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सपने हो गये पूरे

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सपने हो गये पूरे
Son tried to fulfill dream of father. He worked hard to keep promise

 

देश की 80 फीसद आबादी गांवों में बसती है। इसीलिये भारत को गांवों का देश कहा जाता है। सही मायने में कहें तो देश की खूबसूरती ही गांव की वजह से बनती है। इसी तरह के एक गांव में एक किसान जिसका नाम रामदेव है। खेती किसानी करके अपना जीवनयापन कर रहा है। पेशे से भले ही वो किसान है मगर उसके दिल और दिमाग में हर वक्त अपने बेटे सागर को डॉक्टर बनाने की इच्छा है।

गांव में कोई ढंग का अस्पताल व उपचार न होने के कारण रामदेव अपनी मां को नहीं बचा सका था। उसे गांव में एक अस्पताल और डॉक्टर के होने की बेहद जरूरत महसूस हुई। लेकिन एक किसान कर भी क्या सकता है। यह सपना हमेशा उसे अपने बेटे में नज़र आता है।  

यूं तो रामदेव ने मन ही मन इतना बड़ा ख्वाब बुन लिया लेकिन इसका ज़िक्र कभी भी किसी से नहीं किया। यहां तक कि अपने सपने को रामदेव ने ना तो कभी अपनी पत्नी को बताया और न ही कभी अपने बेटे को।

कई बार तो रामदेव खुद को ख्वाबों के जहां में ले जाकर यह सोचने लगा कि एक दिन उसका बेटा जरूर डॉक्टर बनेगा। अगर सागर डॉक्टर बन गया तो इस गांव कि तो किस्मत ही बदल जाएगी। जब सागर डॉक्टर बनेगा तो उसे देखकर गांव के दूसरे बच्चे भी आगे बढ़ने की सोचेंगे। ऐसे ना जाने कितने ख्बाव रामदेव को अंदर तक रोमांचित कर जाते हैं।

रामदेव को यह भी लगता है कि अगर उसके गांव के बच्चे आगे डाक्टर-इंजीनियर बनेंगे तो छोटे से गांव के भी दिन बहुरने लगेंगे। इतना बड़ा ख्वाब मन ही मन बुनने वाले रामदेव ने इसके लिये कोई खास तैयारी नहीं की है।

रामदेव के पास ना तो इतना पैसा है कि वो अपने दम पर सागर को डॉक्टर बना सके और ना ही उसका बेटा किसी अच्छे स्कूल में पढ़ता है लेकिन बावजूद इसके रामदेव अपने लिये कुछ अलग ही सोच रहा था।

रामदेव का बेटा सागर गांव के ही एक सरकारी स्कूल में पढ़़ता है। पढ़ने में सागर काफी होशियार है। लेकिन उसकी अंग्रेजी काफी कमज़ोर है। सागर अंग्रेजी में इसलिये भी कमज़ोर है क्योंकि गांव के स्कूलों में छठी कक्षा से अंग्रेजी पढ़ाई जाती है। यही वो कारण है जिसकी वजह से सागर इंग्लिश में पिछड़  गया।

स्कूल में यूं तो सागर का व्यवहार सभी के साथ अच्छा है लेकिन साहिल उसका सबसे अच्छा दोस्त है। साहिल और सागर हमेशा साथ-साथ रहते हैं। दोनों साथ ही स्कूल आते-जाते और साथ ही खेलते हैं। यही नहीं सागर और साहिल आपस में अपना सुख-दुख भी बांटते हैं।

एक दिन दोपहर को स्कूल से लौटते हुए सागर और साहिल हरे भरे खेतों के बीच बन पगडंड़ियों से होते हुए घर की तरफ लौट रहे थे। बारिश का मौसम था। आसमान काले बादलों की चादर ओढ़े हुए था। जैसे अंधेरी रात में चांदनी की रोशनी और बिजली की चमक के साथ हल्की सी बूंदा-बांदी हर तरफ ऐसा खूबसूरत नज़ारा बिखेरे हुए है और धरती ने हरे रंग की भीगी चादर ओढ़ ली है।

स्कूल गांव से कुछ दूरी पर है इसलिये दोनों दोस्त गपशप करते हुए अपने.अपने घरों को निकल जाया करते थे। आज सागर थोड़ा सा चुप लग रहा था। साहिल ने पूछ ही लिया-बड़े खामोश हो सागर क्या हो गया। मौन व्रत क्यों धारण किया हुआ है।

सागर ने थोड़ी देर शांत रहने के बाद उसने कहा-यार साहिल मेरा सपना है कि मैं पढ़ लिखकर बड़ा आदमी बनूं। इसलिये मैं इतनी मेहनत से पढ़ाई करता हूं। यह बात कहते हुए सागर के चेहरे पर गज़ब का तेज़ नज़र आने लगा। 

