Supreme Court asked full detaisls of Electoral Bond puchase & donations
Supreme Court asked full detaisls of Electoral Bond puchase & donations

#Supreme Court oF India# CJI of INDIA# Defamed Ex CJI;es# Judges turned Politicians# Modi Govt.# Congress# Delhi Govt.# CM Delhi# Arvind Kejriwal#

पिछले दो तीन साल से देखा जा रहा है कि देश के उच्चतम न्यायालय के फैसलों पर राजनीतिक टिप्पणियां की जा रही हैं। ये देखा जा रहा है कि सत्ताधारी दल के नेता और सरकार के मंत्रिगण विवादित टिप्पणियां करने से बाज नहीं आ रहे हैं। ऐसे में सुप्रीमकोर्ट की हालत सैंडविच की तरह हो गयी है उसका फैसला कुछ भी हो सत्ताधारी दल हो या विपक्ष किसी न किसी ओर एससी के जजों को निशाने पर लिया जाता है। ताजा मामला दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की अंतरिम जमानत के फैसले का है। जिस दिन से सुप्रीमकोर्ट ने अरविंद केेजरीवाल को 21 दिन की जमानत का फैसला दिया है उसी दिन से सोशल मीडिया पर सत्ताधारी दल के समर्थक सुप्रीमकोर्ट के फैसले का पक्षपातपूर्ण बताते हुए जजो को कोस रहे हैं। हद तो उस वक्त हो गयी जब गृहमंत्री अमित शाह ने एक टीवी इंटरव्यू में यह कह कर चौंका दिया कि अरविंद केजरीवाल की जमानत अस्थायी है उससे आम आदमी पार्टी को ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। जजों का यह निर्णय अरविंद केजरीवाल के लिये विशेष कृपा दर्शार्ता है। ऐसा बयान दे कर देश के गृहमंत्री शाह ने अपने पद की गरिमा को ताक पर रख दिया है। ऐसे महत्वपूर्ण पद पर बैठे व्यक्ति को संवैधानिक संस्थाओं पर सीधा हमला करने से परहेज करना चाहिये। उनके बयान देने के साथ ही भाजपा के छुटभैया नेताओं के साथ पूरे देश से एससी के जजों के विरोध में सोशल मीडिया पर पोस्ट की भरमार हो गयी है। पोस्ट करने वालों को यह एहसास हो गया कि जब देश के होम मिनिस्टर सुप्रीमकोर्ट के निर्णयों पर हमलावर हैं तो उन्हें टीका टिप्पणी करने से कोई नहीं रोक सकता है।

CJI of Supreme Court cancelled Electoral bond So PM Modi & Govt. are critisizing CJI in event
CJI of Supreme Court cancelled Electoral bond So PM Modi & Govt. are critisizing CJI in event

मोदी सरकार के मंत्रियों के निशाने पर रहा सुप्रीम कोर्ट
ये बात जग जाहिर हो गयी है कि सुप्रीम कोर्ट और मोदी सरकार के बीच रिश्ते मधुर नहीं हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी सीजेआई भी रहे हैं जिनके सत्ता दल से अच्छे रहे और उन्होंने सत्ता मनमाफिक निर्णय दिये हैं। ऐसे सीजेआई को सरकार ने भी पुरस्कार से नवाजा है। ताजा मामला कलकत्ता हाइकोर्ट के जज अभिषेक गांगुली का है जिसने इस्तीफा देकर भाजपा के टिकट पर प बंगाल से लोकसभा का चुनाव लड़ा है। मजेदार बात यह है कि इस जज ने यह स्वीकार भी किया कि वो पिछले कई सालों से भाजपा के संपर्क में था। इस जज ने प बंगाल की टीएमसी सरकार के खिलाफ एक दर्जन से अधिक मामलों पर सीबीआई जांच के आदेश दिये थे। अब उनके दिये गये कई फैसलों पर सवालिया निशान लग रहे हैं।

Ex Congress leader Pramod Krishanan honoured in Kalki Dham foundation event
Ex Congress leader Pramod Krishanan honoured in Kalki Dham foundation event

