नयी दिल्ली। आम चुनाव सिर पर आ गये हैं। सब तरफ वादों और दावों का दौर चिल रहा हैं। वहीं दूसरी ओर देश की आधी आबादी ने भी कमर कस ली है कि अब वो और सहम कर या दहशत के साये में नहीं जियेंगी। घर पर रह कर पूरे परिवार की सेवा टहल करने वाली औरतें समाज में होने वाली हर उसकत के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करेंगी जो समाज में जहर घोलने का काम करेंगी। जिस गंगा जमुनी तहजीब के लिये भारत पूरे विश्व में जाना जाता है। उसे कायम रखने के लिये वो जागरूक हो कर संघर्ष करेंगी। यह एक ऐसी पहल है जो सत्ताधारी दल के लिये खतरे की घंटी हो सकती है। देशभर में यह आग मुस्लिम समाज की औरतों के अंदर ही अंदर सुलग रही है। मुंबई से आयीं हसीना खान ने इस कार्यक्रम की सदारत की। इस कार्यक्रम में सद्भावना, वनांगना,अस्तित्व, बेबाक कलैक्टिव हमसफर समेत कई स्वयंसेवी संस्थाओं के प्रतिनिधि मौजूद थे।
दिल्ली के प्रेस क्लब में मुस्लिम महिलाओं की तंजीमों ने आगामी चुनावों के मद्दे नजर एक घोषणापत्र लांच किया। इस घोषणा पत्र में देश के लगभग एक दर्जन प्रांतों से आयी विभिन्न तंजीमों की सदस्यों की मांगों को शामिल किया गया है। इस मोके पर यूपी, बिहार, गुजरात, असम, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल समेत अन्य प्रदेशों के प्रतिनिधियों ने अपनी बातें और मांगों को प्रेस के सामने रखीं।
मुजफ्फरनगर से आयीं रेहाना ने कहा कि हमें ऐसा भारत नहीं चाहिये जो आपस में रहने लोगों में नफरत और फूट डलवाये। पिछले पांच साल में पश्चिमी भारत में आतंक और अराजकता का माहौल बना है पूरी जिंदगी में नहीं देखा है। दो साल से प्रदेश में बनी भाजपा सरकार ने तो बस गौ रक्षा, गौकशी, गौहत्य, लव जिहाद, घर वापसी, राम मंदिर, हिन्दुत्व, गौ मांस और हिन्दू राष्ट्र जैसे उन्मादी अभियानों ाके छेड़ रखा है। इन सबके चलते अड़ोस पड़ोस में सालों से रहने वाले लोग हमको शक की निगाह से देखने लगे है। सौहार्द का माहौल बिल्कुल खत्म हो गया है। हम ऐसे मााहौल में रहने के आदि नहीं हैं। हमें ऐसा माहौल चाहिये जिसमे सभी धर्म और आस्था के लोग खुशी खुशी जी सकें। आगामी आम चुनाव में ऐसे सियासी दल को वोट नहीं करेंगे जो देश में अमन चैन कायम न रख सके। मेरी मांग है कि दंगा पीड़ितों और गवाहों को संरक्षण मिले साथ ही दंगे के दोषियों के खिलाफ समुचित कार्रवाई की जाये।
मुजफ्फरनगर से आयीं वनांगना की शबीना मुमताज ने कहा कि सारे देश में दहशत का माहौल है। पूरे देश में महिलाएं सुरक्षित नहीं है। खासतौर से मुस्लिम महिलाएं समाज में हिकारत की निगाहों से देखी जाती है। समाज में हमें लोग केवल बच्चे पैदा करने की मशीन ही समझते हैं। किसी आफिस या संस्थान में जाने पर दोहरा मानदंड अपनाया जाता है। मुस्लिम औरतों को महज अनपढ़, जाहिल और गंवार मान कर पेश आते हैं। हिन्दू महिलाओं के साथ दूसरा बर्ताव और मुस्लिम ओरतों के साथ अलग। ऐसा सिर्फ इस लिये किया जाता है कि हुक्मरान ऐसे लोग हैं जो समाज में फूट डाल कर राज करना चाह रहे हैं। पिछले पांच साल में ही माॅब लिचिंग का नाम चर्चा में आया। किसी को भी भीड़ घेर कर मारती पीटती है यहां तक कि हत्या भी कर डालती है। लेकिन सरकारें इस पर कोई कड़ा कदम नहीं उठाती हैं। अक्सर सरकार की नीतियों का विरोध करने पर कहा जाता है कि जिसे पसंद नहीं हो वो पाकिस्तान चला जाये। हमें हमेशा पाकिस्तान ही क्यों भेजने की नसीहत दी जाती है। आस्ट्रेलिया, जापान, जर्मनी या अमेरिका जाने की बात क्यों नही की जाती है। हम तरक्की पसंद लोग है। हम भुक्कड़ और कंगाल पाकिस्तान क्यों जायें।
असम से आयीं रेहाना ने अपनी बातों में बताया कि पिछले दो साल से नेशनल रजिस्टर कौंसिल बिल के नाम पर गरीब और बेसहारा लोगों को सताया जा रहा है। खासतौर से मुस्लिम तबके के लोगों को शक की निगाहों से देखा जाता है। जिन लोगों का नाम वोटर लिस्ट में नहीं उन्हें विदेशी माना जा रहा हैैं। उन लोगों से कहा जा रहा है कि वो नागरिकता के सुबूत लेकर आये ंतो उनका नाम वोटर लिस्ट में दर्ज किया जायेगा। गरीब और अनपढ़ लोगों के पास खाने के लिये मुश्किल से पैसे होते हैं वो वकीेलों की फीस कहां से लायेंगे। जो लोग ऐसा नहीं कर पाते हैं उनके नाम के आगे डी वोटर लिख दिया जाता है। डी से मतलब डाउटफुल वोटर। यदि वो एनआरसी में अपना दर्ज नहीं कराते हैं तो उन्हें डिटेशन केंप में रखा जाता है वहां के हालात नर्क से भी बद्तर हैं। कैंप में हाल मे ही एक गर्भवती महिला की मौत हो गयी है। मेरी मांग यह है कि स्थानीय लोगों को एनआरसी जैसे बिल से मुक्ति दिलायी जाये। जो लोग वास्तव में विदेशी उन्हें उनके देश भेजने की व्यवस्था कर वापस भेज दें।
सबसे महत्पूर्ण मुद्दा शिया समुदाय की मासूम ने रखा। उन्होंने कहा कि शिया समुदाय में आज भी एक कुरीति को आज भी परंपरागत तरीके से निभाया जा रहा है। इस कुरीति को आम तौर पर स्त्री खतना भी कहा जाता है। इसके पीछे एक बेतुका तर्क दिया जाता है कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो लड़कियां सैक्स प्रति आकर्षित हो जाती है। आज के वैज्ञानिक युग में भी लोग ऐसे दकियानूसी ख्यालात रखते हैं। मेरी मांग यह है कि इस पर रोक लगाने के लिये सरकार अपनी ओर से कदम उठाये। मेरा समर्थन उस सरकार को होगा जो हमारी जायज मांगों को अमली जामा पहनायेगी।
घोषणा पत्र के लोकार्पण के समय गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र ओर अनेक प्रदेशों से आये प्रतिनिधियों ने अपनी अपनी मांगें रखी।