साहिल ने अपनी आस्तीन का बटन खोलकर उसे बांह तक चढ़ाते हुए कहा-हां यार तुझे में देखता हूं कि तू बहुत लगन के साथ पढ़ाई करता है। इसीलिये तुझे स्कूल के सभी टीचर भी बहुत प्यार करते हैं। अब क्या चाहिये यार। पूरे गांव के लोग तेरी मेहनत को देखकर बहुत खुश हैं। साहिल ने एक झटके में ही अपनी बात को खत्म कर दी। 

सागर ने चेहरे पर मुस्कान भर कर कहा- हां ये बात तो सही है लेकिन यार साहिल लगता है कि मेरे पापा मेरी पढ़ाई से ज्यादा खुश नहीं हैं। यह बात कहते-कहते अचानक सागर के चेहरे के हाव-भाव काफी सख्त नज़र आने लगे। 

सागर ने अपनी बात को जारी रखी और कहा-तभी तो वो कभी मुझसे मेरी पढ़ाई लिखाई के बारे में बात ही नहीं करते हैं। मेरे पापा तो मुझसे यह तक नहीं पूछते कि मेरी जरूरत क्या है। पता नहीं यार वो ऐसा क्यों करते हैं।

साहिल ने सागर की तरफ देखते हुए अपनी बात रखी-यार तू ऐसी बात क्यों करता है। क्या तेरे पापा ने तुझे कभी स्कूल जाने से रोका है। नहीं नाए तो फिर तू ऐसा क्यों सोचता है। देख तेरे पापा शायद यही चाहते हैं कि तू पढ़ाई-लिखाई करके बड़ा आदमी बने। तभी तो उन्होंने आजतक तेरे ऊपर कभी उम्मीदों का बोझ नहीं डाला। तू देखना कि इस बार जब तू मैट्रिक की परीक्षा अच्छे नंबरों से पास करेगा तो सबसे ज्यादा खुशी तेरे पापा को ही होगी।

सागर ने भी साहिल की हां में हां मिलता हुए कहा- तू सही कहता है दोस्त। मेरे पापा ने कभी भी मुझ पर उम्मीदों का बोझ नहीं डाला है और ना ही कभी मुझे स्कूल जाने से रोका।

‘हां यह बात अलग है कि वो मुझसे ज्यादा बात नहीं करते हैं। लेकिन मेरे बिना वो रह भी नहीं सकते हैं। सागर ने बड़ी उम्मीद के साथ कहा-यार साहिल रही बात पास होने की तो मैं इस बार परीक्षाओं में जमकर मेहनत करूंगा। ऐसे अंकों से पास होकर दिखाऊंगा जिससे मेरे पिता के साथ-साथ पूरे गांव को भी मेरे ऊपर गर्व हो।

साहिल ने भी सागर का हौसला बढ़ाते हुए कहा- यार तू फिक्र मत कर मैं तेरे साथ हूं। हम दोनों एक साथ खूब पढ़ाई करेंगे और बढ़िया नंबरों से पास होकर अपने परिवार का नाम रोशन करेंगे।

सागर ने अपने दोस्त के कंधे पर हाथ रखकर कहा- सच कहूं साहिल तेरे जैसा दोस्त मिलना बहुत नसीब की बात है। तेरी वजह से ही मैं पढ़ाई में इतना अधिक ध्यान दे पाया हूं।

‘अगर तू नहीं होता तो मेरे लिये बहुत मुश्किल हो जाता। सागर ने साहिल की आंखों में झांककर यह बात कही। साहिल तू भी अब अपनी पढ़ाई में खूब मेहनत कर। जब देखो छुट्टी मारता रहता है। सागर ने साहिल को समझाने के लहज़े में यह बात कही। 

दोनों दोस्तों की बातें खत्म होतीं इससे पहले ही सागर का घर आ गया। असल में सागर मुहल्ले के इस कोने पर रहता है तो साहिल दूसरे कोने पर रहता है।

जैसे ही साहिल जाने की बात कहता है तो सागर उससे कहा- यार घर चल, थोड़ा खाना खाकर चले जाना। मां ने आज तेरी फेवरेट भिंडी की सब्जी बनायी है।

इतना सुनते ही साहिल के मुंह में पानी आ गया क्योंकि भिंडी उसको बहुत पसंद है। साहिल कहता है- हां यार भिंडी तो मेरी सबसे पसंदीदा सब्ज़ी है। लेकिन यार मुझे कुछ काम है। घर पर पापा मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे। 

सागर झूठ.मूठ का गुस्सा दिखाते हुए कहा-चल अब ड्रामा करना बंद कर और चुपचाप घर चल। घर पहंुच कर दोनों दोस्त साथ मिलकर खाना खाएंगे। उसके बाद तू घर निकल जाना।