मोदी ने भी सुप्रीम कोर्ट पर तंज कसा
शाह से पहले पीएम मोदी भी सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ विवादित टिप्पणी कर चुके हैं। इलैक्टोरल बांड रद हो के बाद पश्चिमी यूपी के एक मंदिर कार्यक्रम में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर तंज कसते हुए कहा कि अगर आज के समय में सुदामा अपने भगवान को दान में दो चार मुट्ठी चावल देते हैं तो सुप्रीमकोर्ट उसे भी अवैध घोषित कर देता। अफसोस की बात तो यह है कि बीजेपी का आईटी सेल सुप्रीमकोर्ट को भी ट्रोल करने से बाज नहीं आता है। पूर्व कानून मंत्री किरण रिजिजू और सुप्रीमकोर्ट के बीच विवाद बना रहा है। दरअसल मौजूदा सरकार चाहती है कि न्यायिक प्रक्रिया और सेवा में पार्टी के चहेते कार्यकर्ता जजों के रूप में घुस जायें जो उनकी सहूलियतों के हिसाब से फैसले दे सकें। इन्हीं मामलो को लेकर पूर्व कानून मंत्री और कॉलेजियम के सदस्यों के बीच तनातनी देखी गयी। अभी तक कॉलेजियम की सिफारिश पर ही जजों की नियुक्ति की जाती है। किरण रिजिजू ने तो यहां तक कह डाला था कि चुनाव तो हमें जनता के बीच में लड़ना होता है आप उन हालातों से नहीं गुजरना नहीं पड़ता है। लेकिन कालेजियम ने कानून मंत्री की बात को अनसुना कर दिया। इसी विवाद के चलते रिजिजू का मंत्री पद छिन गया था।
वीवीपैट मामले में एससी ने विपक्ष की मांग ठुकरायी
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम संबंधी विपक्ष की कुछ मांगों को नकार दिया था। तब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जमकर तारीफ की थी। उस समय विपक्ष ने सुप्रीमकोर्ट के दिये गये फैसले की निंदा की थी। कहा था कि ये फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के दबाव में किया है। लेकिन जिस तरह बीजेपी के नेता और मोदी सरकार के मंत्री खुलेआम सुप्रीम कोर्ट के जजों के खिलाफ हल्ला बोलते हैं उतना विपक्ष के लोग खुलकर आरोप नहीं लगाते हैं।
रंजन गोगोई भी शक के घेरे में
रंजन गोगोई नवंबर 2019 तक देश के सीजेआई रहे। उन्होंने काफी सारे फैसले मोदी सरकार के पक्ष में दिये सबसे बड़ा फैसला बाबरी मस्जिद राम मंदिर केस की सुनवायी करते हुए हिन्दू पक्ष के समर्थन में फैसला दिया था। यह फैसला पांच सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने दिया था। धीरे धीरे सभी पूर्व जजों को मोदी सरकार ने रिटायरमेंट के बाद उच्च पदों पर नियुक्त कर दिया है। रंजन गोगोई ने बाबरी मस्जिद मामले के अलावा राफेल डील, इलैक्टोरल बांड समेत कई मामलों मे मोदी सरकार के पक्ष फैसले दिये थे। रंजन गोगोई पर यह भी आरोप था कि उन्होंने अपने आफिस में काम करने वाली एक महिला कर्मचारी का यौन शोषण किया था। दिलचस्प बात यह रही कि जिस जांच कमेटी ने मामले की जांच उसके अध्यक्ष स्वयं रंजन गोगोई थे। मामना रफा दफा हो गया। आज रंजन गोगोई उन लोगों के आगे हाथ बांधे खड़े रहते हैं जो कभी उनके सामने बैठने की जुर्रत नहीं कर सकते थे।
पूर्व सीजेआई पी सत्यशिवम भी शक के घेरे में रहे
