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आठ दिन पहले बिहार में नितीश कुमार ने सीएम पद से इस्तीफा दिया और कुछ घंटों बाद ही पुन: सीएम पद की शपथ ले ली। यह पहली बार राजनीति के इतिहास में हुआ कि एक सीएम ने इस्तीफा दे कर मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। तब उनके साथ जीतनराम मांझी की पार्टी हम का समर्थन भी था। पार्टी के चार विधायक हैं जिन्होंने नितीश सरकार के बनने में अहम् योगदान किया है। जेडीयू के 45, बीेजेपी के 75 और हम के चार विधायकों ने मिलकर नयी सरकार का गठन किया गया है। सरकार के बनने के कुछ समय बाद ही मंत्री पदों को लेकर खींचतान शुरू हो गयी है। पूर्व सीएम जीतनराम मांझी खासतौर से नाराज बताये जा रहे हैं। उनके बेटे संतोष सुमन को सरकार में मंत्री बनाया गया था। टीवी समाचार बैनल एबीपी ने समाचार में बताया गया है कि उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। बड़ी बात यह है कि नितीश सरकार का अभी फ्लोर टैस्ट नहीं किया गया है। दो तीन दिन बाद विधानसभा में नितीश सरकार की अग्निपरीक्षा होने वाली है। जीतनराम ने अपना रंग दिखाया तो नितीश कुमार की सरकार का गिरना तय है। हालांकि बाद में सुमन ने अपने टृविटर से साफ किया कि उन्होंने पद से इस्तीफा नहीं दिया है। इससे सरकार के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगा दिये हैं। जीतनराम मांझी पहले ही सरकार के रवेये से नाराज हैं उन्होंने सरकार में अपनी पार्टी के कम से कम दो विधायकों को मंत्री बनाने की मांग की थी। लेकिन एनडीए की सरकार में उनके बेटे को ही मंत्री बनाया गया है। अगर जीतनराम मांझी सरकार से समर्थन वापस लेते हैं तो सरकार अल्पमत में आ जायेगी। महागठबंधन को केवल तीन या चार विधायकों का समर्थन मिला तो उनकी सरकार बनने की संभावना है। यह इतिहास में पहली बार होगा कि 10 दिन के भीीतर दो बार बिहार की सरकार गिरने वाली है।

नितीश कुमार और जीतनराम मांझी का छत्तीस का आंकड़ा
बिहार में राजनीतिक हालात काफी तेजी से बदल रहे हैं। पिछले माह के अंत में नितीश कुमार ने पल्टी मार कर महागठबंधन का साथ छोड़ एनडीए का दामन एक बार फिर थाम लिया। 2000 से वो बिहार में मुख्यमंत्री पद पर काबिज हैं। यानि पिछले 2 दशकों से वही सत्ता के सिरमौर बने हुए हैं। नौवीं बार वो भाजपा के सहयोग से बिहार के सीएम बन गये हैं। सीएम नितीश कुमार और के बीच पुराना बैर भाव किसी से छुपा नहीं है। नितीश कुमार और जीतनराम मांझी के बीच कई बार विवाद हुए है। पहले जीतनराम मांझी नितीश कुमार की सरकार में राज्यमंत्री रह चुके हैं। तब मांझी नितीश कुमार की गुडबुक में माने जाते थे।
आठ माह के सीएम बने थे मांझी
2014 में राजनीतिक उथल पुथल के दौरान तत्कालीन सीएम नितीश कुमार को सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा था तब नितीश कुमार की नजर में जीतनराम सबसे वफादार और योग्य उम्मीदवार लगा और उन्होंने जीतनराम मांझी को सीएम पद की शपथ दिलवा दी। लेकिन आठ माह बाद जब उन्होंने सीएम मांझी से इस्तीफा देने को कहा तो उन्होंने इस्तीफ देने से मना कर दिया। काफी लानत म्लानत के बाद उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दिया तब जेडीयू ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया। उसके बाद उन्होंने आरजेडी की पनाह ले ली। पिछले विधानसभा चुनाव से पहले तक वो आरजेडी के साथ रहे। इस बीच उन्होंने हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा बना लिया था। लेकिन चुनाव से ठीक पहले उन्होंने महागठबंधन से नाता तोड़ नितीश कुमार से हाथ मिला लिये।
मुझे मुख्यमंत्री पद का आफर है—मांझी
हाल में ही जीतनराम मांझी ने प्रेस में यह बयान दिया कि महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री बनाने का आफर दिया था वो आज भी बना हुआ है। नाराज मांझी के तेवर बता रहे हैं कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गयी तो वो समर्थन पर विचार कर सकते हैं। शायद वही वजह है कि पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद कह रहे थे कि खेला अभी बाकी है। अगर महागठबंधन के साथ मांझी चले गये तो नितीश कुमार के लिये बड़ी समस्या हो सकती है। वैसे भी एनडीए के अन्य दलों के नेता नितीश कुमार को सीएम बनाने के पक्ष में नहीं हैं।

ऐक्सीडेंटल सीएम बने हैं नितीश
खासतौर से एलजेपी के चिराग पासवान, जीतनराम मांझी,पशुपतिनाथ पारस और उपेंद्र कुशवाहा। पिछले विधानसभा जेडीयू की साख गिराने में चिराग पासवान की अहम् भूमिका थी। वो खुद को तो हनुमान और मोदी को श्रीराम बताते थे। यूं कहा जा सकता है कि नितीश कुमार अभी प्रदेश के सीएम तो हैं लेकिन उनकी कमान भाजपा के हाथों में है। राजनीति में इस बात की चर्चा है कि नितीश कुमार सिर्फ तीन माह के लिये मुख्यमंत्री बनाये गये हैं। जैसे ही चुनाव परिणाम आयेंगे वैसे ही नितीश कुमार को बेदखल कर भाजपा अपना सीएम बैठा देगी। इसके अलावा यह भी चर्चा में है नितीश कुमार का राजनीतिक भविष्य अब अंधकार में है। तेजस्वी यादव ने तो ऐलान कर दिया है कि इसी साल के अंत तक जेडीयू का भी वजूद खत्म हो जायेगा। वैसे भी भाजपा क्षेत्रीय दलों को निगलने में माहिर बतायी जाती है। इसकी जीता जागता नमूना शिवसेना एलजेपी और एनसीपी हैं। पिछले साल भी जेडीयू को तोड़ने की साजिश बीजेपी कर चुकी है।