साहिल! ज़रा देख तो ले बारिश का मौसम है ऐसे में तू क्या काम करेगा। अरे खाना खाकर थोड़ी देर आराम करके निकल जाना।

साहिल ने बात मानने के लहजे में कहा कि चल भाई तेरे से तो पीछा छुड़ाना आसान बात नहीं है। लेकिन देख खाना खाने के बाद मैं चला जाऊंगा। घर पर सब इंतज़ार कर रहे होंगे।

सागर और साहिल जैसे ही घर में पहुंचे तो साहिल ने सागर की मां को नमस्ते की और उनके पैर छुए। सागर की मां बेहद साधारण तरीके से रहने वालीं औरत हैं। वो बहुत ही खुशमिजाज और दूसरों के दुख.दर्द को समझने वालीं महिला हैं।

उनके इस अच्छे व्यवहार की पूरे गांव में तारीफ होती है। सागर की मां से मिलने वाले स्नेह की वजह से साहिल भी अमूमन सागर के घर आता-जाता रहता है।

‘कैसी हो चाची! अरे ऐसे मौसम में भी आप काम में लगी हुईं हैं। थोड़ा सा मौसम का भी मज़ा ले लिया करो। साहिल की बातों में सागर की मां के लिये प्यार झलक रहा था। 

इधर मां ने साहिल को आशीर्वाद देते हुए कहा- बेटा भगवान तुम्हें हमेशा खुश रखे। एक तू है जो मेरी कितनी फिक्र करता है और एक यह है जिसके पास अपनी मां के लिये समय ही नहीं है। साहिल को चारपाई पर बैठना का इशारा करते हुए मां ने सागर की शिकायत साहिल से कर ही दी। 

सागर को जब लगा कि मम्मी उसके दोस्त के सामने उसकी पोल खोल रहीं हैं तो वो उनको लाड़ दिखाता हुआ बोलता है-क्या बात करती हो मां मैं तो दिन भर आपको याद करता रहता हूं।   

मां सागर के कान खींचते हुए बोली- बस-बस अब ज्यादा लाड़ मत दिखा। दिन में एक बार भी किताबों के सिवा तुझे मां नज़र आती नहीं है और दिखावा ऐसे कर रहा है जैसे मां का बहुत ख्याल रखता हो।

मां के आंचल में खुद को समेटने की कोशिश करते हुए सागर ने कहा-अरे मां मैं आपको वाकई बहुत प्यार करता हूं। आपके बिना में नहीं रह सकता।

‘मां अगर आपको अब भी मेरी बातों पर यकीन नहीं आ रहा हो तो आप साहिल से पूछ लो मैं तुम्हारी कितनी परवाह करता हूं। मां और बेटे के इस असीम प्यार को देखकर न जाने साहिल क्या सोचने लगा।

अचानक अपना नाम आने पर खुद को संभालते हुए साहिल बोला- हां चाची सागर हमेशा आपके बारे में ही बातें करता रहता है। मेरी मां ऐसी है मेरी मां वैसी हैं। मां मुझे बहुत प्यार करती हैं। चाची दिन में कम से कम सौ बार आपके बारे में सागर मुझसे जरूर चर्चा करता है।

साहिल ने जिस अंदाज़ में यह बात कही उससे उसके दिल को समझना किसी के लिये भी मुश्किल नहीं होता। दरअसल मां-बेटे के प्यार में साहिल अपनी मां को याद कर रहा था।

काफी समय पहले साहिल की मां का इसलिये निधन हो गया था क्योंकि उनका समय पर इलाज नहीं हो सका था। साहिल की उम्र उस समय कोई 12 बरस की रही होगी। मां की मौत के बाद तो साहिल के परिवार पर दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा था।  

साहिल की खामोश आंखों को पढ़ते हुए मां ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा-हां बेटा में जानती हूंए कि सागर ही नहीं तू भी मुझे बहुत प्यार करता है। जाने क्यों यह बात कहते.कहते मां की आंखों में आंसू आ गये।

मां साहिल को रुलाना नहीं चाहती थी। इसलिये तुंरत आंसुंओं को खुद में समेटे हुए बोलीं-अरे मैं तो बहुत भाग्यवान हूं। मेरे तो दो-दो बेटे हैं। यह बात कहते हुए मां ने सागर और साहिल को अपने गले से लगा लिया।    

सागर ने भी मां की हां में हां मिलता हुए कहा-सही कहा मां मान लो एक बेटा कहीं चला गया तो दूसरा बेटा तो तुम्हारा ख्याल रख सकता है ना।