इससे पहले 2006 में हाईकोर्ट के जज पी सदाशिवम और बीएस चौहान की खंड पीठ ने तुलसी प्रजापति हत्याकांड व सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ की सीबीआई जांच की मांग को ठुकराते हुए याचिका खारिज कर दी थी। उनके फैसले से मोदी शाह को काफी राजनीतिक लाभ मिला। 2014 में जब सदाशिवम सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पद से रिटायर हुए तो मोदी सरकार केन्द्र में काबिज हो चुकी थी। मोदी शाह ने सदाशिवम को ईनाम के रूप में केरल का गर्वनर बना दिया था।
पूर्व सुप्रीमकोर्ट जज अरुण मिसरा भी उपकृत हुए
सुप्रीमकोर्ट से रिटायरमेंट के बाद सरकार के खास जज अरुण मिसरा को सरकार की तरफदारी करने का फल सरकार ने उन्हें मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष बना कर दिया। वो सीजेआई दीपक मिसरा के छोटे भाई है। इस बात का भी उन्हें फायदा दिया गया है। मालूम हो कि अरुण मिसरा के बारे में चर्चा है कि वो अपने न्यायधीश पद पर रहते हुए कभी भी दबे कुचले और पीड़ितों के पक्ष में कभी नहीं रहे। ऐसे व्यक्ति को मोदी सरकार मानवाधिकार आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया है। जज रहते हुए उन्होंने हमेशा सत्तापक्ष का ही ध्यान रखा। शायद यही खूबी मोदी और शाह को भा गयी हो।
राम मंदिर बाबरी मस्जिद फैसला हिन्दुओं के पक्ष में
अयोध्या भूमि पर फैसला सुनाने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई (सी) की पांच-न्यायाधीशों की पीठ की एक समूह तस्वीर जिसमें (एलआर) न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर शामिल थे। केवल न्यायमूर्ति भूषण, जो वर्तमान में राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) के अध्यक्ष हैं, ने कहा है कि वह “ऐतिहासिक कार्यक्रम” में भाग लेने के लिए रविवार को अयोध्या जाएंगे। पांच न्यायाधीशों वाली संवैधानिक पीठ ने 9 नवंबर, 2019 को मंदिर पक्ष के पक्ष में सर्वसम्मति से फैसला सुनाया, जहां उसने कहा कि हालांकि बाबरी मस्जिद का विध्वंस अवैध था, लेकिन हिंदू वादी ने विवादित 2.77 एकड़ भूमि पर दावा किया। बेहतर मामला. न्यायाधीशों ने कहा कि मामला आस्था या धर्म पर नहीं, बल्कि विवादित भूमि के स्वामित्व के दावे से संबंधित सबूतों पर आधारित था। सुप्रीम कोर्ट की पीठ का फैसला भी पहला था जिसमें लेखक का नाम नहीं था।
अशोक भूषण ने अलग से मंदिर के पक्ष में सहमति दी
संयोग से, न्यायमूर्ति भूषण पांचों में से एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने इस मामले पर अलग से 116 पेज की सहमति वाली राय दी थी, लेकिन तत्कालीन सीजेआई गोगोई ने अंततः आम सहमति बनाई और न्यायमूर्ति भूषण की राय को “परिशिष्ट” के रूप में जोड़ा, जो इतिहास में पहली बार था।
पूर्व एससी जज एस अब्दुल नजीर बने आंध्र के महामहिम
बाबरी मस्जिद राम मंदिर फैसले की सुनवायी करने वाली पांच जजों की संवैधानिक पीठ में जज अब्दुल एस नजीर एकमात्र अल्पसंख्यक सदस्य थे। हाल ही में मोदी सरकार ने उनकी सहमति का पुरस्कार पिछले साल एस अब्दुल नजीर को आंध्र का राज्यपाल बना कर उनके एहसान का बदला चुका दिया है। ये भी कह सकते हैं कि मोदी सरकार ने उन सभी संवैधानिक पदों को संभालने वाले अधिकारियों को रिटायरमेंट के बाद उच्च पदों पर तैनात कर दिया है।

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