नयी दिल्ली। नौ नवंबर को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की बेंच ने ऐतिहासिक रामजन्म भूमि और बाबरी मस्जिद मामले में निर्णय दिया। इस बेंच ने सर्व सहमति से यह किया कि रामजन्म भूमि की विवादित जमीन पर विराजमान रामलला को मालिकाना हक दिया गया। साथ ही यह भी कहा कि बाबरी मस्जिद के निर्माण के लिये सरकार पांच एकड़ जमीन अयोध्या में दी जायेगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से मुस्लिम समुदाय संतुष्ट तो नहीं लेकिन उसका सम्मान कर रहे है। 17 नवंबर को यूपी की राजधानी लखनउ में आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड की बैठक में यह निर्णय किया गया कि वो सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय की समीक्षा के लिये पिटीशन डालेंगे साथ यह भी कहा कि वो सरकार द्वारा मिलने वाली पांच एकड़ जमीन लेने के लिये भी तैयार नहीं है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की इस बात को लेकर हिन्दूवादी संगठन के अधिवक्ता वरुण सिन्हा ने उनके इस निर्णय पर आपत्ति जताते हुए कहा कि चूंकि अयोध्या रामजन्म भूमि—बाबरी मस्जिद जमीन मामले में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पक्षकार नही है इस लिये वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रिव्यू पिटीशन नहीं डाल सकता है।