SBI asked more time to deposite required Electoral bond related doccuments in SC.
SBI asked more time to deposite required Electoral bond related doccuments in SC.

#Invalid electoral Bond# Supreme Court Verdict# Modi Govt.# Finance ministry# PM Modi# Modi’s Industrial friends# State Bank of India# Election Commission of India# Gen. Election#

एसबीआई सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर फरियाद लगाने क्यों पहुंच गया है। क्या मोदी सरकार को चुनावी बांड मामले में राहत दिलाने के मंसूबे से भारतीय स्टेट बैंक की उ्योढ़ी पर नाक रगड़ने पहुंचा है। याद हो कि 15 जनवरी में सुप्रीम कोर्ट 5 सदस्यीय संवैधानिक बेंच ने मोदी सरकार के इलैक्टोरल बांड को असंवैधानिक बता कर रद कर दिया था। साथ ही चुनाव आयोग से ये कहा कि तीन सप्ताह के अंदर चुनावी चंदे का अब तक का पूरा विवरण कोर्ट में पेश करे। इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि वो सुप्रीमकोर्ट के आदेश का पालन करने को तैयार है। एससी के निर्देश के अनुसार 6 मार्च तक नोडल बैंक एसबीआई को मांगे गये विवरण चुनाव आयोग के सामने पेश करने थे। उसके बाद 13 मार्च को चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट में पेश करता। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवायी करते हुए ये जाना कि 2018 में जो इलैक्टोरल बांड सरकार ने जारी किया वो पूरी तरह से असंवैधानिक और फर्जी है उसे रद कर दिया गया था। दिलचस्प बात यह है कि जब यह चंदा ही अवैध है तो इस चंदे के जरिये लड़ने वाले चुनाव भी अवैध माने जाने चाहिये। पिछले कई चुनावों में होने वाला खर्चा आसमान छू रहा है लेकिन चुनाव आयोग कानों में तेल डाल कर बैठा हुआ है वैसे भी जब सत्ता धारी दल ही चुनाव आयोग का गठन करेगा तो उसके खिलाफ कैसे ऐक्शन ले सकते हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट इस मामले में एसबीआई को मोहलत देता है तो उसके पहले के दिये आदेश का कोई महत्व नहीं रह जायेगा। हां इतिहास में दर्ज हो जायेगी कि सुप्रीमकोर्ट की कायरता से देश के साथ कितना बड़ा धोखा सरकार और बीजेपी ने किया था।
अब सुप्रीम कोर्ट क्या करेगा!
अब सारा दारोमदार सुप्रीम कोर्ट के जजों पर टिका है कि वो एसबीआई के अनुरोध को माने या नहीं। वैसे भी कई मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला रिजर्व रख सरकार को राहत दी है। जैसे महाराष्ट्र सरकार का मामला। जहां सुप्रीमकोर्ट ने अपने फैसले में कहां वर्तमान सरकार असंवैधानिक है फिर भी वहां भाजपा गठबंधन की सरकार बेखटके चल रही है। ऐसे में अगर सुप्रीम कोर्ट बैंक की बात मानकर उन्हें मोहलत देती है तो उनके अपने आदेश की भी कोई अहमियत नही रह जायेगी। लेकिन ये बात तो है कि मोदी सरकार इस फिराक में जरूर है कि किसी तरह सुप्रीमकोर्ट के आदेश से कुछ माह की मोहलत मिल जाये ताकि जो रायता चुनावी चंदे को लेकर फैाला है उसे समेटा जा सके। फिलहाल तो मोदी शाह आम चुनाव जीतने को बेकरार हो रहे हैं। वो जानते हैं कि पावर रहेगी तो वो हर किसी को निपटा सकते हैं। इसी कड़ी में स्टेट बैंक को मोहरा बना कर सुप्रीमकोर्ट में भेजा गया है। अगर सुप्रीमकोर्ट नोडल बैंक की बात मानता है तो उनके लिये राहत की बात होगी। वैसे भी वो मानते हैं एक बार चुनाव बीत गया तो किसी को किसी चदे के घोटाला जानने की फुरसत नहीं रहेगी। मोदी और शाह के झांसे में आ गये तो उन्हें इन मुद्दों से दूर कर दिया जायेगा।


