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राजस्थान में वो सब कुछ देखने को मिल रहा है जिसे राजनीतिक पंडित पहले से अनुमान लगा रहे थे। पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा के दिग्गज नेताओं को औकात दिखाते हुए नये नवेल नेताओं को प्रदेश की बागडोर थमा दी है। इससे पार्टी के दिग्गज नेता मोदी शाह की मनमानी से तिमिला गये हैं। वो भी सही मौके का इंतजार कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर बाड़मेर से एक निर्दलीय विधायक ने भी लोकसभा चुनाव में अपनी दावेदारी कर दी है। विधायक बनने से पहले उसने कई राजनीतिक दलों से टिकट मांगी थी लेकिन टिकट नहीं मिला तो निर्दली ही उसने चुनाव लड़ा और कांग्रेस और भाजपा के उम्मीदवारों को हरा कर विधायक बन बैठा। उसके पीछे स्थानीय वोटर खड़े दिखे। बाड़मेर में भाजपा के सांसद कैलाश चौधरी हैं जो दो बार चुनाव जीत चुके हैं। लेकिन तीसरी बार की जीत पर आशंका के बादल मंडरा रहे हैं। इंडिया गठबंधन के अलावा वहां के निर्दली उम्मीदवार रवींद्र सिंह भाटी भी चौधरी की जीत की राह में रोड़े अटका सकते हैं। कारण यह है कि एक तो भाटी बिलकुल युवा और आसपास के इलाको में काफी लोकप्रिय हैं दूसरी ओर स्थानीय लोगों का उन्हें भारी समर्थन मिलता दिख रहा है।
कौन हैं निर्दली विधायक रवींद्र सिंह भाटी
रवींद्र भाटी ने राजनीति में आने से पहले अपने इरादे छात्रसंघ में दिखाये थे। वो एबीवीपी के कार्यकर्ता के रूप में छात्रसंघ की राजनीति में सक्रिय थे। जब उन्होंने एबीवीपी के बैनर पर चुनाव लड़ने की मंशा जतायी तो उन्हें वहां से मौका नहीं दिया गया तो वो निर्दली छात्रसंघ चुनाव में और अध्यक्ष पद पर शानदार जीत हासिल की। एबीवीपी और एनएसयूआई के उममीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा। इसके बाद में विधानसभा चुनाव हुए तो एक बार फिर से भाजपा व कांग्रेस से टिकट मांगा लेकिन इस बार भी उनको निराशा हाथ लगी। फिर उन्होंने बाड़मेर से विधानसभा का चुनाव लड़ा और भारी जन समर्थन से वो विधायक बन गये।
भाजपा के असंतुष्ट नेता बनेंगे जीत में रोड़ा
पहले चरण के मतदान के कुछ ही दिन शेष हैं। आम चुनाव में भाजपा को अपने ही नेताओं से दो दो हाथ करने पड़ेंगे ऐसे आसार भाजपा शासित राज्यों में दिख रहे हैं। पिछले साल ही भाजपा ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता पर कब्जा किया है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा ने कांग्रेस के कब्जे से जीत छीनी है। मध्यप्रदेश में पहले से ही भाजपा की सरकार थी। लेकिन मोदी शाह ने तीनों ही प्रदेशों में अपने दिग्गज नेताओं को किनारे लगा दिया है। वहां की कमान ऐसे लोगों को थमाई है जो मोदी शाह के इशारों पर ही काम करेंगे। यूं कहा जा सकता है नव नियुक्त मुख्यमंत्री दिल्ली के रिमोट कंट्रोल से काम करेंंगे।
राजस्थान में होगी कांटे की टक्कर
भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने राजस्थान के अनेक दिग्गज नेताओं को नकारते हुए अन्य लोगों पर विश्वास जताया और प्रदेश में बहुमत की सरकार बना ली। जबकि दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके समर्थकों को नजर अंदाज करते हुए अपनी बिसात बिछाते हुए उन्हें यह एहसास करा दिया कि अब आपकी राजनीति यहीं समाप्त हो गयी है। अब प्रदेश के क्षत्रपों की पार्टी में कोई हैसियत नहीं रह गयी है। पिछले विधानसभा चुनाव के ठीक पहले दिग्गज नेता और पूर्व गृहमंत्री कैलाश मेघवाल को भी पार्टी से निकाल दिया था। यह भी माना जाता है कि जितने भी नेता वसुंधरा कैंप के समर्थक विधायक और नेता थे ये बता दिया गया कि जिसने भी बगावत करने की कोशिश की उसे वसुंधरा की तरह निपटा दिया जायेगा। मोदी शाह ने ऐसा ही मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और छततीसगढ़ में रमन सिंह के साथ किया था। इसके अलावा पूर्व कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, फग्गन सिंह कुलस्ते और समेत 4 सांसदो के साथ प्रदेश की राजनीति में सीमित कर दिया है। ये सभी नेता अंदर ही अंदर मोदी शाह की मनमानी से तपे बैठे हैं। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार 2019 वाली जीत मिलना आसान नहीं है। कांग्रेस के अलावा अपने ही नेताओं की बगावत को सामना करना पड़ेगा।