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ये अंधा कानून है,
आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी है कि अदालतें कुख्यात अपराधियों को बेल और परोल देने पर मजबूर हो जाती हैं। जब भी देश के किसी प्रदेश में चुनाव होता है तो अपराधियों को बेल और परोल मिल जाती है वहीं दूसरी ओर जेल में सड़ रहे बिना किसी सुनवायी और ट्रायल के कैदी न्याय का इंतजार कर रहे है। राजनीतिक दल भी चुनाव जीतने को ऐसे कुख्यात मुजरिमों की मदद लेने से नहीं चूक रहे हैं। राजनीतिक दल किसी भी तरह देश पर राज करने को बेकरार रहते हैं चाहे उसके लिये उन्हें अपराधियों के पैर ही क्यों न पकड़ने पड़ें। ऐसा पिछले दस सालों में देखा गया है कि सत्ता पाने के लिये राजनीतिक अपराधियों बलात्कारियों को बचाना ही क्यों न पड़ा हो। बहुत सारे उदाहरण हैं जिसमे भाजपा बलात्कारियों के बचाव में खड़ी दिखी है जैसे कठुआ के नाबालिग गुड़ियाकांड के दोषियों के बचाव में मोर्चे निकाल रही थी। कुलदीप सिंह सेंगर जो कि बीजेपी का विधायक था उस पर भी रेगप और हत्या के दोषी होने पर पार्टी सरकार पूरी तरह से बचाव में दिखी थी। पूर्व बीजेपी सांसद ब्रजभूषण शरण पर ओलंपिक खिलाड़ियों यौन शोषण और मानसिक उत्पीड़ के मुकदमें चल रहे हैं। बिल्कीस बानों गैं्गरेप और हत्याकांग के मुजरिमों का बचाव भी भाजपा और केन्द्र व प्रदेश सरकार ने किया था। ऐसे बहुत सारे मामले हैं जहां भाजपा और सरकार ने दुर्दांत अपराधियों का बचाव किया है।
रेपिस्ट और हत्यारे गुरमीत राम रहीम को 11 बार परोल
डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख राम रहीम पर दो साध्वियों के साथ रेप करने और दो लोगों की हत्या के मामले में बीस साल की सजा सुनायी गयी है। 2017 में जब सीबीआई की अदालत ने इस मामले में राम रहीम को सुनायी उसके बाद पूरे हरियाणा और पंजाब में उसके विरोध में उत्पात मचाया था। गुरमीत के समर्थक उपद्रवियों ने आगजनी और मारकाट मचायी थी। इस दौरान राम रहीम के चेलों ने सरकारी और निजी संपत्तियों को काफी नुकसान पहुंचाया था। बहुत से लोगों की जानें गयी और बहुत से सारे बेगुनाह लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। मालूम हो कि डेरे में रहने वाली दो साध्वियों के साथ गुरमीत राम रहीम ने काफी समय तक जबरन यौन उत्पीड़न किया बाद में उनकी हत्या कर दी थी। इसके अलावा आश्रम में हो रही धांधली को एक पत्रकार रामचंद्र प्रजापति ने अपने समाचार पत्र सच कहूं में खुलासा किया था। जिससे रेपिस्ट राम रहीम ने अपने गुंडों से उसकी हत्या करवा दी थी। इसके अलावा डेरे केे मैनेजर रंजीत सिंह की भी हत्या डेरा प्रमुख ने करवा दी थी। राम रहीम की पॉलिटिकल पार्टियों में खासी पकड़ थी। इस वजह से उसके खिलाफ पुलिस कोई ऐक्शन नहीं लेती थी। लेकिन मामला जब सीबीआई के पास पहुंचा तो हरियाणा सरकार और पुलिस ने उसके खिलाफ मामला बनने पर हाथ खड़े कर दिये। राम रहीम के रसूख के आगे भाजपा और कांग्रेस दिग्गज नेता चरणों में लोटे रहते थे। दोनों ही दल के नेताओं को चुनावी मदद की उम्मीद रहती थी। राम रहीम भी मौका देख कर दोनों ही दलों को चुनाव मेंसमर्थन देने का आश्वासन देने को तैयार रहता था।
निर्दोष लोगों के प्रति सरकार और अदालतें उदासीन क्यों!
दो साध्वियों और दो हत्याओं के दोषी और सजा काट रहे रेपिस्ट हत्यारे राम रहीम को अदालत ने 11वीं बार 30 दिन की परोल दे दी है। दिलचस्प बात यह है कि जब भी देश में चुनाव होते हैं उसी दौरान राम रहीम को जेल की ओर से परोल मिल जाती है।

Bilkis Bano filed a writ against released accused of gang raped
Bilkis Bano filed a writ against released accused of gang raped

हैरानी की बात यह है कि अदालतें भी सब कुछ जानबूझ कर जघन्य अपराधों में दोषी को बार बार जेल से बाहर जाने की अनुमति दे देती हैं। जबकि ऐसे बहुत से जेल में सालों से सजा काट रहे है उनकी सुनवायी तक नहीं होती है। सालों से जेल में बंद कैदियों के ट्रायल भी नहीं होते है। इसका जीता जागता उदाहरण दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद दिल्ली दंगों के आरोपियों उमर खालिद, शरजील इमाम समेत अनेक लोगों को बेल तक नहीं मिल पा रही है। साल बाद भी उनका ट्रायल नहीं किया गया है। निचली अदालत से लेकर सुप्रीमकोर्ट तक उनकी जमानत की अर्जी रद कर दी गयी हैं। दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल, उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सतेंद्र जैन और सांसद संजय सिंह को बिना किसी सुबूत महीनों जेल में बंद रखा गया। ऐसे में लगता है कि सरकार और अदालतें धर्मांधता और राजनीतिक द्वेष के कारण बेल देने में कोताही बरत रही हैं।

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