नयी दिल्ली। शिवसेना और बीजेपी का 30 साल पुराना गठबंधन आज पूरी तरह से टूट गया है। इसके पीछे शिवसेना की हठधर्मिता तो बड़ा कारण थी ही लेकिन शरद पवार की भूमिका भी कम अहम् नहीं है। फिलहाल यह लग रहा है कि शरद पवार की पावर के आगे बीजेपी की तिकड़म काम नहीं आयी और शिवसेना ने उनसे नाता तोड़ लिया है। शरद पवार और कांग्रेंस के गठबधन ने 98 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं बीजेपी 105 सीटों पर जीत हासिल करने के बावजूद वो सरकार बनाने में सफल नहीं हो सकी। हालात यह हो गये हैं कि बीजेपी और शिवसेना एक दूसरे पर जनादेश के अपमान का आरोप लगा रही है। इस सबमें सबसे अहम् भूमिका शरद पवार की रही जिन्होंने यह मजबूर कर दिया कि शिवसेना यदि सरकार के लिये समर्थन चाहती है तो पहले एनडीए से पूरी तरह नाता तोड़ ले। 11 नवंबर को शिवसेना के एक मात्र मंत्री अरविंद सावंत ने मंत्रिमंडल से इस्तीफ दे दिया।
इसके बाद शिवसेना ने सरकार बनाने के लिये जोड़ ताड़े शुरू कर दी। शरद पवार ने पहले यह कह कर शिवसेना को बहला दिया कि उन्हें तो जनता ने विपक्ष मे बैठने की जिम्मेदारी दी है। वो सरकार बनाने कोे बिल्कुल भी इच्छुक नहीं है। दूसरी ओर उनकी पार्टी के नेता और प्रवक्ता शिवसेना से मिलते रहे। स्वयं पवार से संजय राउत ने इस बीच कई बार मुलाकात की। इसी तरह कांग्रेस ने भी यह कह कर पल्ला झाड़ने की कोशिश की कि वो सरकार नहीं बनाने जा रहे हैं। लेकिन एनडीए से शिवसेना का रिश्ता कांग्रेस के जोर देने पर ही तुड़ावाया गया।
वैसे इस सारे गेम के पीछे शरद पवार का ही हाथ रहा जिस तरह से बीजेपी ने उनकी पार्टी के नेताओं को तोड़ा उनके पीछे सीबीआई और ईडी को लगवाया उससे शरद पवार खासे नाराज थे। वो चाह रहे थे कि प्रदेश में किसी भी सूरत में सत्ता में वापस न आये। सत्ताधारी पार्टी ने एनसीपी के कई बड़े नेताओं अपनी पार्टी में शामिल किया था।