भारत में जब किसी लड़की की शादी होती है तो प्राय: यह ही कहा जाता है कि अब तेरी ससुराल ही तेरा परिवार है उनकी खुशी में ही तेरी खुशी है उनकी सेवा सत्कार करना ही तेरी जिम्मेदारी और कर्तव्य है। मां का घर सिर्फ दो चार दिन के लिये ही होगा। ससुराल में तुझे दुख मिले या अपमान तुझे वहीं निभाना होगा। डोली में बैठ कर जा रही है अर्थी पर ही वहां से निकलेगी। हां शहरों की लड़कियां इन बातों पर पूरी तरह से अमल नहीं करती है। वो अपने अधिकारों के प्रति काफी सजग हो गयी है लेकिन काफी सारी लड़कियां अभी भी अपने अधिकारों के प्रति सजग भी नहीं हुई हैं।आजाद भारत के सफेदपोश समाज में पुरुष औरत को यौन सुख की वस्तु समझता है फिर चाहे वह पत्नी हो…गर्लफ्रेंड हो या बाजार से खरीदा हुआ जिस्म हो। लोगों को तो नारी जिस्म की भौगोलिक जानकारी करनी होती है। यूं तो विवाह दो जिस्मों के मिलन के साथ साथ दो आत्माओं का मिलन भी कहा जाता है…पर, यकीन मानिए सिर्फ कहा ही जाता है…होता नहीं है ऐसा।
क्योंकि पुरुष द्वारा पत्नी पर खुद को थोप दिया जाता है। यह नहीं कहा जा सकता कि सेक्स की आवश्यकता औरत की नहीं होती… उसे भी होती है, लेकिन वह बहुत ज्यादा डिवोटेड होती है पुरुष की अपेक्षा। यदि पुरुष की इच्छा नहीं है तो पत्नी उसे बाध्य ही नहीं कर सकती कि उसके साथ सेक्स करें। लेकिन, अगर पुरुष की इच्छा है और पत्नी की नहीं…तो वह अपनी नाराज़गी जता देगा या तो अपने व्यवहार से…या फिर अपनी आंखों से…या फिर अपने शब्दों से या मारपीट कर उसे चोट पहुंचाएगा। जिसके चलते पत्नी उस स्थिति से बचने के लिए स्वयं को मर्जी ना होते हुए भी सौंप देती है…जबकि….एक वेश्या अपना जिस्म अपनी शर्तों पर छूने देती है…जिसको आप पैसे देकर समय लेते है…1 घंटे- 2 घंटे या पूरी रात…अपनी औकात के हिसाब से। वह अपना जिस्म कुछ शर्तों पर ही आप को सौंपती है। जैसे वह पहले डिसाइड करवा लेती है कि उसे क्या-क्या करना मंजूर है और क्या क्या नहीं। वो किसी ऐसी हरकत की इजाजत नहीं देती जिसे वो नहीं चाहती पर पुरुष करना चाहता है।
लेकिन पत्नी के साथ ऐसा कुछ नहीं…वह आंखें बंद किए हुए…एक सांस लेती हुई लाश की तरह से पड़ी रहती है और पुरुष उसके ऊपर चढ़ाई कर देते हैं। इधर से मोड़ा, उधर से मोड़ा और शुरू हो गए। पत्नी मन ही मन कसमसाती रहती हैं…आँखें भींच कर वासना के खेल के खत्म होने का बेसब्री से इंतजार करती है। लेकिन मन ही मन वह बहुत आहत है, दुखी है, परेशान है। क्योंकि उसके दिमाग में कहीं न कहीं चल रहा होता है कि काश! मुझे भी ढंग का पति मिला होता…अर्थात मर्द इस समय उसके पति नहीं…आप उसके शरीर के उपभोक्ता मात्र है…वह भी फ्री वाले।
जबकि वेश्या के साथ आप अगर जरा सा भी उसकी इच्छा के विरुद्ध कुछ करते हैं तो वह तपाक से आपके मुंह में बोलती है…कमीने टांग तोड़ेगा क्या ?? टांगे उठा कर सिर पर रखना है क्या? फैला कर खुद भी घुसेगा क्या? तमीज से कर, क्या मुंह से निकाल देगा !! वेश्या के साथ यह कार्यक्रम यदि 1 घंटे के लिए तय हुआ है तो 1 घंटे से 1 मिनट भी वह आपको अपने पास नहीं रहने देगी और हां दो बार का एक्स्ट्रा पैसा छाती पर चढ़ कर ले लेती है। लेकिन पत्नी के साथ ऐसा नहीं होता है…आप पत्नी को रात में ही रौंदते हैं और सुबह नींद में ही उसको पीछे से घुमा के फिर से शुरू हो जाते हैं….वह आधी नींद में आधी जागी…अनिच्छा से आप को फिर से बर्दाश्त करती है। फिर पुरुषों में एक और भी बड़ी गंदी आदत होती है वह यह कि तुरंत तुलना कर देंगे..
वह तुम्हारे बच्चों की मां है….उसने अपने शरीर को झोला बनाया है तब जाकर तुमने बाप होने का सुख पाया है। दिन भर काम करती है…अपनी सुध नहीं रखती हैं तो शरीर कहां बचेगा ? क्या शादी करते समय वह इतनी ही फैली हुई थी जितनी आज है ? फिर क्यों कोंचते रहते हो उसको बेवजह ??
तुम्हें अपनी बड़ी हुई तोंद तो नहीं दिखेगी मगर उसके पेट पर बढ़ी हुई चर्बी जरूर देखेगी। ये चर्बी क्या वो शादी के समय से ही लायी थी। सबसे अधिक परेशान करने वाला कृत्य जो एक पुरुष अपनी पत्नी के साथ करता है वह यह की अपनी भूख (जी हां भूख ही कहूंगा ) मिटा लेने के बाद घूम कर सो जाता है…क्योंकि उसके लिए उस शरीर की भूख सिर्फ उसी समय तक ही थी जबतक उसके शरीर की गर्मी निकल नहीं जाता…उसके बाद तो उसी शरीर से वितृष्णा हो जाती है और वह पीठ दिखाकर खर्राटे भरने लगता है ।
अन्यथा…ज्यादा फर्क नहीं रह जाता …उसके दिमाग में भी यही बात आती है कि मैं भी किसी वेश्या के जैसी हूँ…लेकिन सिर्फ एक कस्टमर की…जो मुझे अपने हिसाब से इस्तेमाल करता है और बदले में मुझे रहने के लिए घर…चलने के लिए गाड़ी…पहनने के लिए कपड़े और ज़ेवर और एक, दो या तीन बच्चों की जिम्मेदारी देगा।
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