Modi shah and Rahul (1)
Lockdown may be increase by weeks in India

चीन से पूरी दुनिया में फैले कोविड 19 से अर्थव्यवस्था पूरी तरह रसातल में पहुंच गयी है। पूरा विश्व कोरोना वायरस से त्रस्त हो गया है। सबसे मजबूत माना जाने वाला देश अमेरिका भी कोविड के आगे नत मस्तक हो गया है। फ्रांस, जर्मनी, इटली, आस्ट्रेलिया, अफगानिस्तान, सउदी अरब, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में कोरोना का कोहराम जारी है। इससे भारत भी अछता नहीं रहा है। भारत में पिछले माह की 25 तारीख से पूरे देश् में तालाबंदी घोषित है। सरकार का मानना है कि सोशल डिस्टेंसिंग से कोरोना के कहर से बचा जा सकता है। इसका काफी हद तक प्रभाव भी देखा जा रहा है। संपन्न देशों के मुकाबले भारत में संक्रमण कम पाया गया है। इसके साथ ही काफी कम संख्या में लोगों की मौत हुई है। इसका इसका दुष्प्रभाव भी देखा जा रहा है। भारी संख्या में मजदूरों का पलायन हुआ है। उनके जीवनयापन का संकट भी शुरू हो गया है। केन्द्र व प्रदेश सरकारों के लिये उनका संभालना काफी भारी पड़ रहा है। देश व विदेश के आर्थिक हालात इतने बुरे होने वाले हैं कि सभी लोग अभी से उससे निपटने के लिये मंथन करते दिख रहे है। भारत सरकार भी इससे निपटने के लिये माथापच्ची करने की दिशा में सोच रही है। इसके लिये उनका साथ देने के लिये कुछ मीडिया हाउसों सरकार के पक्ष और लॉकडाउन में हुए उपलब्ध्यिों के ढोल बजाना शुरू कर दिये है।
केन्द्र सरकार ने देश के हालात को देखते हुए कोरोना से निपटने के लिये 15 हजार करोड़ के राहत के लिये इमरजेंसी पैकेज का ऐलान किया है। इससे पहले केन्द्र सरकार ने 1 लाख सत्तर हजार करोड़ का विशेष पैकेज देने का ऐलान किया था। सरकार के अथक प्रयास के बावजूद देश में लगभग दस हजार लोग इस लाइलाज रोग के शिकार हो गये हैं। लॉक डाउन के कारण देश के आर्थिक हालात काफी बेहाल हो गये हैं। शेयर बालार बाजार ऐतिहासिक निचले स्तर पर पहुंच गया है। उद्योग धंधे पहले ही मंदी के शिकार हो रहे थे लेकिन ताला बंदी के चलते बंद होने पर आ गये है। कारखानों में काम न होने की वजह से असंगठित क्षेत्र के मजदूर अपने घरों की ओर जाने को विवश हो गये है। रहने को घर और पेट भरने को पैसा नहीं ऐसे हालात में मजदूरों के सामने भुखमरी का संकट आ गया। वैसे सरकारें दावा कर रही हैं कि वो मजदूरों के रहने और पेट भरने का पूरा इंतजाम कर रही हैं। लेकिन वा​स्तविकता शायद कुछ और ही है यही वजह है कि मजदूर किसी भ सूरत में अपने घरों को जाने का अड़े हुए हैं। 21 दिनों के बाद शायद दो सप्ताह का लॉक डाउन बढ़ाने के लिये पीएम मंगलवार को एक बार फिर से देश के नाम संदेश देने की तैयारी में है।
सरकारों का मानना है कि अभी भी हातात पूरी तरह नियंत्रण में नहीं है। इस महामारी से बचने के लिये दो सप्ताह का लॉक डाउन होना बहुत ही जरूरी है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो 21 दिनों के लॉकडाउन से जो महामारी पर नियंत्रण करने के जो भी प्रयास किये गये हैं लॉकडाउन हटने से हालात और भी खराब हो सकते है। पीएम मोदी ने राज्यसरकारों से बात करके यह अनुमान लगाया कि देश में कोरोना के प्रकोप को रोकने के लिये दो सप्ताह का लॉक डाउन बढ़ना जरूरी है। लेकिन इस बार की तालाबंदी में बहुत सारे बदलाव किये जा सकते हैं। कुछ उद्योग धंधों आौर कर्मचारियों के साथ असंगठित क्षेत्रों के मजदूरों को भी काम करने की छूट दी जा सकती है।
अब बात की जाये कि हालात इतने बुरे क्योंकर हुए। समय रहते इस महामारी से बचने के प्रयास सरकारों ने क्यों नहीं किये। यह नहीं कहा जा सकता कि सरकारों को इस महामारी का पता एकदम से चला। बीमारी के प्रकोप से बचने के लिये केन्द्र सरकार ने आवश्यक कदम क्यों नहीं उठाये। संसद में विपक्षी दल के सांसद ने इस बीमारी से आगाह किया तो उसकी बात को गंभीरता से क्योंं नहीं लिया गया। विदेशों से आने वाले लोगों की थर्मल स्क्रीनिंग हवाई अड्डों पर क्यों नहीं कीे गयी। जब आज हालात बद से बद्तर हो रहे हैं तो पूरे देश को तालाबंदी में क्यों झोंका जा रहा है। न केवल देशवासियों का जीवन अस्त व्यस्त हो रहा है बल्कि देश के हालात भी बिगड़ते जा रहे हैं।
आज सोशल डिस्टेंसिंग को इतना तूल दिया जा रहा है जिसकी वजह से लोगों का घर से निकलना भी दूभर हो गया है। दिल्ली में चुनाव होने के कुछ दिनों बाद ही देश के पीएम मोदी ने गुजरात में यूएस के प्रेसीडेंट डोनल्ड ट्रंप के लिये लाखों लोगों की भीड़ जमा की तब सामाजिक दूरी बनाये रखने का होश केन्द्र सरकार को नहीं आया। जिसका नेतृत्व नरेंद्र मोदी स्वयं कर रहे थे। नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम को सफल बनाने के लिये पूरी सरकार और प्रशासन जुटा दिया गया था। इससे पता चलता है कि सरकार कोरोना वायरस के प्रति इतनी गंभीर नहीं थी जितना कि अपनी राजनीति चमकाने में। बहरहाल ये वक्त राजनीति का नहीं है बल्कि एकजुट होकर इस महामारी से सुरक्षित बच निकलने का है इसके लिये सभी को एकजुट रहकर देश को बचाना बचाना होगा।

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