सौमित्र रॉय
देश में कोरोना वायरस का कहर न केवल आम जिंदगी पर पड़ रहा बल्कि मीडिया कर्मचारियों पर भी इसका बुरा असर दिखने लगा है। देश के मीडिया घरानों ने अपने कर्मचारियों की जेब पर कैंची चलानी शुरू कर दी है। कुछ संस्थानों ने अपने कर्मचारियों की सैलरी काटी वहीं कुछ ने अपने कर्मचारियों की छंटनी करने की तैयारी शुरू कर दी है।
प्रिंट मीडिया, जहां मैंने अपने कैरियर के ज़्यादातर साल गुजारे हैं, आज बेहद मुश्किल दौर से गुज़र रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया के मैगज़ीन सेक्शन में छंटाई के बाद अब हिंदुस्तान टाइम्स अपने कर्मचारियों की सैलरी में 5-15% की कटौती करने जा रहा है।
यह महीना इंक्रीमेंट का होता है, लेकिन सैलरी बढ़ने के कोई आसार नहीं हैं। नौकरी सलामत रहे यही ग़नीमत है।
इंडियन एक्सप्रेस समूह ने कर्मचारियों को 30% सैलरी कट की चिट्ठी थमाते हुए कहा है कि आगे भी देश के लिए बलिदान देने को तैयार रहें। दैनिक भास्कर अपने 1000 कर्मचारियों के लिए वेरिएबल कंपोनेंट नाम का गणित लेकर आया है। इसे समझने में लोगों को पसीना आ रहा है। जो समझ आ रहा है वह आखिर में कटौती ही है।
अब इंडियन न्यूज़पेपर सोसाइटी ने सरकार को चिट्ठी लिखकर लॉक डाउन से 2 अरब डॉलर के नुकसान की आशंका जताई है।
चिट्ठी में कहा गया है कि अगर सरकारी विज्ञापनों की दरें 50% नहीं बढ़ी तो अखबार चलाना मुश्किल होगा। पिछले साल कॉर्पोरेट ने भारतीय मीडिया को 9 अरब डॉलर के विज्ञापन बांटे थे। इसमें से प्रिंट का हिस्सा 2.2 अरब डॉलर का था। लॉक डाउन से नुकसान 2 अरब डॉलर का है।
सबको मोदीजी से बड़ी उम्मीदें हैं। मीडिया भी मानता है कि वे अपनी जादू की छड़ी घुमाएंगे और मर्ज के साथ मरीज़ का भी कल्याण कर देंगे। मीडिया अब लोगों की पसंद पर नहीं चलता। यह बाजार और सरकार के रहमो-करम पर टिका है।
इन्हें चलाने वाले अम्बानी, अडाणी की प्राथमिकता मीडिया नहीं है। वे जब चाहें अपना हक बेच दें।
मीडिया को बजाय सरकार के सामने झोली फैलाने के जनता के सामने जाना चाहिए। ये सही वक्त है। लेकिन ऐसा होगा, इसकी उम्मीद कम है, क्योंकि इसके लिए उसी नैतिकता की राह को अपनाना होगा, जिसे मीडिया 20 साल से भूल चुका है।