचान बना ली। लेकिन अन्ना लॉ प्रेक्टिस तक ही सीमित रहने को तैयार नहीं थी. समाज और खासतौर पर महिलाओं को उनके अधिकारों के लिए सजग करने के लिए वे हर मुमकिन फोरम का इस्तेमाल करना चाहती थीं।
महिला स्वाभिमान की लड़ाई में योगदान
24 साल की अन्ना उस कार्यक्रम में एक श्रोता के हैसियत से मौजूद थीं, जिसमें नौकरियों में महिलाओं के आरक्षण पर बहस चल रही थी. टी.के. वेल्लु पिल्लई परिवारों की सुख – शांति बरकरार रखने के लिए विवाहित महिलाओं को नौकरियों से दूर रखने की जरूरत बता रहे थे. अन्ना अधिक देर तक धैर्य नहीं रख सकीं. उन्होंने मंच पर पहुंचने की इजाज़त हासिल की. वहां तथ्यों–तर्को से भरपूर अन्ना का भाषण किसी अदालत की कार्यवाही का नजारा पेश करने वाला था।

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