एसबीआई और चुनाव आयोग की सांसें फूलीं
एसबीआई ने उच्चतम न्यायालय में अर्जी लगाते हुए यह कहा कि लगभग 44 हजार दस्तावेजों से जानकारी इकट्ठा करने के लिये निधारित अवधि काफी कम है। अत: कोर्ट उसे लगभग चार माह की मोहलत और ग्रांट कर दे। लीगल न्यूज लाइव लॉ के अनुसार बैंक को ये सारे दस्तावेज 6 मार्च को चुनाव आयोग के सामने रखने है। उससे दो दिन पहले एसबीआई सुप्रीमकोर्ट अपनी अर्जी लगाने पहुंचा गया है। बैंक ने कहा कि 12 अप्रैल 2019 से अबतक यानि 15 फरवरी तक 22,217 बांड विभिन्न राजनीतिक दलों इश्यू किये हैं। ये सभी बांड बैंक की विभिन्न शाखाओं को ईमेल से मुंबई भेजे गये हैं। इन बांड के लिये दो सेट 44,434 दस्तावेज हैं। उनकी छानबीन कर रिपोर्ट तैयार करने के लिये तीन सप्ताह का समय नाकाफी है। दिलचस्प बात यह है कि जहां मोदी सरकार का चुनाव आयोग 97 करोड़ वोट कुछ घंटों करने का दावा कर रहा है वहीं उसके 44 हजार डाटा छांटने में तीन सप्ताह का समय कम लगा जो लगभग चार माह का और समय मांगा जा रहा है।

Modi Shah & Govt. don't want disclose the secret of Electoral bond through SBI in Supreme Court
Modi Shah & Govt. don’t want disclose the secret of Electoral bond through SBI in Supreme Court

भाजपा और मोदी सरकार हैरान परेशान
जिस दिन से सुप्रीमकोर्ट ने चुनावी चंदे पर अहम् फैसला दिया है तभी से मोदी सरकार की सांसें ऊपर नीचे होने लगी है। न तो वित्त मंत्रालय का कोई बयान आया है और न ही पीएम मोदी ने इस पर कोई प्रतिक्रिया दी है। वास्तविकता तो यह है कि जिस सरकार ने इस चुनावी चंदे को लागू कराया तब नरेंद्र मोदी ही पीएम थे। ये भी बात सुनी जा रही है कि इस चंदे को लेकर आरबीआई के अफसर इसके खिलाफ थे उनका मानना था कि इससे मनी लॉंड्रिग के मामले बढ़ेंगे। लेकिन मोदी सरकार में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली और पीएम ने उनकी आपत्तियों को अनसुना करते हुए इसे लागू करा दिया। भाजपा और मोदी सरकार की सबसे बड़ी परेशानी ये है कि अगर एसबीआई की जानकारी सार्वजनिक हो गयी तो उनकी पोल जनता के बीच खुल जायेगी। वैसे अगर ये जानकारी सार्वजनिक हुई तो भाजपा और मोदी सरकार को घेरने का एक और मौका मिल जायेगा।
2018 में लागू की गयी थी चुनावी चंदा योजना
इस स्कीम को मोदी सरकार ने 2018 में लागू किया गया था। इस चुनावी चंदे में देश की अनेक कंपनियों ने गुप्त चंदा राजनीतिक दलों को करोड़ों रुपये दिया। सुप्रीम कोर्ट ने वोटर के जानने के अधिकार को बचाने के लिये इस चुनावी चंदे को असंवैधानिक बताते हुए 15 फरवरी को रद कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को तीन सप्ताह के भीतर 2019 से 15 फरवरी तक चुनावी चंदे का पूरा लेखा जोखा मांगा था। 12 अप्रैल 2018 से फरवरी 2024 तक 16518 करोड़ रुपया चुनावी चंदे के रूप में आया, जिसमे 6500 करोड रुपये के बांड भाजपा के हिस्से में बाकी राजनीतिक दलों के हिस्से में लगभग नौ हजार करोड़ ही आया है।

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