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वित्त बजट पर तर्कों से हिली सरकार
दिल्ली में वित्त बजट पर संसद के दोनों सदनों में जबरदस्त बहस और हंगामेदार बयान चल रहे हैं। सरकार की मंशा है कि वो विपक्ष को बोलने न दिया जाये। लेकिन विपक्ष इतना मजबूत हो गया है कि सदन को नियंत्रित करने में असहाय दिख रहे हैं। यह बात दूसरी है कि राज्यसभा में जगदीप धनखड़ और लोकसभा में ओम बिड़ला हर वो कोशिश कर रहे हैं जिससे विपक्ष को बोलने से रोका जा सके। इसके बावजूद संसद के दोनों सदनों में जो यंग ब्रिगेड पहुंची है उसने सरकार और भाजपा सांसदों के नकेल कस दी है। इन्हीं में आप सांसद राघव चड्ढा हैं जो कि अपने लॉजिक से सरकार के मंत्रियों को गंभीरता से चुपचाप सुनने पर मजबूर कर रहे हैं। वो जब भी राज्यसभा में बोलते हैं तो सत्तापक्ष और सरकार के मंत्रियों के चेहरे उतर जाते हैं।
बजट की राघव चड्ढा ने की जमकर धुलाई
वित्त बजट पर राज्यसभा में जिस तरह राघव चड्ढा ने सरकार की टैक्स नीतियों की कलई खोली हर कोई मंत्रमुग्ध हो सुनने पर मजबूर हो गया। वित्त मंत्री भी राघव चडढा के दिये गये तर्कों से निरुत्तर हो गयीं। लेकिन राघव चड्ढा ने जिस तरह आम आदमी पर करों के ग्रहण का जिक्र किया उसे कोई भी नकार नही सकता है। श्री चड्ढा ने अपने तर्कों से बताया कि जब किसी के घर में बच्चा जन्म लेता है तभी से टैक्सों का कहर शुरू हो जाता है। यह कहर मृत्यू तक जारी रहता है। जन्म के बाद बच्चा थोड़ा बड़ा होता है तो उसके लालन पालन पर भी करों का कहर जारी रहता है। हैरानी की बात तो यह है कि इस सरकार ने ऐसी वस्तुओं पर कर कम रखे हैं जो धनसंपन्न लोगों की पहुंच में होते हैं। यानि सोना चांदी और हीरों की खरीद पर दो या तीन प्रतिशत जीएसटी है वहीं बच्चों की पढ़ाई, स्टेशनरी और दूध दही मिठायी और नमकीन पर भी जीएसटी लागू कर दी गयी है।
गरीबों का नहीं अमीरों का है बजट
राघव चड्ढा के अलावा इंडिया ब्लाक के अन्य नेताओं व सांसदों में शक्ति सिंह गोहिल, हर्षा गायकवाड, महुआ मोइत्रा समेेत अनेक सांसदों ने वित्त बजट की कमियों को उजागर करते हुए वित्त मंत्रालय को लपेटे में लिया है। राघव चड्ढा ने महंगायी, गरीबी और अशिक्षा और बेरोजगारी पर भी सरकार को घेरा है। इसके अलावा बैंकों की व्यवस्था पर भी जमकर प्रहार किया। उन्होंने बताया कि किस तरह बैंक कर्मचारी खाताधारकों के साथ बुरा बर्ताव करते हैं। इसके अलावा न जाने कितनी हिडन कंडीशनों के जरिये खाता धारको का दोहन करने में जुटे हुए हैं। बैंकों आम खाता धारकों को वसूली करने का शिकार बना रखा है।
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