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कौन हैं मोदी के पांच पाण्डव
पिछले दस सालों से देश में जो भी चुनाव होते हैं उसकी जीत सुनिश्चित करने के लिये बीजेपी अपने कार्यकर्ताओं को तो चुनाव प्रचार मे लगाती है, उसके अलावा बहुत ऐसे दिग्गज लोग भी जुटाये जाते हैं जिससे मोदी शाह की साजिशें सफल हो रही हैं। दस सालों में विपक्ष का अंत करने की साजिश में यही लोग मोदी के वजीर बने हुए हैं। आप सोच रहे होंगे कि इन सबके पीछे अडाणी और अंबानी होंगे तो आप लगत सोच रहे हैं। इस मामले में मोदी शाह को देश के संवेधानिक पदों पर बैठे ऐसे लोग जो भाजपा और संघ की सोच के समर्थक हैं। ऐसे लोग संवैधानिक पदों पर बैठे लोग सत्ता के समर्थक और कार्यकर्ता के रूप में कार्य कर रहे हैं। देश की न्यायपालिका और चुनाव आयोग प्रत्यक्ष रूप से सरकार के हितों की रक्षा करते दिख रहे हैं। विपक्ष को कुचलने में देश की जांच एजेंसियां और प्रशासनिक अफसर भी संविधान के प्रति नहीं बल्कि सत्ता के साथ खड़े दिख रहे हैं।
संवैधानिक पदों पर बैठे लोग बीजपी के एजेंट!
इनमें राष्ट्रपति से लेकर उप राष्ट्रपति और लोकसभा के अध्यक्ष भी सरकार के नुमाइंदे बन कर विपक्ष की आवाज को कुचलने का प्रयास करते दिख रह हैं। संसद के दोनों सदनों में जब जनप्रतिनिध जन सरोकारों से जुड़े मु्दों पर बहस करने की बात करते हैं। सदन के दोनों सदनों में उनकी बात को रिकार्ड नही किया जाता है। उनके भाषणों को निकाल दिया जाता है। सांसदों के माइक बंद कर दिये जाते हैं। इतना ही नही जब कोई वरिष्ठ और दमदार सांसद भाषण दे रहे होते हैं तो कैमरे अध्यक्ष या सभापति की तरफ कर दिये जाते हैं। इस प्रकार बहुत बातें सामने आ रही है। यह देखा जा रहा है कि राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ सदन में सत्ता पक्ष के सांसदों को तो कुछ भी बोलने को मौका देते हैं। लेकिन जब विपक्षी सांसदो का बोलने का मौका होता है तो सत्ता पक्ष के सांसद और मंत्री हूटिंग करना शुरू करते हैं लेकिन अध्यक्ष व सभापति हंसते रहते हैं। कांग्रेस राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने तो यहां तक कह दिया कि पचास साल के राजीतिक कॅरयिर में मैंने ऐसा पक्षपाती राज्यसभा का सभापति नहीं देखा जितना जगदीप धनखड़ दिख रहे हैं। विपक्ष आरोप लगा रहा है के संवैधानिक पदों पर बैठे जगदीप धनखड़ और लोकसभा अध्यक्ष ओम बिडला सदन को तानाशाही तरीके चला रहे हैं। जब भी सरकार के मामलों पर बहस की मांग की जाती है तो धनखड़ और ओम बिड़ला उसे मानने को तैयार नहीं होते हैं। वर्तमान शीतकालीन संसद के दोनों सदनों में संभल और अडाणी के मामलों समेत किसानों के मसलों पर चर्चा की बात करने पर ओम बिड़ला और धनखड़ तैयार नहीं है। यही वजह है कि सदन के दोनों सदनों में गतिरोध देखा जा रहा है। तीसरे सप्ताह की शुरुआत तक मात्र कुछ घंटों ही सदनों की कार्रवाही हो सकी है। इसका सारा दोष विपक्ष पर मढ़ा जा रहा है। जबकि सदनों को चलाने की जिम्मेदारी सभापति और अध्यक्ष की होती है।
संसद के दोनों सदनों सत्ता की दबंगई और आतंक
वर्तमान सत्र में तो भाजपा सांसद संबित पात्रा और निशिकांत दुबे ने तो सारी हदें पार करते हुए लोकसभा प्रतिपक्ष राहुल गांधी को देशद्रोही कह कर सबको हैरान कर दिया लेकिन अध्यक्ष ओम बिड़ला ने उन्हें रोकने के बजाय उनको बिना पहले से अनुमति को संसद में बोलने का बार बार मौका दिया। इससे साफ जाहिर हो गया कि ये दोनों ही संसद में बीजेपी के नेता के रूप मे काम कर रहे हैं। पिछले साल संसद के दोनों सदनों में विपक्ष के सांसदों ने पेगासिस, किसान आंदोलन, महंगाई बेरोजगारी और अडाणी ग्रुप के धांधली पर बहस करने की मांग की तो संसद के दोनों सदनों के लगभग डेढ़ सौ सांसदों ओम बिड़ला और जगदीप धनखड़ ने दो दिनों में सस्पेंड कर दिया था। हालात इतने बुरे हो गये कि राज्यसभा के सभापति के खिलाफ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव की मांग तक करने लगे हैं। चलते सदनों में ओम बिडला और धनखड़ विपक्षी दल के सांसदों को एक हेड मास्टर की तरह बर्ताव करने से नहीं चूकत हैं।
भाजपा सांसदों की दबंगई दिलेरी
पिछले साल लोकसभा में चलते सदन में भाजपा के पूर्व सांसद रमेश विधूड़ी ने सांसद दानिश अली को असंसदीय शब्दों के साथ काफी अभद्रतापूर्ण टिप्पणी की। इस मामले में पूरा सदन और सरकार के मंत्री और अन्य सांसदों ने चुप्पी साध ली। इसके अलावा पूर्व मंत्री डा हर्षवधन अन्य सांसद के साथ मुस्करा रहे थे। यहां तक की विधूड़ी को रोकने का प्रयास नहीं किया। लगभग पांच मिनट तक रमेश विधूरी सांसद दानिश अली को अश्लील शब्दों से नवाजते रहे। सत्ता दल के किसी सांसद या मंत्री ने रोकने या दखल देने का प्रयास नहीं किया। लोकसभा अध्यक्ष ने भी यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि इन विवादित बयानों को सदन की रिकार्डिंग को कार्यवाहीसे हटा दिया गया है। विधूड़ी की इस अभद्रता का खुल कर साथ भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने दिया। वैसे भी निशिकांत अपनी अभद्रता और बड़बोलेपन के लिये जाने जाते हैं। यह वहीं जो टीएमसी सांसद मुहुआ मोइत्रा को नगरवधू कहने से भी नहीं चूकते हैं और महिला सम्मान की बात करने की वाली सरकार के पीएम मोदी शाह डींगे मारते हैंं। अनेक आपराधिक मामले निशिकांत दुबे के खिलाफ चल रहे हैं। केन्द्र में भाजपा सरकार होने और सांसद होने की वजह से उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होती है।