नयी दिल्ली। सत्ता के लिये राजनीति में लोग अपने सगों को नहीं छोड़ते हैं ये तो राजनीतिक गठबंधन है। वैसे शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन तीस साल से अधिक पुराना गठबंधन है। दोनों ही दलों ने एक साथ आम चुनाव व कई विधानसभा चुनाव लड़े हैं। लेकिन राज्य में सत्ता पाने के लिये दोनों ही आमने सामने आ गये हैं। बीजेपी प्रदेश में अपने नेता देवेंद्र फणनवीस को अगला सीएम बनाना चाह रही है वहीं दूसरी ओर शिवसेना ने यह जिद पकड़ ली है कि अगला सीएम उनकी ही पार्टी का होगा। दोनों ही दल एक दूसरे पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। ताजा हालात में यही कहा जा सकता है कि दोस्त दोस्त न रहा प्यार प्यार न रहा।
विधानसभा परिणाम आये लगभग 15 दिन बीत चुके हैं बीजेपी शिवसेना गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिलने के बावजूद प्रदेश में सरकार बनने के आसार नजर नहीं आ रहे है। शिवसेना और बीजेपी आपस में तालमेल नहीं बैठा पा रहे है। नौ तारीख को प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगने के आसार है। बिना शिवसेना बीजेपी सरकार नहीं बना सकती हैं जबकि वो सिंगल लार्जेस्ट पार्टी है। वहीं शिवसेना ने ये कसम खा ली है कि अब वो बीजेपी की बात नहीं मानेगी। बीजेपी भी शिवसेना की शर्त को मानने को तैयार नहीं है। ऐसे में लग रहा है कि बीजेपी शिवसेना का गबठबधन टूट क रही रहेगा। इसका सबसे ज्यादा फायदा कांग्रेस और एनसीपी को होता दिख रहा है। महाराष्ट्र में इस गठबधन से सबसे ज्यादा यही दोनों पार्टियों को ही हुआ है। विधानसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस और एनसीपी के कई नेता पार्टी छोड़ कर बीजेपी शिवसेना में शामिल हुए थे। फिलहाल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन ही लगने के आसार हैं। लेकिन क्या प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगने के लिये ही उन्होंने बीजेपी और शिवसेना को स्पष्ट बहुमत दिया था जो आज अपने अपने स्वार्थ के लिये प्रदेश को राष्ट्रपति शासन के लिये हालात बना रहे है।
ऐसे में शरद पवार की भूमिका कम नहीं होगी। क्योंकि उनकी पार्टी के 54 विधायक जीत कर आये हैं। कांग्रेस के भी 44 विधायक जीते हैं। दोनों ही दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा था। एक सूरत में राष्ट्रपति शासन नहीं लगेगा यदि एनसीपी और कांग्रेस शिवसेना को समर्थन दें तभी शिवसेना और दोनों दलों की सरकार बन पायेगी। अभी तो शरद पवार और कांग्रेस दोनों ही यह कह रहे हैं कि जनता ने उन्हें विपक्ष में बैठने का आदेश दिया है इसलिये वो सरकार बनाने नहीं जा रहे है। लेकिन राजनीति में बयान का कोई महत्व नहीं होता है। समय के साथ बयान और राजनीतिक हालात भी बदल जाते हैं। आने समय में ये तीनों दल शायद सरकार बनाने का दावा कर सकते हैं कि जनता को राष्ट्रपति शासन से बचाने के लिये हम सरकार बना रहे है। ऐसे में इन दलों की राजनीतिक प्राथमिकताएं उनकी सोच पर हावी हो सकती हैं।