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सुभाष चंद्र बोस
बीबीसी
आप से अगर ये पूछा जाये कि देश में सबसे ज्यादा बार चुनाव किसने राज नेता ने लड़े हैं तो आप शायद नाम नहीं बता पायेंगे। आप सोचेंगे कि शायद वो मोदी होेंगे या इंदिरा गांधी, मुलायम सिंह, मायावती या फिर चौ चरण सिंह होंगे। लेकिन आपके ये सभी अनुमान गलत साबित होंगे। आप कल्पना नहीं कर सकते कि जिस व्यक्ति की चर्चा की जा रही है उसने 239 बार चुनाव लड़े हैं। लेकिन एक भी बार कोई चुनाव वो जीतने में कामयाब नहीं हुए है। सभी चुनावों में उनकी जमानत जब्त हुई है। लगभग 1 करोड़ रुपये वो चुनावों में लगा चुके हैं। वो चुनाव लड़ते ही हारने के लिये हैं। वो देश हर छोटे बड़े चुनावों में उम्मीदवार बन चुके है। भारत में चुनाव को लोकतंत्र के महापर्व के तौर पर देखा जाता है। हर चुनाव के दौरान विविध पृष्ठभूमि के उम्मीदवार चुनाव मैदान में होते हैं। इनमें कुछ सेलिब्रेटी होते हैं तो कुछ एकदम आम लोग। चुनावी रंग भी दिलचस्प होते हैंए सनसनीखेज़ प्रचारए मंचों से भड़काऊ भाषणए रंगारंग रैलियांए पोस्टरए बैनरए झंडेए रोड शो ये सब मिलकर चुनाव का रोमांच बढ़ाते हैं। हर उम्मीदवार चुनाव जीतने के इरादे से ही मैदान में होता है।
1988 से अब तक 239 चुनाव लड़े हैं
तमिलनाडु के सेलम ज़िले के मेट्टूर से आने वाले केण् पद्मराजन के लिए किसी चुनाव में लक्ष्य श्हारश् ही रहा है चौंकिए नहीं ये हक़ीक़त है। उन्होंने साल 1988 से अब तक 239 चुनाव लड़े हैंए उनके नाम भारत में सर्वाधिक चुनाव लड़ने का रिकॉर्ड भी है। पद्मराजन 12 राज्यों में अलग.अलग निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ चुके हैं। इसमें विधानसभाए संसद और यहां तक की राष्ट्रपति पद का चुनाव भी शामिल है। भारत में चुनाव लड़ने की पात्रता रखने वाला कोई भी शख़्स कहीं से चुनाव लड़ सकता है। इसके लिए उसे हलफ़नामा दाख़िल करना होता है।
पद्मराजन कहते हैं कहूं तो मेरा लक्ष्य और भी चुनाव हारना है। यक़ीन करना भले मुश्किल हो लेकिन यह उनकी अजीबोगरीब इच्छा है लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि इलेक्शन किंग कहलाने वाले पद्मराजन की दिलचस्पी चुनाव लड़ने में किस तरह पैदा हुई उनकी स्कूली शिक्षा भी पूरी नहीं हुई थी तब से उन्होंने साइकिल मरम्मत करने का काम शुरू कर दिया था। हालांकि बिना कॉलेज गए उन्होंने डिस्टेंस एजुकेशन से इतिहास में ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की है लेकिन साइकिल मरम्मत की दुकान आज भी उनका मुख्य पेशा बना हुआ है। चुनाव लड़ने का पैसा कहां से आता हैघ् उन्होंने अब तक जो 239 चुनाव लड़े हैंए वो साइकिल मरम्मत की दुकान से होने वाली आमदनी से लड़े हैं। उनका दावा है कि अब तक वे चुनाव लड़ने के लिए एक करोड़ रुपये मेहनत की कमाई ख़र्च कर चुके हैं।
चुनाव लड़ने की इच्छा के बारे में वे बताते हैं साइकिल की दुकान पर बैठे हुए मेरी इच्छा चुनाव लड़ने की हुई थी वो 1988 का साल था जिसके बाद मेरा जीवन एक तरह से बदल ही गया। जब उन्होंने कहा कि मैं चुनाव लड़ने वाला हूं तो उनके दोस्तों ने मजाक़ उड़ाते हुए कहा कि एक साइकिल दुकानदार किस तरह से चुनाव लड़ पाएगा। यही वजह है कि पद्मराजन अब तक 239 चुनाव लड़ चुके है। लेकिन क्या उनकी इस ज़िद को परिवार वालों का भी समर्थन हासिल हैए इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया लोगों ने काफ़ी विरोध कियाए लेकिन समय के साथ उन्हें भी मेरी बात समझ में आ गई।
पद्मराजन के बेटे श्रीजेश एमबीए ग्रेजुएट हैं। वे अपने पिता की ज़िद के बारे में कहते हैंए ष्जब मैं पढ़ता थाए तब मैं अपने पिता से नाराज़ रहता था। मुझे अचरज होता था कि वे क्या कर रहे हैंए लेकिन जब मैं बड़ा हुआ तो समझने लगा कि मेरे पिता का लक्ष्य क्या है।ष् ष्वे आम लोगों तक यह संदेश पहुंचाना चाहते हैं कि कोई भी आदमी चुनाव लड़ सकता है। इसके बाद मैंने हमेशा उनका साथ दिया है।
