नयी दिल्ली। लोक सभा चुनाव के रिजल्ट में कांग्रेस की करारी हार के बाद राहुल गांधी ने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। पार्टी न समझा कि मामला गर्म है थोड़े समय बाद राहुल इस्तीफा वापस लें लेंगे। लेकिन राहुल अपनी जिद पर अड़े हुए है कि वो अब अध्यक्ष पद पर नहीं बने रहेंगे। देश पर के दिग्गज कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें मनाने के लिये मान मनौवल, यहां तक कि उनके आवास पर प्रदर्शन तक किये। वही उनके इस्तीफे पर बीजेपी में खुशी की लहर है। वो इस बात पर खुश है कि राहुल अध्यक्ष नहीं रहेंगे तो मोदी और एनडीए सरकार पर सीधें हमले करने वाला कोई नेता कांग्रेस में नहीं है। लेकिन यह बात भी किसी से छुपी नहीं है कि कांग्रेस में गांधी परिवार की ही चलनी है। राहुल गांधी अध्यक्ष रहें या नहीं चलनी गांधी परिवार की ही है। पाटी अब नये अध्यक्ष के नाम पर गौर कर रही है। चार नाम सामने दिख रहे हैं उनमें महाराष्ट्र के शिंदे, राजस्थान के सीएम अशोक गहलौतए पूर्व रक्षामंत्री एके एंटोनी है जिसमे शिंदे का नाम सबसे ऊपर है। लेकिन राहुल किसी युवा नेता को अध्यक्ष बनाने के पक्ष में हैं
कांग्रेस को इस बात पर गौर करना चाहिये कि पाटी की हार का कारण अघ्यक्ष नहीं बल्कि संगठन का अभाव है। पिछले आम चुनाव में यह साफ नजर दिखा कि यूपी, बिहार और गुजरात राजस्थान, मध्यप्रदेश व देश के अन्य प्रदेशों में कांग्रेस का संगठन न के बराबर है। सबसे पहले कांग्रेस को ग्रास रूट लेवल पर संगठन खड़ा करना होगा। किसी भी चुनाव को जीतने के लिये ऐसा संगठन होना जरूरी है जो पार्टी की नीतियों और योजनाओं को जनता तक पहुंचा सके।
इस मामले में बीजेपी ने पिछले पांच सालों में संगठन को काफी मजबूत और व्यापक बना लिया है। इसमे अमित शाह की भूमिका अहम् रही है। बीजेपी किसी भी मुद्दे पर कांग्रेस व अन्य दलों को घेरने में कोई मौका नहीं छोड़ती है। वहीं कांग्रेस में इच्छा शक्ति की कमी साफ नजर आती है। चुनाव के बाद कई ऐसे मुददे सामने आये लेकिन कांग्रेस और विपक्षी दल हार का मातम मनाते रहे। बिहार में मुजफ्फरपुर में बच्चों की मौम का मामला हो या इंदौर में विधायक की गुंडई का मामला कांग्रेस ने ऐसा कुछ नही किया जिससे लगे कि विपक्ष भी है। अगर कांग्रेस का कोई मंत्री या नेता ऐसा करता तो बीजेपी पूरे देश में व्यापक स्तर पर धरना प्रदर्शन और मोर्चा खोल देती। यही भजपा की शक्ति है जो हर जगह उन्हे वांछित सफलता मिली है।
चुनाव के दौरान राजस्थान के गवर्नर कल्याण सिंह ने आचार संहिता का उल्लंघन किया था। यह बात चुनाव आयोग ने भी मानी पर कल्याण सिंह आज भी राजस्थान के राज्यपाल बने हुए हैं। क्या किसी राजनीतिक दल ने इस विषय को मुद्दा बनाया। चुनाव आयोग ने कल्याण सिंह के मामले को राष्ट्रपति के पाले में डालते हुए अपना पल्ला झाड़ लिया। क्या कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को इसे मुद्दा नहीं बनाना चाहिये था। इससे पहले भी कांग्रेस मुद्दों को भुनाना नहीं जानती है और बीजेपी बिना मुद्दे पर ही कांग्रेस व विपक्ष को घेरती रहती है। कांग्रेस ने सरकार में मंत्री स्मृति ईरानी की शैक्षिक प्रमाणपत्र का मुद्दा उठाया तो लेकिन उसका कोई सरकार पर असर नहीं पड़ा। इसी तरह ईरानी ने तीन चुनावों में तीन अलग अलग ऐफिडेबिट चुनाव आयोग में जमा कराये। यह सीधे सीधे फ्राड का मामला था। लेकिन कांगे्रस या विपक्ष इसे मुद्दा बनाने सफल नहीं हुआ।