नयी दिल्ली। पिछले एक सप्ताह से बीजेपी आम चुनाव के लिये प्रत्याशियों की लिस्ट करने की प्रक्रिया में जुटी हुई थी। आखिरकार गुरुवार को रात लगभग आठ बजे दिल्ली मुख्यायल से 184 उम्मीदवारों की सूची जारी की गयी। इस लिस्ट पर पिछले चार पांच दिनों से काफी माथा पच्ची चल रही थी। इस लिस्ट में पीएम मोदी समेत अनेक दिग्गज नेताओं की उम्मीदवारी पर मुहर लगाया गया।
सूची में सबसे पहला नाम पीएम मोदी का था जो अपनी पुरानी सीट वाराणसी से ही लड़ेंगे। दूसरा नाम राजनाथ सिंह का था जो लखनऊ से सांसद थे वहीं से दोबार चुनाव लड़ने जा रहे हैं। तीसरा बड़ा नाम वीके सिंह का है जो फिर से गाजियाबाद से एक बार फिर चुनावी मंेदान में किस्मत आजमाने जा रहे हैं। वीके सिंह मोदी सरकार में विदेश राज्य मंत्री हैं। मोदी सरकार में सरकार में कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी एक बार फिर अमेठी से चुनाव लड़ने जा रही है। कैबिनेट मंत्री डा. महेश शर्मा को नौयडा से ही दोबारा टिकट दी गयी है। हेमा मालिनी एक बार फिर मथुरा से उम्मीदवार बनायी गयी हैं। बागपत से पूर्व आईपीएस व सांसद सत्यपाल सिंह को बागपत से ही चुनाव लड़ना है। मेरठ से पिछली बार के सांसद राजेंद्र अग्रवाल को फिर टिकट दिया गया है। बात स्मृति ईरानी की करें तो पिछली बार वो राहुल गांधी के खिलाफ चुनाव में उतरीं थीं। लेकिन राहुल के आगे हारना ही पड़ा। इस बार भी वहां उनके जीतने के आसार नहीं दिख रहे हैं। क्यों राहुल 2014 के चुनाव परिणाम के बाद से अपने संसदीय इलाके में काफी सक्रिय रहे हैं।
सूची मंें एक और बड़ा नाम बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का है। उन्हें गुजरात की गांधी नगर से टिकट दिया गया है। इस सीट से बीजेपी के वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी पिछली छह बार से जीतते आ रहे हैं। उनका टिकट काटकर शाह को दी गयी है। इस पर यह चर्चा है कि 91 साल के आडवाणी को उनके निजी कारणों से नहीं टिकट नहीं दिया गया है। वैसे आडवाणी ने चुनाव न लड़ने की बात नहीं की है। विपक्ष इस मामले पर बीजेपी की निंदा कर रहा है कि पहले पीएम नहीं बनाया। बाद में राष्ट्रपति नहीं बनाया बल्कि बाबरी मस्जिद कांड में आडवाणी का नाम आने से उनका राजनीतिक भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया गया।
भाजपा ने अपने सभी पुराने चेहरों पर ही चुनाव लड़ने का फैसला इस लिये किया कि पिछली बार उन्हें अभूतपूर्व सफलता मिली थी। लेकिन इस बात पर भी गौर करना चाहिये कि पिछली बार विपक्ष बिखरा था और कांग्रेस का प्रदर्शन और प्रभाव काफी कम था। लेकिन पिछले पांच साल में पूरे दंश मेें हालात 2014 जैसे नहीं हैं।