चुनाव लड़ने से बिगड़ी परिवार की हालत
लगातार चुनाव लड़ने की वजह से परिवार को आर्थिक नुकसान तो हो ही रहा हैए साथ में कई बार उन्हें अप्रत्याशित ख़तरे का सामना भी करना पड़ा है। के पद्मराजन दावा करते हैं कि 1991 में आंध्र प्रदेश के नांदयाल से होने वाले उप चुनाव के लिए जब उन्होंने पीवी नरसिम्हा राव के ख़िलाफ़ चुनाव मैदान में पर्चा दाख़िल किया तो उसके कुछ देर बाद कुछ लोगों ने उनका अपहरण कर लिया था। उनके दावे के मुताबिक़ए वे किसी तरह से अपहरणकर्ताओं के चंगुल से निकले और जान बचाने में कामयाब रहेए लेकिन चुनाव लड़ने की इच्छा पर कोई असर नहीं पड़ा।
पीएम और राष्ट्रपति के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं
पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के अलावाए पद्मराजन 2004 में लखनऊ में अटल बिहारी वाजपेयीए 2007 और 2013 में असम में मनमोहन सिंह और 2014 में वडोदरा में मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। इतना ही नहींए वे भारत के पूर्व राष्ट्रपतियों केआर नारायणनए अब्दुल कलामए प्रतिभा पाटिलए प्रणब मुखर्जी और रामनाथ कोविंद के साथ.साथ वर्तमान राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के ख़िलाफ़ भी चुनाव मैदान में उतर चुके हैं।
12 राज्यों में पद्मराजन चुनाव में उम्मीदवार रहे
तमिलनाडु में वे केण् करुणानिधिए जेण् जयललिताए एमके स्टालिन और ईके पलानीस्वामीए कर्नाटक में सिद्धारमैयाए बासवराज बोम्मईए कुमारास्वामी और येदियुरप्पाए केरल में पिनराई विजयन और तेलंगाना में केण् चंद्रशेखर राव जैसे मुख्यमंत्रियों के सामने भी चुनाव लड़ चुके हैं। वे जहां से चुनाव लड़ते हैंए वहां क्या वे चुनाव प्रचार के लिए जाते हैंए इस सवाल के बारे में उन्होंने कहा कि वे जाकर नामांकन दाखिल करते हैंए चुनाव प्रचार नहीं करते।
सिर्फ नामांकन के लिए जाने वाले पद्मराजन ने 2019 में राहुल गांधी के ख़िलाफ़ वायनाड से चुनाव लड़ा था। यहां उन्हें 1887 वोट मिले थे। हालांकि अपने वार्ड के चुनाव में एक बार ऐसी भी स्थिति रही कि पद्मराजन को एक भी वोट नहीं मिला था।
इसके अलावा 2011 में मेट्टूर विधानसभा चुनाव में उन्हें 6 हजार 273 वोट मिले थे और यह किसी चुनाव में उन्हें मिले सबसे ज्यादा वोट थे। पद्मराजन के मुताबिक़ए उनकी नीति चुनाव हारने की है। इसके चलते ही पद्मराजन का नाम लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में सबसे ज़्यादा चुनाव हारने वाले उम्मीदवार के तौर पर दर्ज है हालांकि उनका इरादा अब सबसे ज़्यादा चुनाव लड़ने के लिए गिनीज़ बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में शामिल होना है।
दरअसल भारत में पद्मराजन से पहले काका जोगिंदर सिंह धरतीपकड़ ने भी लगातार चुनाव लड़ने की मिसाल कायम की थी। 1962 में उन्होंने चुनाव लड़ने की शुरुआत की थी। दिसंबरए 1998 में निधन से पहले तक वे क़रीब.क़रीब 300 के आसपास चुनाव लड़ चुके थे। उन्होंने भी स्थानीय स्तर से लेकर राष्ट्रपति तक के चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई। वे चुनाव क्षेत्र में अपना प्रचार भी करते थे और लोगों से अपील करते थे कि उन्हें वोट ना दें।
रिकार्ड तोड़ने की तमन्ना
बहरहाल पद्मराजन 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए तमिलनाडु की धर्मपुरी सीट से अपना नामांकन दाख़िल कर चुके हैं। उन्हें पूरा भरोसा है कि इस बार भी उन्हें हार का सामना करना पड़ेगाए लेकिन इलेक्शन किंग की पूरी कोशिश धरतीपकड़ से आगे निकलने की है।