Soniya, Sharad pawar and Udhav
Bjp And Shivsena both are having differences on CM post. So may be President rule in Maha.

नयी दिल्ली। जैसे जैसे समय बीतता जा रहा है वैसे वैसे बीजेपी की सरकार बनने का सपना टूटता दिख रहा है। देवेंद्र फणनवीस का दोबारा मुख्यमंत्री बनने का सपना भी चूर होता दिख रहा है। सबसे आश्चर्य की बात है कि भाजपा अध्यक्ष जिन्हें लोग आज की राजनीति का चाणक्य कहते हैं महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट पर एक भी बयान नहीं आया है। शायद उन्हें आगामी संकट की गंभीरता का एहसास हो गया है इसलिये वो मौन हो गये हैं और दूसरे नेताओं को भी मौन रहने की सलाह दे रहे हैं। वैसे भी यदि प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा तो भी शासन तो बीजेपी के हाथ में रहेगा। गवर्नर भगत सिंह कोश्यारी भी तो बीजेपी के नेता हैं। इससे बीजेपी को कुछ समय की मोहलत सरकार बनाने की मिल जायेगी। वैसे बीजेपी कभी नहीं चाहेगी कि प्रदेश में किसी अन्य राजनीतिक दल सत्ता में आये। लेकिन हालात ऐसे ही नजर आ रहे है कि सत्ता की डोर उनके हाथों से सरक रही है।
बीजेपी का सबसे पुराना दोस्त शिवसेना पता नहीं क्यों उनसे इस कदर नाराज है कि बात सुनने को भी राजी नहीं है। बीजेपी शिवसेना के गठबंधन से सरकार पिछली बार भी बनी थी। पिछले आम चुनाव में भी दोनों दलों ने शानदार प्रदर्शन किया। इस बार विधानसभा में भी दोनों दलों के 161 विधायक जीते हैं। इसके बावजूद सरकार बनने में एकमत नहीं हो पा रहे हैं। शिवसेना ने बीजेपी के सामने यह शर्त रखी है कि इस बार उनके दल का नेता ही सीएम बनेगा। यह बात बीजेपी को हजम नहीं हो रही है। लेकिन शिवसेना ने तो दो टूक कह दिया है कि बीजेपी तभी फोन करे जबकि सीएम पद उन्हें दे। अन्यथा समय बर्बाद करने की जरूरत नहीं है। पहले यह बात शिवसेना के प्रवक्ता संजय राउत ही कह रहे थे लेकिन अब यह बात स्वयं अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने बोल दी है। इससे साफ जाहिर है कि बीजेपी मुख्यमंत्री देने से रही वहीं शिवसेना उनके पाले में आने से रही।
ऐसे में शरद पवार की भूमिका कम नहीं होगी। क्योंकि उनकी पार्टी के 54 विधायक जीत कर आये हैं। कांग्रेस के भी 44 विधायक जीते हैं। दोनों ही दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा था। एक सूरत में राष्ट्रपति शासन नहीं लगेगा यदि एनसीपी और कांग्रेस शिवसेना को समर्थन दें तभी शिवसेना और दोनों दलों की सरकार बन पायेगी। अभी तो शरद पवार और कांग्रेस दोनों ही यह कह रहे हैं कि जनता ने उन्हें विपक्ष में बैठने का आदेश दिया है इसलिये वो सरकार बनाने नहीं जा रहे है। लेकिन राजनीति में बयान का कोई महत्व नहीं होता है। समय के साथ बयान और राजनीतिक हालात भी बदल जाते हैं। आने समय में ये तीनों दल शायद सरकार बनाने का दावा कर सकते हैं कि जनता को राष्ट्रपति शासन से बचाने के लिये हम सरकार बना रहे है। ऐसे में इन दलों की राजनीतिक प्राथमिकताएं उनकी सोच पर हावी हो सकती हैं।

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