श्रम क़ानूनों में बदलावों पर रार बढ़ी , संसदीय समिति ने बदलाव करने वाले राज्यों से मांगी जानकारी

राज्यों के अलावा केंद्र सरकार भी श्रम मामलों से जुड़े अलग अलग 44 क़ानूनों को मिलाकर सिर्फ़ 4 क़ानूनों में समेटने की तैयारी कर चुकी है. इनमें से एक को संसद की मंजूरी मिल चुकी है जबकि दो अन्य लोकसभा में लंबित हैं.

नई दिल्ली: लॉकडाउन के दौरान श्रम क़ानूनों में बदलाव का मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है. आरएसएस से जुड़े देश के सबसे बड़े मज़दूर संगठन भारतीय मज़दूर संघ ने भी इन बदलावों के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश और गुजरात में आंदोलन का ऐलान कर दिया है.

संसदीय समिति ने राज्यों को लिखा पत्र

लॉकडाउन के बीच में ही श्रम क़ानूनों में बदलाव का मामला अब संसद पहुंच गया है. श्रम मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने उन राज्यों को पत्र लिखा है जहां इन क़ानूनों में बदलाव किए गए हैं. उत्तरप्रदेश जैसे राज्यों में तो ये बदलाव अध्यादेश के ज़रिए किए गए हैं लेकिन गुजरात जैसे राज्य में इनमें शासकीय आदेश से ही बदलाव कर दिए गए हैं . संसदीय समिति ने पत्र लिखकर इन राज्यों से बदलाव की पूरी जानकारी मांगी है. बदलावों के मुख्य बिंदुओं के साथ साथ राज्यों की ओर से बदलाव के लिए अपनाए गए तरीके के बारे में भी जानकारी मांगी गई है .

विधायिका की मंज़ूरी ज़रूरी

संसदीय समिति के अध्यक्ष और बीजू जनता दल के वरिष्ठ नेता भर्तृहरि महताब ने एबीपी न्यूज़ को इस बात की पुष्टि करते हुए कहा कि किसी भी क़ानून में बदलाव के लिए विधायिका की मंज़ूरी ज़रूरी होती है. उनके मुताबिक़ इन राज्यों ने क़ानून में संशोधन के लिए दो रास्ते अपनाए हैं. पहला , अध्यादेश के ज़रिए और दूसरा शासकीय आदेश के ज़रिए. और दोनों ही सूरत में विधायिका की मंज़ूरी ज़रूरी होती है. समिति की अगली बैठक में इस मामले पर चर्चा किए जाने की संभावना है . हालांकि बैठक कब होगी वो तय नहीं है.

बीएमएस ने भी किया विरोध

लॉकडाउन के दौरान श्रम क़ानूनों में बदलाव राजनीतिक रंग ले चुका है. कांग्रेस ने तो इसका विरोध किया ही है. आरएसएस से जुड़े देश के सबसे बड़े मज़दूर संगठन भारतीय मज़दूर संघ ने भी इन बदलावों के ख़िलाफ़ उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश और गुजरात में आंदोलन का ऐलान कर दिया है. गुरुवार को ये मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंच चुका है. ऐसे में इसपर सियासत और गर्माने वाली है.

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