साहिल को भी सागर की मां का गले से लगना बहुत अच्छा लगा। उसने कहा-चाची सागर तुझे छोड़कर भले ही चला जाए लेकिन तेरा यह बेटा तुझे कभी छोड़कर नहीं जाएगा। आप क्यों फिक्र करती हो।

इतने में सागर बोला अच्छा-अच्छा बातें बहुत हो गयी। मां अब जल्दी से खाना खिला दो। मुझे और साहिल को बहुत तेज़ भूख़ लगी है। सागर ने साहिल के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा।

मां ने भी आंसू पोछते हुए कहा- अरे हां मैं तो बातों-बातों में खाना खिलाना भूल ही गई। मां ने साहिल और सागर से कहा- चलो मुंह-.हाथ धो .लो। मैं खाना लगा देती हूं। यह कहते हुए मां खाना लेने रसोई में चलीं गईं।

बादल छंट चुके थे और चिलचिलाती धूप निकल आयी थी। हाथ मुंह धोकर दोनों दोस्त पेड़ के नीचे पड़ी चारपाई पर बैठ गये। पेड़ की ठंड़ी छांव में बैठकर खाना खाने का मज़ा ही कुछ और है। सागर ने साहिल की तरफ देखते हुए कहा।

‘सागर तू बहुत नसीब वाला है यार क्योंकि तेरे पास मां है। मुझे देख मेरी तो मां भी नहीं है। साहिल ने एक ऐसी बात सागर से कह डाली जिसका दर्द इसकी आवाज़ में सागर ने भांप लिया।

सागर ने कहा- ख़बरदार जो कभी मां ना होने की बात कही तो। क्या मेरी मां तुझमें और मुझमें कोई फर्क करती है। आज के बाद ये बात कभी अपनी जुबान पर मत लाना।

सागर को भले ही मां के ना होने का दर्द पता नहीं हो लेकिन कहीं न कहीं वो मां की अहमियत तो जरूर जानता है। इसलिये वो साहिल को अपने परिवार का हिस्सा मानते हुए उसको दुख से उबारने की कोशिश कर रहा था। 

साहिल ने सागर के गुस्से को समझते हुए होले से कहा- अरे नाराज़ क्यों होता है यार। मैं तो बस मज़ाक कर रहा था। मुझे क्या पता नहीं है कि चाची हम दोनों में कोई फर्क नहीं समझती है। 

साहिल और सागर भले ही एक दूसरे को संभालने की कोशिश में जुटे हों लेकिन यहां पर जिस तरह से दोनों दोस्त एक दूसरे के प्रति अपनी नाराज़गी और प्यार जता रहे थे वो भी अपने आप में एक अलग एहसास बयां करता है।  

इतने मैं मां खाना लेकर आ जाती है। बच्चों अगर छायादार पेड़ ना हों तो हम गांव वालों का तो जीना मुश्किल हो जाएगा। देखों कितनी गर्मी हैए चिलचिलाती धूप और उमस ने जीना मुश्किल कर दिया है। घरों में तो रुकना बेहद मुश्किल है। लेकिन पेड़ की छांव में आते ही कितना सुकून मिलता है। 

मां की बातों पर हामी भरते हुए दोनों दोस्तों ने अपनी-अपनी प्लेट ले ली और तुरंत खाना खाने लगे। दरअसल में दोनों को ही बहुत जोरों की भूख लगी थी।

सागर और साहिल जब खाना खा रहे थे तो मां बड़े प्यार से हाथ के पंखे से दोनों के लिये हवा कर रही थी। खाना-पीना हुआ और थोड़ी देर आराम करने के बाद साहिल अपने घर की तरफ निकल गया।

वाकई गांव में गर्मी से बचने के लिये सिर्फ और सिर्फ पेड़ों का ही सहारा होता है क्योंकि ना तो गांव में समय पर बिजली आती है और अगर आती भी है तो नाम मात्र को। वैसे भी गांव के छात्र रात में लैंप की रोशनी में अपना भविष्य बेहतर बनाने के लिये मेहनत से पढ़ाई करते हैं। 

सागर और साहिल भी इसी तरह से लैंप की रोशनी में अपनी पढ़ाई में मन लगाकर शुरू करते हैं। हर दिन सुबह उठकर पढ़ाई करना और रात को सोने से पहले घंटों तक किताबों से चिपके रहना; मानों सागर की आदत सी बन गयी थी।

साहिल को घर पर काम ज्यादा रहता है इसलिये वो सागर की तरह निरंतर पढ़ाई नहीं कर पाता है। सागर को अच्छे नंबरों से पास होने की धुन लग गयी थी इसलिये उसे बच्चों के साथ खेलने के बजाय अपनी पढ़ाई में मन लगाना ज्यादा अच्छा लगता है। 

क्रमश: 

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