#CMGhulamNabiAzad#JammuKashmir#Congress#BJP#IndianPolitics#Group23#SoniaGandhi#RahulPriyankaGandhi#
क्या कांग्रेस का पतन होने वाला है। क्या बीजेपी के आगे कांग्रेस का कोई वजूद नहीं रहा है। भाजपा ने देश से कांग्रेस मुक्त भारत का जो नारा दिया था क्या वो सच होने जा रहा है। ताजा हालात तो ऐसी ही कहानी बयां कर रही है। आये दिन किसी बड़े नेता के कांग्रेस छोड़ने की खबर सामने आ जाती है। लगता है उन लोगों को लग रहा है कि अब कांग्रेस के दुर्दिन हैं संघर्ष करने का वक्त है। लेकिन ये बात इन नेताओं को नहीं भूलनी चाहिये कि इन्हीं लोगांें कांग्रेस के स्वर्णकाल मंे खूब मलाई काटी थी। आज जब संघर्ष करने की बारी आयी तो मैदान छोड़ कर पीठ दिखा कर भाग रहे हैं।
आज ही कांग्रेस के एक बड़े हैवी वेट नेता और पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने यह कहते हुए कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया कि पार्टी के फैसले अब कौन लेगा राहुल गांधी या उनके इर्द गिर्द मंडराने वाले लोग। ऐसे हालात में कांग्रेस में अब रहने का कोई तुक नहीं बनता है। श्री आजाद ने सही कहा कि अब वो राहुल गांधी के चिंटुओं से तो आदेश लेंगे नही। गुलाम नबी आजाद वो कांग्रेसी नेता हैं जिन्होंने राहुल गांधी के पिता व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और दादी पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ काम किया है। एक बार को वो श्रीमती सोनिया गांधी को तो अपना अध्यक्ष मान सकते हैं लेकिन राहुल प्रियंका को अपना बॉस मानने में उनकी आत्मा गवारा नहीं करती है। दोनों को वो राजनीति में अभी नौसिखिया ही मानते हैं। ये बात केवल श्री आजाद के बारे में नहीं है बल्कि उन सभी दिग्गज नेताओं की परेशानी है जो राजीव गांधी और श्रीमती इंदिरा गांधी के साथ काम कर चुके है। इस लाइन में आनंद शर्मा, भूपिंदर सिंह हुड्डाए वीरप्पा मोइली, संदीप चौधरी, राज बब्बर, राजिंदर कौर भट्ठल, रेनुका चौधरी, मुकुल वासनिक, विवेक तंखा, शशि थरूर, अरविंदर सिंह लवली, मनीष तिवारी, मणिशंकर अय्यर, कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम, पृथ्वीराज चौहान समेत ग्रुप 23 के अन्य कांग्रेसी नेता आते हैं। जो गाहे बगाहे सोनिया गांधी जी से अक्सर सवाल जवाब करते रहते हैं। इसने पिछले साल संगठन के चुनावों को लेकर सोनिया गांधी को खत लिखकर अपनी नाराजगी जतायी थी।
श्री आजाद से पहले आनंद शर्मा ने भी पार्टी से नाराज हो कर इस्तीफा दे दिया था। उससे पहले असंतुष्ट मनीष तिवारी और सुनील जाखड़ ने भी पार्टी से इस्तीफा दे कर यह जताने की कोशिश की कि अब कांग्रेस एक पुराना जहाज है जो डूबने वाला है इसलिये पार्टी ने अपनी सहूलियत के हिसाब से स्विच कर रहे हैं। 2020 में भी कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ भाजपा ज्वाइन की थी। भाजपा ने उन्हें राज्यसभा का सदस्य बना कर उनकी मंशा पूरी कर दी थी इसके एवज में सिंधिया कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के दो दर्जन से अधिक विधायकों जिनमे कुछ सरकार में मंत्री ंथे तोड़ लिये। कांग्रेस की लगभग दो साल पुरानी सरकार गिरवा दी और मध्यप्रदेश चौथी बार शिवराज चौहान की सरकार बनवायी। मोदी और शाह ने उनकी उनकी इस गद्दारी से खुश हो कर केन्द्र सरकार में मंत्री पद दे दिया। एक बात समझने की यह है कि कांग्रेस में उनकी सीधी पहंुच सोनिया गांधी और राहुल प्रियंका गांधी से थी। लेकिन भाजपा में उनकी क्या साख है वो बेहतर समझते हैं।
इसी क्रम में पूर्व केन्द्रीय मंत्री जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, सुनील जाखड़, पीसी चाको, टॉम वडक्कन, पंजाब के पूर्व सीएम अमरिंदर सिंह, आदि समेत काफी नेताओं ने कांग्रेस से किनारा किया। बहुत से लोगों ने कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा तो किसी एनसीपी का। प्रियंका चतुर्वेदी ने कांग्रेस से नाता तोड़ शिवसेना का दामन थाम लिया।
लेकिन मेरा जो अनुभव है कि जिस किसी नेता अपना पुराना दल छोड़ा वो अन्य दल में वो सम्मान या वर्चस्व कायम करने में सफल नहीं रहा है। चाहे वो नारायण दत्त तिवारी हों, नरेश अग्रवाल हों, उमा भारती हों या कल्याण सिंह हों। कुछ तो वापस अपने पुराने दल में चले गये या गुमनामी के अंधेरे में खो गये।