नयी दिल्ली। नौ नवंबर करीब आते आते महाराष्ट्र की राजनीति में उबाल आता जा रहा है। केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी सारे कामधंधे छोड़कर अपने माईबाप आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत की शरण में पहुंचे और उनसे महाराष्ट्र मे बीजेपी की सरकार बनाने की जुगत पूछी। लेकिन उनकी सरकार में घटक दल शिवसेना इस कदर रूठी है कि वो कुछ भी सुनने के मूड में नहीं है। उसने तो एक ही रट लगा रखी है कि मुख्यमंत्री तो उनकी ही पार्टी का होगा। इस पर बीजेपी नहीं तैयार है। ऐसे हालात रहे तो महाराष्ट्र में राष्टपति शासन ही लगेगा। दिलचस्प बात यह है कि एक माह पहले तक दोनों ही दल एक साथ एक मंच से प्रचार कर रहे थे आज एक दूसरे की बात सुनने को तैयार नहीं है।
शिवसेना सांसद और प्रवक्ता संजय राउत का कहना है कि चुनाव से पहले हमारा और बीजेपी का इस बात के लिये समझौता हो गया था कि परिणाम आने के बाद 50—50 फार्मूले पर सरकार चलायेंगे। ऐसे में हम उनसे उसी फार्मूले पर सरकार बनाने की बात कर रहे हैं। अब वो उससे मुकरने लगे है। यह बात अमित शाह और देवेंद्र फणनवीस ने एक प्रेसवार्ता और जनसभा में कही थी। अगर वो ऐसा करने से मना करते हैं तो हम उनके साथ कैसे जा सकते है। वो राज्यपाल के पास सरकार बनाने जाये तो पहले यह तय कर लें कि उनके पास बहुमत है कि नहीं। अगर वो सरकार बनाने में सक्षम नहीं हुए तो हम सरकार बनाने की बात कर सकते हैं। हम भाजपा के साथ एक ही शर्त पर जा सकते हैं जब कि वो हमारी पार्टी के नेता को मुख्यमंत्री बनाने के लिये लिखित में दें। संजय राउत का कहना है कि चार नवंबर को शाह को मुंबई आना था लेकिन वो नहीं आये। इसके पीछे का कारण यह है कि वो जानते हैं कि हम गलत नहीं हैं। इस लिये यह कह कर पीछा छुड़ा लिया कि राज्य का मामला है राज्यस्तर पर ही सुलझायें।
दूसरी ओर बीजेपी का कहना है कि सबसे ज्यादा विधायक हमारे हैं तो हमारा ही नेता मुख्यमंत्री बनेगा। हमने शिवसेना से मंत्रीमंडल में बराबरी का वादा किया था न कि उनका मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया था। भाजपा शिवसेना के साथ बात करना चाहती है लेकिन वो बात करने को तैयार ही नही है।