नयी दिल्ली। चुनाव का सातवां चरण 19 मई को संपन्न होना है। यह चरण इस दृष्टिकोण से खास भी है क्यों पीएम मोदी को भी वोटर चुनने वाले हैं। यूपी के आठ सीटों पर भी वोटिंग होनी है। लगभग दो माह तक चले सात चरणों के इलैक्शन में इस बार सबसे ज्यादा आरोप ईसी यानी चुनाव आयोंग के आचरण पर लगे है। आरोप लगाने में विपक्ष के साथ साथ सत्ताधारी दल ने भी चुनाव आयोग पर इल्जाम लगाये। कुछ दलों ने तो ईसी को मोदी और शाह का पिछलग्गू और कठपुतली तक कह डाला। चुनाव आयोग ने किसी की भी न सुनते हुए सात चरणों के मतदान करा ही लिये। लेकिन सबसे ज्यादा हैरानी तो तब हुई जब एक चुनाव आयुक्त सीईसी की गतिविधियों पर ही सवालिया निशान लगा दिये।
चुनाव आयोग पर हमेशा से कुछ न कुछ आरोप लगाते रहे हैं लेकिन इस बार के चुनावों में तो आयोग सत्ताधारी दल के साथ खड़ा दिखा। कहने को कुछ लोगों के खिलाफ कुछ घंटों तक चुनाव प्रचार पर प्रतिबंध लगा कर उसने मात्र खानापूरी की। चुनाव के आखिरी चरण में मुख्य चुनाव आयुक्त की कार्यप्रणाली से नाराज हो कर एक अन्य आयुक्त ने आखिर कार अपनी आवाज बुलंद कर दी। इस घटनाक्रम ने चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवालिया निशान लग गया है। सत्ताधारी दल की गल्तियों और अवहेलना को लेकर चुनाव आयोग हमेशा उदासीन रहा। ज्यादा शोरगुल हुआ तो विपक्ष को जांच की बात कह कर बहला दिया जाता रहा। बाद में पीएम ओर अमित शाह को निर्दोेश बता दिया जाता रहा। यह सब देख कर किसी अन्य आयुक्त मुख्य चुनाव आयुक्त के निर्णय से असहमति जतायी तो उसकी बात को रिपोर्ट में दर्ज तक नहीं किया गया। बात जब प्रेस और मीडिया में चली तो सीईसी सुनील अरोरा ने कहा कि तीन आयुक्तों की कमेटी में बहुमत के हिसाब से फैसले लिये गये। असहमति वाली रिपोर्ट को दर्ज नहीं किया जाता है। 2014 में भी इसी तरह के फैसले लिये गये थे। चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल लगाने वाले राजनीतिक दल और आयोग के ही कुछ लोग साजिश कर रहे है।
लेकिन पूरे चुनाव में मोदी और अमित शाह ने कई बार आचार संहिता का उल्लंघन किया लेकिन चुना आयोग ने उन्हें नोटिस तक देना मुनासिब नहीं समझा अपने स्तर से ही जांच करा के पीएम और बीजेपी अध्यक्ष को क्लीन चिट दे दी। लेकिन इसी बात को लेकर चुनाव आयोग के एक आयुक्त अशोक लवासा ने लिखित पत्र दिया कि वो सीईसी के फैसलों से इत्तेफाक नहीं रखते थे इसके लिये उन्होंने अपना मत भी रखा लेकिन उसे जांच रिपोर्ट में संलग्न नहीं किया। इसलिये उन्होंन 3 मई से चुनाव आयोग की बैठकों में भाग लेना भी बंद कर दिया। अभी तक तो राजनीतिक दल ही आयोग की कार्रवाई पर सवालिया निशान लगा रहे थे।