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यूपी के घोसी उप चुनाव में योगी मोदी और शाह की इज्जत दांव पर लगी थी। यूपी सरकार के मंत्रियों, विधायकों और दिग्गज नेताओं ने इस सीट को जीतने के लिये एड़ी चोटी का दम लगाया।

मुध्यमंत्री से लेकर एनडीए के सहयोगी दलों ने भी खूब पसीना बहाया लेकिन दारा सिंह चौहान को जिताने में सफल नहीं हो पाये। लोगों को हैरानी हो रही कि डबल इंजन की सरकार अपने कद्दावर नेता को जिताने में विफल क्यों रही। कुछ लोगों का तो कहना है कि यह चुनाव पूर्व मंत्री दारा सिंह को सबक सिखाने के लिये साजिश की गयी वर्ना इतनी मजबूत योगी सरकार एक उपचुनाव में अपने उम्मीदवार को न जितवा सकी। कुछ न कुछ तो अंदरखाने पक रहा था। दारा सिंह एक मतलब परस्त नेता के रूप में जाने जाते थे। 2022 में वो ठीक चुनाव के पहले सपा में शामिल हो गये थे उस समय वो योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री थे। इससे पहले भी वो कई पार्टियों में अपने फायदे के लिये पाला बदल चुके हैं। उनको भाजपा में दोबारा लाने में ओपी राजभर और संजय निषाद की अहम् भूमिका रही। वैसे योगी राजभर को भी नापसंद करते हैं क्यों कि राजभर ने पिछले चुनाव में योगी के बारे में खूब अनाप शनाप बोला था। लेकिन राजभर ने शाह से मुलाकात कर एनडीए ज्वाइन किया था इसलिये योगी ने कुछ विरोध नहीं किया था।
योगी और शाह के बीच अनबन
राजीतिक जगत में यह चर्चा रही कि गृहमंत्री अमित शाह और सीएम योगी के बीच पटती नहीं है। दोनों ही यूपी को लेकर आमने सामने होते हैं। विधानसभा चुनाव से पहले भी सीएम योगी और मोदी शाह की खुन्नस जग जाहिर हो रही थी। यहां तक कि योगी ने किसी विभाग के विज्ञापन से मोदी का फोटो भी हटवा दिया था। लेकिन चुनाव आते आते सुलह हो गयी। योगी मोदी और शाह ने मिलकर चुनाव लड़ा और प्रचंड बहुमत की यूपी में सरकार बनायी। लेकिन अंदर ही अंदर योगी और मोदी के बीच खाई समाप्त नहीं हुई। मोदी शाह ने गुजरात के एक अफसर अरविंद शर्मा भाजपा में शामिल कर को यूपी में भेज दिया। इसका मकसद यूपी में गुजरात लॉबी को मजबूत करना था। अरविंद शर्मा को एमएलसी बनाया गया बाद में उन्हें सरकार में मंत्री भी बनाया गया। योगी को इस बात की भनक लग गयी कि ये सब उन्हें कमजोर करने की चाल है। योगी पर यह आरोप लगता रहा है कि वो पार्टी और सरकार में एक जाति विशेष को प्राथमिकता दे रहे हैं। इससे पार्टी के ब्राह्मण तबके में असंतोष फैल रहा था। इसी क्रम में अरविंद शर्मा को यूपी में भेजा गया था। लेकिन योगी के आगे शर्मा की भी ज्यादा नहीं चल पा रही थी। उन्होंने डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक को भी अपने बराबर होने का मौका नहीं दिया। योगी को दारा सिंह की वापसी भी पसंद नहीं थी। लेकिन उसमें भी शाह ने रजामंदी दी इसलिये योगी भी शांत रहे। लेकिन अंदर ही अंदर अन्य बीजेपी नेता भी दारा सिंह के रवैये के खिलाफ थे। शाह के निर्णय पर कौन सवाल उठाता यानि बिल्ली के गले में कौन घंटी बांधता। इसके अलावा क्षेत्रीय लोगों ने भी भाजपा के उम्मीदवार का समर्थन नहीं किया क्यों कि उन्होंने कभी क्षेत्र के बारे में कुछ नहीं सोचा। अपने मतलब के लिये वो पार्टियां बदलते रहे। उसका नतीजा यह रहा कि जनता ने उन्हें नकार कर सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह को वोट व सपोर्ट दिया।