नयी दिल्ली। पिछले एक साल का लेखा जोखा देखा जाये तो सात प्रदेशों में कमल मुरझाया है और हाथ के पंजे में सत्ता की कमान आती जा रही है। लेकिन यह भी सच है कि भाजपा ने पिछले आम चुनाव में 307 सीटें जीत कर एक नया रिकार्ड कायम किया था। आम चुनाव के बाद भाजपा के हाथ से महाराष्ट्र और झारखंड फिसल कर कांग्रेस की झोली में चले गये हैं। हरियाणा में भी हालात पहले से बद्तर हो गये थे वहां भी सत्ता जाने के पूरे आसार थे। लेकिन भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने येन केन प्रकारेण साम दाम दंड अपना कर दोबारा सरकार बना ही ली। हरियाणा में भी खट्टर सरकार के प्रति काफी जनता में असंतोष था।
हरियाणा और महाराष्ट्र में एक साथ चुनाव हुए थे। वहां शिवसेना और बीजेपी के गठबंधन को बहुमत भी मिला लेकिन सरकार बनाने के वक्त दोनों ही दलों में सीएम पद को लेकर रार ठन गयी। बात इतनी गहरायी कि शिवसेना और बीजेपी का 30 साल पुराना गठबंधन ही टूट गया। इतना ही नहीं शिवसेना ने सत्ता हासिल करने के लिये वैचारिक मतभेदों को भी दर किनार करते हुए कांग्रेस के धर्मनिरपेक्षता को अपना लिया। इस तरह बीजेपी की जीती हुई बाजी हार में तब्दील हो गयी। शिवसेना ने भी यह करिश्मा कर दिखाया कि वो बिना बीजेपी के भी महाराष्ट्र में अपनी सरकार बना सकती है इतना ही नहीं उनका सीएम भी बन गया है।
2018 में भाजपा शासित राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कमल फिर से नहीं खिल सका। इन सभी प्रदेशों में कांग्रेस ने अपनी सरकारें बनायी इससे साफ जाहिर हो रहा है कि देश में कमल का साम्राज्य घटता जा रहा है। कांग्रेस का आधार बढ़ता ही जा रहा है।