farmer-protest against farming law-53fa2c63
Punjab and other states farmers are trying to enter Delhi to meet PM
#FarnersMovement#AgricultureMin.#NewfarmingBills#ModiGovt.#Min.NarendraSinghTomar#IndianPolitics
जगदीश जोशी
शिमला में सेब के बाग है और किसानो से छोटे छोटे व्यापारी सेब ख़रीदकर देश भर में भेजते थे। व्यापारियों के छोटे छोटे गोदाम थे। अड़ानी की नज़र इस कारोबार पर पड़ी । हिमाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार है तो अड़ानी को वहाँ ज़मीन लेने और बाक़ी काग़ज़ी कार्यवाही में कोई दिक़्क़त नहीं आयी। अड़ानी ने वहाँ पर बड़े बड़े गोदाम बनाए जो व्यापारियों के गोदाम से हज़ारों गुना बड़े थे ।
अब अड़ानी ने सेब ख़रीदना शुरू किया, छोटे व्यापारी जो सेब किसानो से 20 रुपए किलो के भाव से ख़रीदते थे, अड़ानी ने वो सेब 22 रुपय किलो ख़रीदा। अगले साल अड़ानी ने रेट बढ़ाकर 23 रुपय किलो कर दिया। अब छोटे व्यापारी वहाँ ख़त्म हो गए, अड़ानी से कम्पीट करना किसी के बस का नहीं था। जब वहाँ अड़ानी का एकाधिकार हो गया तो तो तीसरे साल अड़ानी ने सेब का भाव 6 रुपय किलो कर दिया।
अब छोटा व्यापारी वहाँ बचा नहीं था, किसान की मजबूरी थी कि वो अड़ानी को 6 रुपय किलो में सेब बेचे। अब अड़ानी किसान से 6 रुपए किलो सेब ख़रीदता है और उस पर एक-दो पैसे का अड़ानी लिखा स्टिकर चिपका कर 100 रुपए किलो बेच रहा है। बताइए क्या अड़ानी ने वो सेब उगाए?
टेलिकॉम इंडस्ट्री की मिसाल भी आपके सामने हैं। कांग्रेस की सरकार में 25 से ज़्यादा मोबाइल सर्विस प्रवाइडर थे। JIO ने शुरू के दो-तीन साल फ़्री कॉलिंग, फ़्री डेटा देकर सबको समाप्त कर दिया। आज केवल तीन सर्विस प्रवाइडर ही बचे हैं और बाक़ी दो भी अंतिम साँसे गिन रहे हैं। अब JIO ने रेट बढ़ा दिए। रिचार्ज पर महीना 24 दिन का कर दिया। पहले आपको फ़्री और सस्ते की लत लगवाई अब JIO अच्छे से आपकी जेब काट रहा है।
कृषि बिल अगर लागू हो गया तो गेहूँ , चावल और दूसरे कृषि उत्पाद का भी यही होगा। पहले दाम घटाकर वो छोटे व्यापारियों को ख़त्म करेंगे और फिर मनमर्ज़ी रेट पर किसान की उपज ख़रीदेंगे। जब उपज केवल अड़ानी जैसे लोगों के पास ही होगी तो मार्केट में इनका एकाधिकार और वर्चस्व होगा और बेचेंगे भी यह अपने रेट पर। अब सेब की महंगाई तो आप बर्दाश्त कर सकते हो क्यूँकि उसको खाए बिना आपका काम चल सकता है लेकिन रोटी और चावल तो हर आदमी को चाहिए ।अभी भी वक्त है, जाग जाइए, किसान केवल अपनी नहीं आपकी और देश के 100 करोड़ से अधिक मध्यमवर्गीय परिवारों की भी लड़ाई लड़ रहा है।
यह लेख स्वतंत्र पत्रकार का है ये उनके अपने विचार हैं इससे वेबसाइट का सहमत व जिम्मेदार होना जरूरी नहीं है।

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